न्याय पाने के लिए जहां आम आदमी कोर्ट के चक्कर लगाने से कतराते हैं वहीं दक्षिण कोरिया में वुडपेकर नाम के एक अजन्मे बच्चे ने दक्षिण कोरिया सरकार की नीतियों के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया है। मुकदमा दायर करने वाले इस फरियादी का कहना है कि सरकार द्वारा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पर नियंत्रण करने के लिए जो भी नीतियां लगाई गई है वो नाकाफी हैं।
सरकार की गलत नीतियों की वजह से उसका जीवन जीने का संवैधानिक अधिकार छीना जा रहा है। ग्रीन हाउस गैसें वातावरण या जलवायु में परिवर्तन और भूमंडलीय ऊष्मीकरण को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी होते हैं। इनमें सबसे ज्यादा उत्सर्जन कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओजोन आदि का होता है। इस अजन्मे बच्चे के साथ इसके मुकदमे में 62 और भी बच्चे शामिल हुए हैं। इन बच्चों ने कोरिया की एक अदालत में मुकदमा दर्ज किया है। यह मुकदमा बेबी क्लाइमेट लिटिगेशन के नाम से दक्षिण कोरिया में काफी चर्चित हो रहा है। इन 62 बच्चों में 39 बच्चे पांच वर्ष से कम आयु के हैं और 22 बच्चों की उम्र 6 से 10 वर्ष के बीच हैं, और जो वुडपेकर अपनी माँ के गर्भ में पल रहा है वह 20 हफ्ते का भ्रूण है। कोरियाई न्यायालय ने इस याचिका को इसलिए स्वीकार किया क्योकि यह मनुष्य जीवन के संवैधानिक अधिकार का विषय हैं, और जीवन के अधिकार को बढ़ते हुए भ्रूण के लिए मान्यता दी जानी चाहिए।
“ली डोंग-ह्यून”, “जो वुडपेकर” नाम के इस भ्रूण से गर्भवती का बड़ा बेटा भी इस याचिका को दायर “जो वुडपेकर” की माँ के अनुसार जब- जब यह भ्रूण उसकी कोख में हिलता डुलता हैं तो उन्हें गर्व की अनुभूति होती हैं, लेकिन जब उन्हें ये एहसास होता है कि इस अजन्मे बच्चे ने तो एक ग्राम भी कार्बन उत्सर्जित नहीं किया फिर भी इसे इस जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की मार को झेलना पड़ता हैं और इस मार को झेलना पड़ता रहेगा। दरअसल जलवायु परिवर्तन से मानव स्वास्थ्य पर लगातार दुष्प्रभाव पर पड़ रहा है दक्षिण कोरिया सरकार ने २०३० तक ग्रीन हाउस गैस उत्सृजन , वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए जो भी नियम कानून बनाये है वे दक्षिण कोरिया के प्रदूषण को रोकने के लिए नकाफी साबित हो रही हैं। इसे देखते हुए और वादी की दलील सुनने के बाद न्यायालय ने कोरिया सरकार को ग्रीन हाउस गैस उत्सृजन कम करने का आदेश दिया।
गौरतलब है कि जलवायु प्रदूषण का खतरा केवल दक्षिण कोरिया में ही नहीं बल्कि विश्व भर में है। एक अनुमान के मुताबिक वहां करीब 18000 लोगों की मौत प्रदूषण की वजह से होती हैं। इसी वर्ष इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की एक (आईपीसीसी) रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक वैश्विक तापमान को कम करने और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए विश्व स्तर पर किये जा रहे प्रयास भी भविष्य के लिए नकाफी हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि 2019 में मानव द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड 59 गीगाटन था,जो साल 1990 की तुलना में 54 प्रतिशत ज्यादा थी । 2019 में वैश्विक स्तर पर होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कम विकसित देशों की भागीदारी 3.3 प्रतिशत थी। गौरतलब है की इन कम विकसित देशों में दक्षिण कोरिया भी शामिल हैं। कम विकसित देशों में साल 1990 से 2019 के बीच प्रति व्यक्ति कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन 1.7 टन था, जो कुल मिलाकर विश्वस्तर पर वैश्विक उत्सर्जन 6.9 टन था। वैश्विक तापमान कम करने और ग्रीन हाउस गैसों पर लगाम लगाने के लिए पेरिस समझौते (नेशनली डिटर्मिंड कंट्रीब्यूशन) पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने जो शपथ ली है उसे भी पर्यावरण प्रदूषण में कमी के लिए अपर्याप्त बताया जा रहा हैं । रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 31 गीगाटन पर लाना होगा। 2010 के बाद से न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन करने वाले तकनीकों की कीमत में कमी आई है। जरूरतों को कम करके लोगों ने पैदल चलना और साइकिल का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है। नई नीतियों को अपनाने से परिवहन, उद्योग, वाणिज्य व आवासीय सेक्टरों में विश्व स्तर पर साल 2050 तक ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में 40 से 70 प्रतिशत तक की कमी पायी जा सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार साल 2050 तक कोयला, तेल और गैस के इस्तेमाल में 95 प्रतिशत, 60 प्रतिशत और 45 प्रतिशत तक की कमी लानी होगी। तब कहीं जाकर हम इस गैस उत्सृजन में कमी ला सकते हैं।