रूस और यूक्रेन के बीच लबें समय से सीमा विवाद चल रहा है। इस विवाद पर दोनों देश लगातार बयानबाजी करते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से यह बयानबाजी चरम पर पहुंच गई है। इससे दोनों देशों की सीमा पर तनाव का तापमान लगातार बढ़ रहा है। स्थिति युद्ध सी हो गई है।अब रूस और यूक्रेन के सीमा पर जारी भारी तनाव के बीच अमेरिका ने चेतावनी दी है कि रूस की सेना अगर चाहे तो मात्र 72 घंटे में यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा कर सकती है।
अमेरिकी सेना के चीफ्स ऑफ स्टाफ जनरल मार्क माइले ने कहा है कि यूक्रेन पर रूस अगर हमला करता है तो यूक्रेन के 15 हजार सैनिकों और रूस के 4000 सैनिकों की मौत हो सकती है। वहीं एक अन्य खुफिया आकलन में चेतावनी दी गई है कि इस हमले की चपेट में आने से 50 हजार आम लोगों की मौत हो सकती है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,जनरल मार्क ने अमेरिकी सांसदों से कहा कि रूसी सेना अगर अपनी पूरी ताकत से हमला करता है तो यूक्रेन पर मात्र 72 घंटे में कब्जा कर सकती है। इसके बाद कई सांसदों ने इस बात पर चिंता जताई है। इतना ही नहीं अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भी चेतावनी दी है कि रूस यूक्रेन पर ‘किसी भी दिन’ हमला कर सकता है। उन्होंने कहा कि संघर्ष की शुरुआत हुई तो मानवता को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। राष्ट्रपति बाइडन के वरिष्ठ सलाहकार की यह दूसरी चेतावनी है। इसके पहले अमेरिकी अधिकारियों ने पुष्टि की थी कि रूस ने इस महीने के मध्य तक अपनी 70 फीसदी सैन्य शक्ति यूक्रेन बॉडर तैनात कर देगा।
जेक सुलिवन ने आगे कहा है कि ‘अगर युद्ध छिड़ता है, तो यूक्रेन को बड़ी मानवीय कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन अपनी तैयारियों और प्रतिक्रिया के आधार पर हमारा विश्वास है कि रूस को भी इसके लिए रणनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी।’ उन्होंने सीधे तौर पर उन खबरों का जिक्र नहीं किया जिसके मुताबिक वाइट हाउस ने सांसदों को जानकारी दी है कि रूस आक्रमण करके कीव पर त्वरित कब्जा कर सकता है जिसमें 50,000 लोग हताहत हो सकते हैं। सुलिवन ने कहा कि अब भी एक राजनयिक समाधान संभव है। प्रशासन ने हाल के दिनों में चेतावनी दी थी कि रूस तेजी से यूक्रेन के क्षेत्र पर आक्रमण करने का इरादा रखता है।
गौरतलब है कि यूक्रेन ने अमेरिका की इस चेतावनी को खारिज कर दिया है। यूक्रेन के विदेश मंत्री दमयत्रो कुलेबा ने कहा है कि ‘हम इस प्रलय की भविष्यवाणी पर भरोसा नहीं करते हैं। अलग-अलग राजधानियों के लिए अलग-अलग परिदृश्य हैं लेकिन यूक्रेन किसी भी घटनाक्रम के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि हमारे पास आज मजबूत सेना है, दुनियाभर से समर्थन मिल रहा है। हमें नहीं बल्कि हमारे दुश्मन को हमसे डरने की जरूरत है।
क्या है विवाद की वजह?
यूक्रेन की सीमा रूस और यूरोप से लगती है। वर्ष 1991 तक यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था। रूस और यूक्रेन के बीच विवाद की शुरुआत वर्ष 2013 में हुई। वर्ष 2013 में यूक्रेन की राजधानी कीव में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का विरोध शुरू हो गया था। यानुकोविच को रूस का समर्थन प्राप्त था। अमेरिका-ब्रिटेन तत्कालीन राष्ट्रपति का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रहे थे। इसके अगले साल यानि 2014 में यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा। इससे नाराज रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। साथ ही वहां के अलगाववादियों को समर्थन दिया। रूस के समर्थन के कारण अलगाववादियों ने पूर्वी यूक्रेन के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। तब से यूकेन में रूसी समर्थक अलगाववादियों और यूक्रेन की सेना के बीच लड़ाई चल रही है।
विवाद का दूसरा कारण क्रीमिया है। 1954 में सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को क्रीमिया तोफे में दिया था। 1991 में जब यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ तो क्रीमिया उक्रेन के पास रहा। तभी से क्रीमिया को लेकर भी रूस और उक्रेन के बीच विवाद जारी है। दोनों देश इस पर अपना-अपना दवा करते रहे हैं। दोनों देश में शांति कराने के लिए कई बार पश्चिमी देश आगे आए। मसलन, वर्ष 2015 में फ्रांस और जर्मनी ने बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौता कराया था। उस समझौते में संघर्ष विराम पर सहमति बनी थी। लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव कम नहीं हुआ।
दोनों देशों के बीच विवाद का तीसरा कारण नार्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन को माना जाता है। इस पाइप लाइन से जर्मनी समेत यूरोप के अन्य देशों को रूस सीधे तेल और गैस सप्लाई कर सकेगा। इससे यूक्रेन को जबरदस्त आर्थिक नुकसान होना। वर्तमान में यूक्रेन के रास्ते यूरोप जाने वाली पाइपलाइन से इसे अच्छी कमाई होती है। दूसरी तरफ, अमेरिका भी नहीं चाहता है कि जर्मनी नार्ड स्ट्रीम को मंजूरी दे। क्योंकि अमेरिका का मानना है कि इससे यूरोप की रूस पर निर्भरता और बढ़ जाएगी।