[gtranslate]
world

इलेक्ट्रिक वाहनों की राह पर सत्ताईस देश

वर्ष 2035 तक शहरीकरण बढ़ेगा। तब तक देश के 17 शहर दुनिया के टॉप 20 सबसे तेजी से बढ़ते शहरों में शामिल हो चुके होंगे। शहरीकरण के कुछ अच्छे तो कुछ बुरे पहलू भी हैं। जैसे इसका एक असर बढ़ते प्रदूषण और शोर के रूप में सामने आएगा। तब वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती होगी। इससे निपटने के लिए अभी से ही दुनिया के 27 देशों ने इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। इन सभी देशों में समझौता हुआ है कि 2035 तक पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़ियां बंद हो जाएंगी। इसकी जगह इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर उतरेंगे। भारत में भी इलेक्ट्रिक वाहनों का आगाज हो चुका है। इलेक्ट्रिक वाहनों में किसी तरह का कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है। एक डीजल या पेट्रोल गाड़ी की तुलना में एक इलेक्ट्रिक वाहन के सड़क पर चलने से लगभग 1.5 मिलियन ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आती है।

विश्व में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। इस समस्या के पीछे सबसे बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं है। इसको लेकर कई देशों की सरकारें चिंतित हैं। तमाम देश अलग-अलग तरीकों से इस प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए रणनीतिक फैसले लेते नजर आ रहे हैं। सरकार के लिए सड़क पर चलने वाले हर वाहन से निकलने वाले धुएं और उससे होने वाले प्रदूषण पर नजर रखना मुश्किल है। इसलिए देश अब इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को प्राथमिकता देने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि पेट्रोल-डीजल से चलने वाली कारों पर तत्काल प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन ईंधन की बढ़ती लागत और अन्य मुद्दों के कारण होने वाले प्रदूषण को देखते हुए उन्नत देश इलेक्ट्रिक या वैकल्पिक ईंधन वाले वाहनों पर विचार कर रहे हैं।

देखा जाए तो सामान्य कार की तुलना में एक इलेक्ट्रिक कार चलाने और बनाए रखने के लिए सस्ती है। ईंधन या ऊर्जा की लागत बचाने के अलावा एक इलेक्ट्रिक कार सामान्य कार की तुलना में रख-रखाव के मामले में भी बहुत प्रभावी है। इलेक्ट्रिक कारों में पेट्रोल या डीजल से चलने वाली कारों की तरह इंजन नहीं होता है। यही कारण है कि ये परिवहन एक स्वच्छ, कुशल और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प हैं। बेशक वर्तमान में इलेक्ट्रिक कारें सामान्य कारों की तुलना में अधिक महंगी हैं। लेकिन कहा जाता है कि यह स्थिति धीरे-धीरे बदलेगी।

शायद यही वजह है कि दुनिया तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों को अपना रही है। जिसके चलते आजकल दुनियाभर में इलेक्ट्रिक वाहनों का दबदबा तेजी से बढ़ रहा है। सभी को लगने लगा है कि इलेक्ट्रिक वाहन खरीदना पर्यावरण को बेहतर बनाने की दिशा में एक कदम है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा जारी अनुमानों के अनुसार इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार 2050 तक 53 खरब से 82 खरब तक पहुंच सकता है। यह किसी भी तरह से छोटा बदलाव नहीं है। यह यह भी बताता है कि क्यों कई ऑटो निर्माता अपने सभी संसाधनों को इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर मोड़ना चाहते हैं।

यूरोपीय संघ के देशों में भी हालिया समय में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर एक समझौता हुआ है। जिसके तहत 2035 तक पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारें बंद हो जाएंगी। 2035 के बाद नई कारों से जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को पाने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है जिसके चलते 2035 के बाद यूरोपीय संघ में पेट्रोल या डीजल से चलने वाली कोई नई कार बेची नहीं जा सकेगी। इस समझौते के अनुसार 2035 के बाद यूरोपीय संघ के 27 देशों में ऐसी कोई कार की बिक्री नहीं हो सकेगी जो पेट्रोल या डीजल से चलती हो।

भारत में भी बिजली से चलने वाली कारों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। बेशक इससे भारत में वर्तमान में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल और डीजल की मांग में लाखों बैरल की कमी आएगी। सरकार की ओर से इलेक्ट्रिक कारों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। इलेक्ट्रिक कार खरीदने वालों को टैक्स में छूट भी दी जा रही है। नीति आयोग के अनुमान के मुताबिक 2030 तक भारत के 80 फीसदी टू-व्हीलर्स और तिपहिया के साथ-साथ 40 फीसदी बसें और 30 से 70 फीसदी चार पहिया वाहन इलेक्ट्रिक होंगे।

देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। हर साल सर्दी के मौसम में स्मॉग के कारण लोगों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं। सरकार प्रदूषण की जांच के लिए कदम उठाती है लेकिन वे पर्याप्त नहीं होते हैं। सरकारों द्वारा कई प्रयास किए जाते रहे हैं, जैसे ट्रैफिक सिग्नल पर वाहनों को रोकने की अपील और प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर डीजल से चलने वाले जनरेटर बंद करने के आदेश जारी किए जाते हैं। इसके मद्देनजर कई बार तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ऑड एंड ईवन नियम के आदेश दे चुके हैं। लेकिन दिल्ली के प्रदूषण को इससे खत्म नहीं किया जा सका है।

इसको ध्यान में रखते हुए ही दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग द्वारा ऐप-आधारित टैक्सी ऑपरेटरों, ई-कॉमर्स में इस्तेमाल होने वाले वाहनों और फूड डिलीवरी के लिए फाइनल मसौदा नीति जारी की गयी थी। परिवहन विभाग के मुताबिक अब ऐप से मिलने वाली टैक्सियां, ई-कॉमर्स और फूड डिलीवरी के लिए इस्तेमाल होने वाले वाहनों को 2030 तक ई-वाहनों में बदलना होगा। हालांकि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने स्पष्ट किया था कि केंद्र सरकार डीजल और पेट्रोल वाहनों के पंजीकरण पर प्रतिबंध लगाने पर विचार नहीं कर रही है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। भारत में वाहन बाजार पर नजर डालें तो यह अनुमान लगाया जाता है कि भविष्य में हमारे देश में पेट्रोल-डीजल वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री अधिक होगी। देश में पेट्रोल-डीजल के विकल्प के तौर पर एथेनॉल, बायो-एलएनजी, ग्रीन हाइड्रोजन जैसी चीजों को वाहनों में इस्तेमाल करने के शुरुआती प्रयास शुरू हो गए हैं।

अमेरिका, यूरोप के नक्शेकदम पर भारत
पहली चीज जो आज भारत में इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने को बढ़ावा देती है, वह है ईंधन की कीमतें। जैसे-जैसे पेट्रोल और डीजल की कीमतें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं, कई लोग इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की सोच रहे हैं। ईंधन की बढ़ती कीमतों, सरकार के प्रयासों और नए विकल्प के चलते जो दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं, कई लोग इलेक्ट्रिक वाहनों को एक बेहतरीन विकल्प के रूप में देख रहे हैं। इसी वजह से कुछ विशेषज्ञों की राय है कि अगर भारत अमेरिका और यूरोपीय देशों के नक्शेकदम पर चलकर कुछ समय बाद पेट्रोल-डीजल कारों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लेता है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।

पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमत से पड़ा फर्क
इलेक्ट्रिक वाहनों की दुनिया भर में बढ़ती मांग और बिक्री देखी जा रही है। पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतें भी इसकी एक वजह है। वहीं वाहनों से होने वाले उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भी लोगों में जागरूकता आने लगी है। कई संस्थाएं डीजल पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सरकारी नीतियां और बैटरी इलेक्ट्रिक टेक्नोलॉजी भी इस वृद्धि में योगदान दे रही हैं।

अमेरिका का कैलिफोर्निया राज्य भी इस दिशा में एक बड़ा फैसला लेने की तैयारी में है। भविष्य में इस राज्य में पेट्रोल- डीजल कारों की बिक्री पर रोक लगाने का फैसला लिया जाएगा। राज्य की योजना 2035 तक राज्य में पेट्रोल, डीजल या किसी भी गैर-पारंपरिक ईंधन वाले वाहनों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की है। 2035 के बाद राज्य में सिर्फ जीरो एमिशन वाले वाहनों की ही बिक्री होगी। कैलिफोर्निया में जीरो एमिशन कारों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। जीरो एमिशन का मतलब एक ऐसी व्यवस्था तैयार करना है जिसमें कार्बन उत्सर्जन का कुल स्तर लगभग शून्य होता है। इस साल राज्य में बिकने वाली 16 फीसदी कारें जीरो एमिशन कैटेगरी की हैं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD