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स्वीडन की राह का रोड़ा बना तुर्की

एक ओर जहाँ लगभग एक साल से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ उनके पड़ोसी देशों स्वीडन और तुर्की के बीच भी विवाद बढ़ रहा है। दरअसल हाल ही में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में तुर्की दूतावास के बाहर कुरान की एक कॉपी जलाए जाने के बाद से विवाद बढ़ता नजर आ रहा है।

 

बीते शनिवार 20 जनवरी को स्वीडन की स्ट्राम कुर्स पार्टी के नेता रासमुस पैलुदान ने नाटो की सदस्यता के कारण तुर्की से चल रहे तनाव के दौरान ही तुर्की दूतावास के बाहर कुरान की प्रति में आग लगा दी। प्रदर्शन के दौरान कुरान में आग लगाने के लिए उन्हें सरकार की ओर से अनुमति पहले से ही प्राप्त थी।
इस घटना का विरोध करते हुए तुर्की के राष्ट्रपति ‘रजब तैयब एर्दोगान’ ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि नाटो देशों में शामिल होने के लिए स्वीडन तुर्की के समर्थन की उम्मीद ना करे। उनका कहना है कि स्टॉकहोम में तुर्की दूतावास के सामने किया गया कार्य शर्मनाक है, ऐसी चीजों के लिए समाज में कोई स्थान नहीं है। इस घटना के बाद ऐसा करने वाले लोग हमसे नाटो सदस्यता पर अच्छी खबर की उम्मीद नहीं कर सकते। उनके अनुसार हर नागरिक को एक दूसरे की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए। इससे पहले भी स्वीडन में इस्लाम के धार्मिक ग्रंथ कुरान को जलने के मामले में सऊदी अरब और पाकिस्तान सहित कई मुस्लिम देशों ने नाराजगी जाहिर की थी।
हालांकि तुर्की के विरोध जाहिर करने के बाद बढ़ती परेशानी को देखते हुए स्वीडन के प्रधानमंत्री ने इस घटना के लिए माफ़ी मांग ली है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक मूलभूत अधिकार है, लेकिन जो कानूनी है वह जरूरी नहीं है। कई लोगों के लिए, पवित्र ग्रंथों (प्रति) को जलाना एक बहुत ही निंदनीय काम है। स्टॉकहोम में जो भी हुआ मैं उससे आहत सभी मुसलमानों के प्रति अपनी हमदर्दी इज़हार करता हूं।

 

क्या है मामला

 

स्वीडन और तुर्की के बीच चल रहे इस विवाद का कारण उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन (नाटो) है। दरअसल रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के बाद अब रूस के, स्वीडन पर हमला करने का खतरा बढ़ है। जिसे देखते हुए हमेशा तटस्थ रहने वाले स्वीडेन ने पिछले साल नाटो में शामिल होने का आवेदन किया। जिसमें वर्तमान में 30 सदस्य देश शामिल हैं। तुर्की हमेशा स्वीडन द्वारा नाटो में सदस्यता के किये गए आवेदन का विरोध कर रहा है। जिसके कारण स्वीडन अब तक नाटो की सदस्यता हासिल नहीं कर पाया है। क्योंकि तुर्की वर्ष 1952 में नाटो में शामिल हो चुका है और वर्तमान में नाटो के 30 सदस्य देश हैं। यदि कोई देश नाटो की सदस्यता हासिल करना चाहता है तो उसके आवेदन को सभी सदस्य देशों से मंजूरी मिलना आवश्यक है।

तुर्की का स्वीडन पर आरोप है की यह आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता है और स्वीडन ने फिनलैंड वॉन्टेड कूर्द को पनाह दे रखी है। हालांकि पिछले साल जून के महीने में दोनों देशों के बीच समझौता भी हुआ था। जिसके तहत स्वीडेन ने कूर्द के कुछ वॉन्टेड़स को लौटने की बात पर मंजूरी दी। साथ ही तुर्की की राजधानी अंकारा पर लगे ‘अनाधिकारिक हथियार बिक्री बैन’ भी हटाने का वादा किया था। जिसके बाद स्वीडन के सदस्य्ता हासिल कर पाने की असंका बढ़ती नजर आई लेकिन सभी सदस्य देशों के द्वारा स्वीडेन के नाटो में सदस्यता प्राप्त करने के आवेदन को स्वीकार करने के बाद भी तुर्की और हंगरी ने अब तक आवेदन पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। तुर्की का आरोप है कि स्वीडेन कूर्द आतंकियों को वापस भेजने में काफी देर कर रहा है।

 

नाटो क्या है

 

 

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) उत्तरी अमेरिका और यूरोपीय देशों का एक अंतरराष्ट्रीय सैन्य संगठन है। यह राजनीतिक और सैन्य साधनों के माध्यम से अपने सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है। इसके तहत कहा गया है कि यदि कोई बाहरी देश इसके सदस्य देशों पर हमला करता है तो फिर सभी सदस्य देश मिलकर उसकी रक्षा करेंगे। इस संगठन का गठन वर्ष 1949 में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुआ था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इसकी स्थापना सोवियत संघ के बढ़ते दायरे को समिति के उद्देश्य से की गई थी। नाटो की स्थापना अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे और पुर्तगाल ने मिलकर की। जिसके बाद अब तक इसमें कई अन्य देशों ने भी सफलता हासिल कर ली है। वर्तमान में नाटो के 30 सदस्य देश हैं।

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