By Dataram Chamoli
नई दिल्ली। अमेरिका में एक अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस यातना में हुई मौत के बाद इन दिनों देश में विरोध- प्रदर्शनों का दौर चल रहा है। इससे निपटने में राष्ट्रपति ट्रंप के पसीने छूट रहे हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि मौजूदा प्रतिकूल हालात भविष्य में उनके लिए चमत्कारिक रूप से सुखद भी हो सकते हैं। विरोध-प्रदर्शनों और हिंसा के बीच देश में एक बार फिर श्वेत बनाम अश्वेत की भावना जागृत हो सकती है जिसका सियासी फायदा ट्रंप को मिल सकता है। वैसे इस मुद्दे पर देश में सियासत भी तेज हो गई है। नवंबर में अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं। लिहाजा डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार जो बिडेन ने देश का महौल बिगाड़ने का आरोप लगाते हुए ट्रंप को घेरना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि व्यवस्था में जड़ें जमा चुके नस्लवाद और गहरी आर्थिक असमानता से निपटने का समय आ गया है। अब नवंबर माह तक चुनाव और उसके नतीजों का इंतजार करना मुश्किल हो गया है क्योंकि अहंकार में चूर राष्ट्रपति ट्रंप खुद समस्या को बढ़ा रहे हैं।
जानकारों के मुताबिक यदि अमेरिका में नस्लवाद की पुरानी भावना फिर से जागृत हुई तो आगामी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को इसका फायदा मिलने की संभावनाएं रहेगी। देश में अश्वेत मतों के मुकाबले श्वेत मत निर्णायक साबित होंगे। शायद यही वजह रही कि ट्रंप पहले से ही इन मतों को आकर्षित करने की रणनीति अपनाते रहे हैं। यहां तक कि वे इस विचार के पक्षधर हैं कि सिर्फ श्वेत ही देश के वास्तविक नागरिक हैं जबकि बाहर से आए हुए परिस्थितिजन्य अमेरिकी हैं। पिछले साल 2019 में उन्होंने करीब 110 लाख ऐसे लोगों के विरूद्ध बिना वारंट छापा मारने को मंजूरी दी, जिनके पास अमेरिकी दस्तावेज नहीं हैं ताकि उनका प्रत्यर्पण किया जा सके, लेकिन वे भूल गए कि ये लोग वर्षों से अमेरिका में रह रहे हैं। इसके साथ ही ट्रंप ने अमेरिका-मैक्सिको सीमा पर स्थित शरण स्थलों को बंद करने की योजना घोषित कर डाली। यही नहीं उन्होंने यह भी धमकी दी थी कि अमेरिका में जन्म लेने मात्र से नागरिकता मिलने की गारंटी खत्म की जा सकती है, जबकि अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन स्पष्ट करता है कि इस देश में पैदा हुआ हर व्यक्ति यहां का नागरिक है। ये सारे कदम उनकी सोच को साफ बयां करने वाले हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं ट्रंप की बुनियादी रणनीति यही रही है कि देश के श्वेत मतदाता उनसे प्रभावित रहें और उसका चुनावी लाभ उन्हें मिले। देश के मौजूदा हालात में भी उनकी रणनीति नई सियासी संभावनाएं तलाशने की है।
गौरतलब है कि हाल में एक रेस्टोरेंट के सिक्योरिटी गार्ड जॉर्ज फ्लॉयड नामक एक व्यक्ति को पुलिसकर्मियों ने हथकड़ी पहनाकर जमीन पर लिटा दिया। पुलिस अधिकारी ने फ्लॉयड को अपने घुटने से दबाया। जब फ्लॉयड ने पुलिस अधिकारी को बताया कि दबाव के कारण उसे सांस लेने में मुश्किल हो रही है तो अधिकारी ने उसकी बात नहीं सुनी। इसके कारण अफ्रीकन मूल के फ्लॉयड की मौत हो गई। इस निर्मम और अमानवीय घटना के बाद देश उबल रहा है, विश्व समुदाय में भी इस घटना की तीव्र निदा हो रही है। मानवाधिकार कार्यकर्ता इससे दुखी हैं, लेकिन ट्रंप शासन का रवैया साफ दिख रहा है कि विरोध को सख्ती से कुचल दिया जाए। ट्रंप ने राज्यों के गवर्नरों को धमकी तक दी कि अगर वे जॉर्ज फ्लॉयड की मौत को लेकर हो रहे हिंसक प्रदर्शनों को रोकने में नाकाम रहते हैं तो वे राज्यों में सेना तैनात कर देंगे।
बहरहाल इस घटना को मुद्दा बनाकर डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार बिडेन ने ट्रंप पर नफरत भड़काने के आरोप लगाकर उन्हें घेरना शुरू कर दिया है। अब देखना है कि बिडेन अपने अभियान में कितना सफल हो पाते हैं। बिडेन के लिए परीक्षा की घड़ी है कि वे इन हालात में अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का ध्रुवीकरण न होने दें। अगर वे इस अभियान में असफल रहे तो तब ट्रंप के लिए देश का मौजूदा वातावरण बेहतर साबित हो सकता है।