वैश्विक महामारी बन चुके कोरोना से इस समय पूरा विश्व जूझ रहा है। अमेरिका में सबसे अधिक लोग इससे संक्रमित हैं। हालात इतने ख़राब हो चुके हैं कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से चरमरा गई है। इसी बीच अमेरिका में एक अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस यातना से हुई मौत के बाद देश में विरोध-प्रदर्शनों का दौर चल रहा है।
इससे निपटने में राष्ट्रपति ट्रंप के पसीने छूट रहे हैं। इस घटना ने कोरोना वायरस से जूझ रहे अमेरिका को एक नई आग में झोंक दिया है। जाहिर सी बात इसका सबसे बड़ा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की छवि पर पड़े। राष्ट्रपति चुनाव से पूर्व पोल भी इसी तरफ संकेत दे रहे हैं। एक पोल के मुताबिक, 10 में से 8 अमेरिकी नागरिकों को लगता है देश गलत दिशा की ओर बढ़ रहा है और कंट्रोल से बाहर जा रहा है।
कंट्रोल से बाहर अमेरिका
अमेरिका में इसी साल नवंबर माह में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं। चुनाव होने को अब 5 से भी कम महीने बाकी रह गए हैं। इन सब से पहले ही ट्रंप डेमोक्रैट उम्मीदवार जो बाइडेन से पिछले कई पोल्स में पीछे नजर आने लगे हैं।
साथ ही उनके पूर्व डिफेंस सेक्रटरी और ट्रंप के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ की ओर से उनपर आरोप लगा दिया गया कि वह संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं और अमेरिका को बांटने का प्रयास कर रहे हैं। इसी बीच वॉल स्ट्रीट जर्नल/ NBC न्यूज पोल के सर्वे में बताया गया कि अमेरिका के 80 प्रतिशत लोगों का मानना है कि देश कंट्रोल से बाहर जा रहा है।
जाहिर है कि रिपब्लिकन नेता भी यह स्वीकारते हैं कि इस समय हालात गंभीर हैं परन्तु उनका मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था डिप्रेशन जैसे बेरोजगारी संकट से उबर ले तो ट्रम्प के पास एक उचित अवसर होगा जिससे वो साबित कर सके कि देश सही दिशा में अग्रसर है।
इकॉनमी सबसे बड़ी चुनौती
कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ट्रम्प के लिए अमेरिका की इकॉनमी सबसे बड़ी चुनौती होगी भले ही समाज में अशांति हो और हेल्थ क्राइसिस फैला हो। इसलिए भले ही देश में बेरोजगारों की संख्या महामारी के पहले के आंकड़े को न छू सके। परन्तु ट्रंप को लोगों में यह विश्वास पैदा करना होगा कि देश सही दिशा में आगे की ओर बढ़ रहा है।
राष्ट्रपति ट्रंप के सामने केवल अर्थव्यवस्था की ही समस्या नहीं है बल्कि पिछले कई दिनों से जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद आक्रोशित जनता को भी समझाने की चुनौती है। ट्रंप ने इस घटना पर दुःख तो जताया परन्तु साथ ही कई आक्रामक बयान भी दे दिए। जिससे लोगों को लगने लगा कि अश्वेत समुदाय पर पुलिस की बर्बरता को ट्रंप गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
कोरोना के निशाने पर दोनों नेता
अपने कई ट्वीट्स में उन्होंने प्रदर्शनकारियों के लूट मचाने, हिंसा करने जैसी गतिविधियों का उल्लेख किया। उन्होंने प्रदर्शनकारियों की मांगों को समझने की जगह उलटे उन्हें ‘ठग’ बता दिया। ट्रंप रंगभेद के सहारे तनाव बढ़ाने से पीछे नहीं हट रहे हैं जिसे उनकी राजनीति का खास तरीका माना जाता है। विरोध प्रदर्शनों के शुरू होने से पहले पोल्स में देखा जा रहा था कि बाइडेन ट्रंप के श्वेत-वोटबैंक में सेंध लगा रहे थे। अब इस बात पर नजरें हैं कि क्या ट्रंप की बांटने की रणनीति श्वेत लोगों में समर्थन हासिल कर सकेगी? खासकर पढ़े-लिखे श्वेतों में जो ट्रंप की पार्टी के खिलाफ हो चुके हैं।
इस सप्ताह बाइडेन हाउसिंग, एजुकेशन और मनी की उपलब्धता को लेकर अपना इकनॉमिक प्लान रिलीज कर सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि प्रोग्रेसिव तबका बाइडेन के समर्थन में तब खड़ा हुआ जब बर्नी सैंडर्स और एलिजाबेथ वॉरन डेमोक्रैटिक प्राइमरी के चुनाव में हार गए। ट्रंप के खिलाफ डमोक्रैट्स एकजुट हो सकते हैं लेकिन यह देखना होगा कि क्या बाइडेन की मॉडरेट सोच के खिलाफ रहा पार्टी का तबका भी उनके खेमे में आ सकेगा।
बाइडेन पिछले हफ्ते में करीब 4 बार ही पब्लिक में गए है उनकी तुलना में ट्रंप पब्लिक में कई बार गए हैं। ट्रम्प इस हफ्ते अपना पहला फंडरेजर भी आयोजित करेंगे। बाइडेन द्वारा अधिकतर अपने स्टूडियो के माध्यम स ही संपर्क किया जाता है। कोरोना वायरस का खतरा अभी टला नहीं है और 70 की उम्र पार कर चुके दोनों उम्मीदवार वायरस के निशाने पर हैं।