पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज ने शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया, तब ऐसा लगा कि जल्द ही सरकार का गठन हो जाएगा लेकिन अब इमरान खान की तरफ से उमर अयूब को नामित कर सरकार बनाने का दावा किया गया है। ऐसे में सरकार गठन को लेकर पेंच फंसता नजर आ रहा है
पड़ोसी देश पकिस्तान में हुए आम चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। मामला अब गठबंधन में फंस गया है। ऐसे में एक तरह जहां पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाले इमरान खान ने उमर अयूब को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में नामित कर सरकार गठन में नया पेंच फंसा दिया है। ऐसे में चर्चा है कि हाल ही में देश लौटे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज सत्ता संभालेंगे या इमरान खान फिर सत्ता के शीर्ष तक पहुंच पाएंगे या किंगमेकर की भूमिका में बिलावल भुट्टो के हाथ हुकूमत लगेगी।
पाकिस्तान के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि फिलहाल इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। पाकिस्तान संविधान के अनुसार चुनाव के तीन हफ्तों के भीतर सरकार का गठन करना जरूरी है। यह अवधि 29 फरवरी को समाप्त हो रही हैं। ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है कि जिसे देश की सेना का समर्थन मिलेगा उसकी ताजपोशी होगी। हालांकि नवाज शरीफ को सेना का समर्थन मिलने की अधिक सम्भावना है। क्योंकि नवाज शरीफ के ऊपर सेना का हाथ शुरू से ही रहा है। दोनों ने मिलकर ही खुले तौर पर सेना के खिलाफ बोलने वाले इमरान खान को चुनावी मैदान से बाहर रखा। कहा जा रहा है कि नवाज शरीफ की पार्टी से ही अगला प्रट्टानमंत्री चुना जाएगा। नवाज शरीफ ने अपने भाई शहबाज शरीफ का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे किया है। वहीं नवाज शरीफ की बेटी मरियम को पंजाब का अगला मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।
इस चुनाव में इमरान खान समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार को 93 सीटें मिली, वहीं नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीमएल- एन), 75 और पाकिस्तान पीपुल पार्टी (पीपीपी) को 54 सीटें मिली हैं। इसके अतिरिक्त एमक्यूएमएम-पी को 18 सीटें प्राप्त हुई। पीटीआई की प्रतिद्वंद्वी पार्टियां पीमएल एन और पीपीपी में सांठगांठ बन चुकी है। कहा जा रहा है कि किंग मेकर का रोल अदा करने वाले बिलावल भुट्टो जरदारी नवाज शरीफ के साथ गठबंधन के लिए तैयार हो गए हैं। पीपीपी के प्रमुख बिलावल भुट्टों ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अपने आपको हटा लिया है। उन्होंने कहा कि पीपीपी प्रधानमंत्री के रूप में नवाज का समर्थन करेगी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि शहबाज और बिलावल की बीच 3-2 के फॉर्मूले पर सहमति भी बन गई है। यानी तीन साल शहबाज और दो साल बिलावल प्रधानमंत्री रहेंगे।
गौरतलब है कि भुट्टो नवाज शरीफ का समर्थन इसलिए भी कर रहे हैं क्यांकि वे अपने पिता आसिफ अली जरदारी को एक बार फिर राष्ट्रपति पद पर देखना चाहते हैं। बिलावल भुट्टो ने कहा है कि मैं राष्ट्रपति की मांग सिर्फ इसलिए नहीं कर रहा कि वह मेरे पिता हैं। बल्कि मैं इसलिए मांग कर रहा हूं क्योंकि, देश इस समय भारी संकट से जूझ रहा है। अगर कोई इस समस्या से हमें उबार सकता है तो वह आसिफ अली जरदारी ही हैं।
पीपीपी का समर्थन प्राप्त कर चुके नवाज शरीफ एमक्यूएमएम-पी पार्टी समेत कई निर्दलीय उम्मीदवारों को अपने साथ मिलाने में लगे हैं। नवाज शरीफ की पीएमएल-एन की 74 सीटों के साथ बिलावल भुट्टो की पीपीपी की 54 सीटों को और खालिद मकबूल की एमक्यूएमएम-पी की 18 सीटों को मिला लेती है तो कुल 146 होतें हैं। ऐसे में नवाज शरीफ की सरकार बन सकती है।
सेना ने किया शहबाज का समर्थन
नवाज शरीफ की सत्ता में वापसी के पीछे सेना का भी हाथ माना जा रहा है। पाकिस्तान के इतिहास को देखते हुए यह नहीं भूला जा सकता है कि सशस्त्र बल जिस भी दल के साथ रहा सत्ता का ताज उसी के सिर रहा है। यह एक तरह से पाकिस्तान की प्रवृत्ति बन गई है। इस मुल्क की राजनीति में सेना का हस्तक्षेप प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर हमेशा रहा है। सेना ही तय करती है कि कौन सत्ता में रहे और कौन विपक्ष में बैठे। खबरों के अनुसार पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने नवाज शरीफ के सुर में सुर मिलाते हुए गठबंधन सरकार बनाने के लिए कहा है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री पद पर शहबाज शरीफ को नियुक्त करने को लेकर 6 दलों में सहमति बन गई है। इन दलों में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) को शामिल नहीं किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सेना के कहने पर ही शहबाज शरीफ का नाम प्रधानमंत्री के लिए चुना गया है। इससे पहले असीम मुनीर के इशारे पर ही शहबाज शरीफ ने पाकिस्तान में सरकार चलाई थी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सेना चाहती है कि नवाज शरीफ पीएम नहीं बनें और उनके साथ टकराव पैदा हो। नवाज शरीफ अपने कड़े रुख के लिए जाने जाते हैं और पहले भी कई बार सेना प्रमुखों को चुनौती दे चुके हैं। ऐसे में नवाज शरीफ इस गठबंधन सरकार में पीछे से सपोर्ट करेंगे। इसके अतिरिक्त सेना के कहने पर ही इस गठबंधन में इमरान खान की पार्टी पीटीआई को शामिल नहीं किया गया है जो चुनाव में असली विजेता रही है। माना जा रहा है कि नवाज शरीफ सरकार बना सके इसके लिए पीपीपी समेत अन्य पार्टियों को सेना ने ही राजी किया है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तानी सेना ने नवाज शरीफ की जीत को इमरान खान की हार में तब्दील कर दिया है। सत्ता तक नवाज को किस प्रकार पहुंचाया जाए यह पूरी योजना नवाज शरीफ के लिए पाकिस्तानी सेना के चीफ असीम मुनीर ने ही कराई है। पाकिस्तान सेना का इस पूरे चुनाव के दौरान लक्ष्य रहा है कि उनके खिलाफ बोलने वाले इमरान खान सत्ता में वापसी न कर सकें। गौर करने योग्य है कि इस चुनाव और सत्ता में वापसी को लेकर हर बार इमरान के खिलाफ परिस्थियां रही हैं, या यूं कहें कि इन परिस्थितियों को इमरान के खिलाफ उत्पन्न किया गया है। फिर चाहे उन्हें न्यायालय द्वारा एक के बाद एक लगातार मिली सजा हो, उनका नामांकन पत्र खारिज होना होना हो या फिर-चुनाव आयोग द्वारा इमरान की पार्टी पीटीआई का चुनाव चिन्ह रद्द करना हो। इन सभी परिस्थितियों ने इमरान खान को चुनावी मैदान में उतरने ही नहीं दिया। हालांकि उनके समर्थित उम्मीदवारों ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और 93 सीटें प्राप्त की। वहीं प्रतिद्वंद्वियों की साठ-गांठ और सेना द्वारा भी इमरान की जीत को हार में बदलने का पूरा समर्थन किया गया।
इमरान नहीं करेंगे नवाज का समर्थन
सजा भुगत रहे इमरान खान ने पीएलएम-एन का किसी भी तरह से समर्थन करने से इंकार कर दिया है। इमरान खान ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को चेतावनी देते हुए एक्स पर लिखा है कि मैं चोरी के वोटों के साथ सरकार बनाने के प्रयासों को चेतावनी देता हूं। इस तरह की डकैती न सिर्फ नागरिकों का अपमान होगी बल्कि, देश की अर्थव्यवस्था को और नीचे ट्टाकेलने के प्रयास होंगे। इमरान खान का कहना है कि पीटीआई लोगों की इच्छा से कभी समझौता नहीं करेगी। जिन पार्टियों ने लोगों के जनादेश को लूटा है, वो उनसे नहीं मिल सकते। इमरान खान ने कहा है कि पाकिस्तान के लोगों ने स्पष्ट रूप से हमें अपना फैसला सुनाया है। उनका कहना है कि पाकिस्तान के चुनावों में लोकतंत्र और निष्पक्षता की सख्त जरूरत है। खान ने उनपर भरोसा जताने के लिए पाकिस्तान नागरिकों का आभार व्यक्त किया। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी को कानूनी अड़चनों में उलझाकर पहले ही चुनाव आयोग के माट्टयम से बाहर कर दिया गया। हालांकि इमरान खान और उनकी पार्टी चुनावी मैदान में न रहते हुए भी अप्रत्यक्ष रूप से बने रहे। दरअसल इमरान खान की पार्टी पीटीआई के उम्मीदवार इस बार निर्दलीय ही चुनाव लड़े जिसमें उन्होंने बाजी पलटते हुए चुनावी राजनीति को बड़ा मोड़ दिया है।
पूरा कार्यकाल नहीं कर पाती हैं सरकारें
पाकिस्तान में सत्तारूढ़ सरकारों के कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने का इतिहास है। पाकिस्तान के इतिहास में सिर्फ 37 साल ही लोकतांत्रिक सरकारें रही, जिनमें कुल 22 प्रधानमंत्री हुए, लेकिन इन 22 में से कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया, पाकिस्तान में अब तक 32 साल सेना ने सीट्टो तौर पर शासन किया है और लगभग आठ सालों तक यहां की अवाम ने राष्ट्रपति शासन देखा है। ऐसे में सवाल है कि इस बार जो सरकार चुनकर बनेगी क्या वह अपना कार्यकाल पूरा कर पायेगी? पकिस्तान के जानकारों की मानें तो सरकारों के कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने के पीछे कई कारण हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण है कि पाकिस्तान की राजनीति में सेना का दखल और पाकिस्तान की जनता का सरकारी संस्थानों पर विश्ववास नहीं होना।
पाकिस्तान में सरकार चला लेना आसान नहीं पाकिस्तान राजनीतिक रूप से अस्थिर देश रहा है जहां अब तक कोई भी प्रधानमंत्री पांच सालों का अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। अब भी जो सरकार बनती है उसके लिए सरकार और देश को चला लेना टेढ़ी खीर होगी।
नई सरकार की चुनौतियां
1. सरकार के सामने सहयोगी पार्टी और निर्दलीयों को एकजुट रखने की सबसे बड़ी चुनौती होगी।
2. देश में महंगाई चरम पर है जिससे गरीबी बढ़ती जा रही है और लोगों का भरोसा नेताओं से उठता जा रहा है। जिसे पार पाना आसान नहीं है।
3. नई सरकार के सामने चुनाव में धांधली के आरोपों के बीच वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता कायम करने की चुनौती होगी।
4. अगर शहबाज, नवाज शरीफ या बिलावल भुट्टो में से कोई पीएम बनता है तो उनके सामने इमरान खान की लोकप्रियता से निपटने की बड़ी चुनौती होगी।