विश्वभर में करोड़ो लोगों द्वारा हर दिन किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन किया जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि तम्बाकू के उपयोग से व्यक्ति का श्वसन तंत्र और फेफड़ें प्रभावित होते हैं। जिसके चलते ही दुनिया भर में तंबाकू से संबंधित बीमारियों से हर साल लगभग आठ मिलियन लोग मरते हैं, फिर भी दुनिया भर की सरकारें तंबाकू उगाने के लिए लाखों खर्च करती हैं। ये कहना है विश्व स्वास्थ्य संगठन का। लेकिन इन खतरों को जानते हुए भी तम्बाकू पर रोक लगाना असंभव नजर आ रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि तम्बाकू के बजाय खाद्य फसलें उगाने का चयन करके हम स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे सकते हैं, पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित कर सकते हैं और सभी के लिए खाद्य सुरक्षा को मजबूत कर सकते हैं।
वर्तमान में दुनिया भर में 300 मिलियन से अधिक लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। इस बीच, 120 से अधिक देशों में 300 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि का उपयोग घातक तम्बाकू उगाने के लिए किया जा रहा है, यहाँ तक कि उन देशों में भी जहाँ लोग भूखे मर रहे हैं।
तम्बाकू का उपयोग कैंसर, फेफड़े की बीमारी, हृदय रोग और स्ट्रोक सहित कई पुरानी बीमारियों के लिए जिम्मेदार है। WHO के अनुसार, यह भारत में मृत्यु और बीमारी के प्रमुख कारणों में से एक है। चीन के बाद भारत ही तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक है। देश में विभिन्न प्रकार के तम्बाकू उत्पाद बहुत कम कीमत पर उपलब्ध हैं।
तम्बाकू से संबंधित बीमारियाँ सूची में हैं, इसलिए यदि हम लक्ष्य तक पहुँचते हैं, तो 2030 न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए, बल्कि हमारे बटुए के आकार के लिए भी जश्न मनाने का वर्ष होगा। एक धूम्रपान करने वाला व्यक्ति सिगरेट पर प्रति वर्ष लगभग 4,000 डॉलर खर्च करता है।
तम्बाकू उगाना हमारे स्वास्थ्य, किसानों के स्वास्थ्य और ग्रह के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। तम्बाकू उद्योग, तम्बाकू विकल्प विकसित करने के प्रयासों को बाधित कर रहा है, जो वैश्विक खाद्य संकट के लिए जिम्मेदार है।
कई देशों की सरकार तम्बाकू पर सब्सिडी देती है इसलिए सरकारों को तम्बाकू उगाने वाली सब्सिडी को समाप्त करने और उस बचत का उपयोग किसानों को अधिक टिकाऊ फसलें अपनाने में मदद करने के लिए प्रोत्साहित में करना चाहिए।