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पेरु में एक सप्ताह में बनें तीन राष्ट्रपति

क्या आपने कभी किसी ऐसे देश के बारें में सुना है जिसने एक सप्ताह में तीन राष्ट्रपति बदलें हो। दिमाग पर जोर डाला जाए तो शायद आपने ऐसा नहीं सुना होगा। आज हम आपको एक ऐसे देश के बारें में बताने वाले है जिसने एक सप्ताह में तीन राष्ट्रपतियों का मुंह देखा। देश का नाम है पेरु। पेरु दक्षिण अमेरिका में पड़ता है। ब्राजील और अर्जेंटीना के बाद यह दक्षिण अमेरिका का तीसरा सबसे बड़ा देश है। ट्रेवलिंग का शौक रखने वाले जरुर जानते होगे कि पेरु में एक जगह है जिसका नाम है मैचू पीक्यू। मैचू पीक्यू दुनिया में सबसे ज्यादा घूमी जाने वाली जगहों में से एक है। इतिहास और भूगोल की जानकारी रखने वाले इसके बारे में अच्छी तरह जानते होगे।

पेरु काफी लंबे समय तक स्पेन का गुलाम रहा है। 1824 में उसे स्पेन से आजादी मिली। पेरु को आजादी तो मिल गई लेकिन उसका अपने पड़ोसी देश चिले और इक्वाडोर से लड़ाई चलती रही। जैसे भारत की पाकिस्तान और चीन के साथ होती रहती है। कभी सीमा पर तो कभी व्यापार को लेकर।  1980 में यहां नागरिक सरकार बनी, यानि सिविलियन सरकार। लेकिन नागरिक सरकार के आते ही यहा गृह युद्ध शुरु हो गया। गृह युद्ध भी अपने देश के शाइनिंग पाथ नाम के गुरिल्ला ग्रुप से। गृह युद्ध तकरीबन 20 साल तक चला। इस युद्ध में पेरु ने अ्पने 70 हजार लोगों को खो दिया था। देश में गृह युद्ध खत्म हुआ। 2001 में यहां लोकतांत्रिक सरकार चुनी गई। लोकतांत्रिक सरकार ने काम भी  अच्छे किए और देश की आर्थिक व्यवस्था में भी सुधार किया। सरकारों के अच्छे कार्यों के कारण पेरु दक्षिण अमेरिका में सबसे अच्छी अर्थव्यवस्था वाले देशों के सूची में आने लगा।

लेकिन राजनीति के शिखर पर आकर अक्सर लोग के मन में पैसा कमाने का लालच आ ही जाता है।  ऐसा ही पेरु के राजनेताओं में देखने को मिला। करप्शन के बीच चीजें कुछ हद तक ठीक रही। उसके बाद आए जून 2016 के राष्ट्रपति चुनाव। पेद्रो पाब्लो कुज़ेन्स्की बहुत कम अंतर से जीतकर राष्ट्रपति के पद पर बैठे। पंरतु बाद में विपक्षी पार्टी पॉपुलर फोर्स के नेता किको फुज़िमोरी  को संसद में बढ़त मिल गई। जैसे भारत में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार मात्र तेरह दिन चली थी। बहुमत न होने के कारण सरकार गिर गई थी। वैसे ही पेरु में पेद्रो पाब्लो कुजेन्स्की की सरकार के साथ हुआ। पेद्रो के ऊपर एक और आरोप लगा था, कि  उन्होंने चुनाव में वोट खरीदें है। उन पर महाभियोग चला, इससे बचने के लिए पेद्रो को 2018 में अपना इस्तीफा देना पड़ा। पेरु के नेताओं के लिए यह नई बात नहीं थी, वहां अक्सर नेता भ्रष्ठाचार के स्कैंडल में फंसते आए है। पेरु की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार वहां राष्ट्रपति के साथ दो और उप-राष्ट्रपति चुने जाते है। इन्हें कहते है फास्ट और सेकेंड वाइस प्रेजीडेंट। जैसे भारत में राष्ट्रपति  और उप-राष्ट्रपति होते है। अगर देश का राष्ट्रपति अचानक मर जाए तो उसकी जगह उनको दी जाती है। पेद्रो के इस्तीफे के बाद वहां फास्ट वाइस प्रेजीडेंट थे मार्टिन अल्बर्टो विज़कारा। उन्हें देश का राष्ट्रपति बना दिया गया। प्रेज़िडेंट विज़कारा के टाइम में आकर दिक्कतें और बढ़ गई। इन दिक्कतों की जड़ में थी देश की संसद। पेरू में अभी जो संवैधानिक व्यवस्था है, वो लागू हुई थी दिसंबर 1993 में।  ये 20वीं सदी में पेरू को मिला 5वां संविधान था। 1993 वाले संविधान को लाए थे उस वक़्त पेरू के राष्ट्रपति रहे अल्बर्टो फुज़िमोरी। अपने तौर-तरीकों में बेहद तानाशाह और भ्रष्ट राष्ट्रपति थे।

जैसे भारत में राज्यसभा और लोकसभा, ये दोनों संसद में संतुलन का काम करती है। लेकिन पेरु की सेनेट जिसे आप राज्यसभा कह सकते है उसे फुजिमोरी ने हटा दिया था। इसके बाद बिना लगाम के घोडी की तरह हो गई पेरु की सेनेट व्यवस्था। यहां एक पार्टी को बढ़त मिल जाती, तो सारी चीजें उसी के हिसाब से होती थी। इससे संसद इतनी ताकतवर बन गई कि वह खुद के लिए ही समस्या बन गई। मनमानी से मंत्रियों को बर्खास्त किया जाने लगा, जज बदलें जाने लगे।

2018 में राष्ट्रपति बने मार्टिन विज़कारा इस व्यवस्था में सुधार चाहते थे। उनका कहना था कि देश के पार्लियामेंट्री और जूडिशल सिस्टम में बदलाव की सख़्त ज़रूरत है। उनके इन सुधार प्रस्तावों को जनता का भी समर्थन हासिल था। लेकिन संसद में बढ़त हासिल थी, विपक्ष को मनमानी वाला सिस्टम नहीं बदलना था। जिसके कारण मार्टिन ने संसद ही भंग कर दी। इसका नतीजा यह हुआ कि संसद ने मार्टिन को सस्पेंड करने का ऐलान कर दिया। लेकिन मार्टिन को जनता का समर्थन हासिल था। मार्टिन को सस्पेंड करने का मामला कोर्ट पहुंचा। इसके बाद जनवरी 2020 मार्टिन के संसद भंग करने के फैसले पर पेरु की कॉन्सटिट्यूशनल ट्रिब्यूनल ने भी मुहर लगा दी। पुरानी संसद भंग होने के बाद नई संसद के लिए 26 जनवरी 2020 को वहां चुनाव हुए, हालांकि यह राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव नहीं थे। ये 130 सीटों वाली कांग्रेस के लिए चुनाव था। पेरु में राष्ट्रपति के लिए चुनाव तो 2021 में होना है।

चुनाव में 22 पार्टियों ने भाग लिया, लेकिन किसी भी पार्टी को 11 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिले। इन चुनाव में पॉपुलर फोर्स पार्टी को काफी ज्यादा नुकसान हुआ। लोगों ने  इसे मार्टिन की सुधार नीति के तौर पर देखा। संसद की कार्यवाही फिर शुरु हुई, लेकिन फिर वहीं अराजकता और अव्यवस्था। विपक्ष को फिर यह रास नहीं आया तो उन्होंने मार्टिन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पास किया, और कहा कि प्रेजीडेंट मार्टिन न्याय व्यवस्था में अड़चन पैदा कर रहे है। अच्छी किस्मत के चलते इस बार मार्टिन बच निकले। लेकिन विपक्ष का फिर वही अलाप, विपक्ष ने दोबारा फिर 9 नवंबर को मार्टिन के खिलाफ महाभियोग चलाया, इस बार उन पर भ्रष्ट्राचार के आरोप लगा दिए गए। फिर हुई वोटिंग, वोटिंग में मार्टिन के खिलाफ  130 में से 105 सांसदो ने वोट किया। पेरु के सविंधान के मुताबिक अगर सांसदो को लगे कि राष्ट्रपति दिमागी और नैतिक तौर पर लीडरशिप के योग्य नहीं है तो उसे सांसद हटा सकते है। खैर मार्टिन को संसद की व्यवस्था को मानना पड़ा, और उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इस्तीफें के बाद कहा कि ”मैं संसद के इस फैसले से असहमत हूं। मगर फिर भी मैं इस निर्णय को मानते हुए राष्ट्रपति का पद छोड़ रहा हूं। इतिहास और पेरू की जनता हम सबके फैसलों को जज करेगी।”

मार्टिन की जगह अंतरिम राष्ट्रपति बने, कांग्रेस अध्यक्ष और विपक्ष नेता मैनुअल मेरिनो। लेकिन पेरु की जनता को यह बात रास नहीं आई तो उन्होंने
मार्टिन के समर्थन में राजधानी लिमा समेत देश के कई हिस्सों में आगजनी और प्रदर्शन शुरु कर दिए। प्रदर्शन कर रहे लोगों को तितर-बितर करने के लिए मैनुअल ने पुलिस को आर्डर दे दिया। पुलिस और प्रदर्शनकारियों में जमकर बवाल कटा। बवाल में दो लोगों की मौत हो गई और काफी संख्या में प्रदर्शनकारी घायल हो गए। मैनुअल के इस कदम के खिलाफ उनकी कैबिनेट के अपने ही मंत्री खड़े हो गए और 12 मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद खुद ही मैनुअल ने अपना इस्तीफा दे दिया। वह  6 दिन भी मुश्किल से पूरे नहीं कर पाए। इसके बाद 16 नवंबर को संसद ने फ्रेन्सिस्को सगास्ती को नया राष्ट्रपति बनाया। इस तरह एक सप्ताह में पेरु की जनता ने तीन राष्ट्रपतियों को देखा। फ्रेन्सिस्को उन 25 सांसदो में से एक थे जिन्होंने विजकारा को हटाए जाने के खिलाफ वोट किया था। संसद को यकीन है कि शायद इससे जनता अपना प्रदर्शन बंद कर दें। लेकिन जनता नहीं मान रही। उनका कहना है कि हमें एक ऐसे लीडर की जरुरत है जो हमारी इकानमी में सुधार करें, कोरोना के कारण देश की हालत काफी गंभीर हो रही है। पेरु में भी कोरोना केस काफी संख्या में है। लेकिन हमारी संसद और सांसद हमारी समस्या सुनने की बजाय खुद ही आपस में उलझ रहे है। फिलहाल पेरु की जनता अपने संसद के सिस्टम से काफी ज्यादा त्रस्त है। मार्टिन के सुधारों से जनता खुश थी, लेकिन सांसद नाराज।

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