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चीन की नीयत पर दुनिया को संदेह

एक साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन दुनियाभर में कोरोना संक्रमण से हालात अब भी नाजुक बने हुए हैं। अभी तक इस वायरस की चपेट में करोड़ों लोग आ चुके हैं, जबकि लाखों लोगों की जानें चली गई हैं। बावजूद इसके कोरोना वायरस की उत्पत्ति कहां से हुई, इसका पता अभी तक नहीं चल पाया है। हालांकि इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक जांच टीम के विशेषज्ञों की राय है कि इस घातक विषाणु के स्रोत का अब तक पता नहीं चला है और इन अनसुलझे सवालों के जवाब पाने के लिए आगे और अध्ययन की जरूरत है। इसके बाद से दुनिया के कई देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर सवाल भी खड़े किए। इस सबके बीच कुछ दिन पहले एक नए अध्ययन में दावे के साथ कहा गया है कि कोरोना वायरस चीन के वुहान की लैब से फैला है, जिस पर दुनिया को शक है, लेकिन अब अमेरिकी लैब की एक रिपोर्ट ने इस पर मुहर भी लगा दी है।

दुनिया इस समय कोरोना वायरस से जूझ रही है जिसका कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। चीन से फैले इस वायरस से चीन में ही अब तक लगभग हजारों लोगों की मौत हो गई है। आज जब एशिया के एक देश चीन के एक शहर वुहान से कोरोना नामक वायरस का संक्रमण देखते-ही-देखते पूरी दुनिया में अपने पैर पसार चुका है तो निश्चित ही वैश्वीकरण के इस दौर में इस प्रकार की घटनाएं हमें ग्लोबलाइजेशन के दूसरे डरावने पहलू से रूबरू कराती हैं, क्योंकि आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण से विश्वभर में अब तक लाखों मौतें हो चुकी हैं और करोड़ों लोग इसकी चपेट में हैं। जबकि आशंका है कि यथार्थ इससे ज्यादा भयावह हो सकता है, लेकिन यहां बात केवल विश्व भर में लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पहले से मंदी झेल रहे विश्व में इसका नकारात्मक प्रभाव चीन समेत उन सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है जो चीन से व्यापार करते हैं इनमें भारत भी शामिल है। बात यह भी है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग, रोबोटिक्स और आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के इस अति वैज्ञानिक युग में जब किसी देश में एक नए तरह का संक्रमण फैलता है जो सम्भवतः एक वैज्ञानिक भूल का अविष्कार होता है, जिसके बारे में मनुष्यों में पहले कभी सुना नहीं गया हो और उसकी उत्पत्ति को लेकर ‘बायो टेरेरिज्म’ जैसे विभिन्न विवादास्पद सिद्धान्त सामने आने लगते हैं तो यह न सिर्फ हैरान बल्कि परेशान करने वाले भी होते हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि विज्ञान के दम पर प्रकृति से खिलवाड़ करने की मानव की क्षमता और उसके आचरण को सम्पूर्ण सृष्टि के हित को ध्यान में रखते हुए गंभीरता के साथ नए सिरे से परिभाषित किया जाए, क्योंकि चीन से फैले  कोरोना वायरस का संक्रमण जितना घातक है उससे अधिक घातक वो अपुष्ट जानकारियां हैं जो इसकी उत्पत्ति से जुड़ी हैं।

शायद इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के चीफ को कहना पड़ा, ‘‘विश्व स्वास्थ्य संगठन में हम केवल वायरस से ही नहीं लड़ रहे बल्कि साजिश की अफवाहों से भी लड़ रहे हैं जो हमारी ताकत को कमजोर कर रही हैं।’’ दरअसल, चीन के वुहान से शुरू हुए इस कोरोना संक्रमण को लेकर अलग-अलग देश अलग-अलग दावे कर रहे हैं। जहां एक ओर रूस, अरब, सीरिया जैसे देश चीन से फैले कोरोना वायरस के लिए अमेरिका और इजरायल को दोष दे रहे थे वहीं अमेरिका खुद चीन को ही कोरोना का जन्मदाता बता रहा है। मजे की बात यह है कि सबूत किसी के पास नही हैं। लेकिन अपने-अपने तर्क सभी के पास हैं।

मौजूदा समय में कोरोना वायरस  के वुहान लैब से लीक होने को लेकर बढ़ रही विश्वसनीयता के बीच चीन का लीपापोती अभियान भी जोरों पर चल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सलाहकार बोर्ड के सदस्य जेमी मेटजल ने कहा है  कि चीनी प्रशासन नमूनों को नष्ट कर रहा है और रिकाॅर्ड को छिपाने में लगा हुआ है। अपने विज्ञानियों को झूठा आदेश दे रहा है, मूलभूत सवाल पूछने वाले अपने नागरिकों और पत्रकारों को जेल में डाल रहा है। कहा जा रहा है कि चीन कथित तौर पर अगले पांच वर्षो में दर्जनों जैव सुरक्षा स्तर तीन प्रयोगशाला और एक जैव सुरक्षा स्तर चार प्रयोगशाला बनाने की योजना बना रहा है, क्योंकि जांचकर्ता इस संभावना पर नजर डालते हैं कि कोरोना वायरस चीन के वुहान प्रयोगशाला से लीक हो सकता है।

विश्व स्वस्थ्य संगठन के अधिकारी के अनुसार चीन खुद को जितना पाक साफ दिखाना चाहता है, वह उतना ही संदेह के घेरे में घिरता जा रहा है। उन्होंने कहा कि चीन को यह फैसला करने का अधिकार नहीं दे सकते कि इस सदी की सबसे भयंकर महामारी को लेकर हमें जांच करनी चाहिए या नहीं। डब्ल्यूएचओ के सलाहकार ने कहा कि महामारी के संबंध में पूरी जांच को लेकर हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए।

दूसरी ओर अमेरिका सरकार की राष्ट्रीय प्रयोगशाला ने 2020 में एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें कहा गया था कि कोरोना वायरस चीन की वुहान प्रयोगशाला से लीक हुआ है। वाल स्ट्रीट जर्नल ने गोपनीय दस्तावेज तक पहुंच रखने वाले लोगों के हवाले से यह जानकारी दी है। कैलिफोर्निया स्थित राष्ट्रीय प्रयोगशाला ने मई 2020 में अपनी रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें इसने वुहान लैब से वायरस लीक होने की बात करते हुए आगे जांच की जरूरत बताई थी। अमेरिकी प्रयोगशाला ने सार्स-सीओवी-2 वायरस के जीनोम विश्लेषण के जरिए यह निष्कर्ष निकाला था।

यह आशंका इसलिए जताई जा रही है, क्योंकि चीन की सरकार ने इस बीमारी के फैलने की जानकारी सार्वजनिक नहीं की थी। पहली बार यह बीमारी चीन से ही सामने आई। इससे पहले वर्ष 1996 में बर्ड फ्लू भी चीन से ही फैला था। वर्ष 2003 में साॅर्स नामक वायरस दक्षिण चीन से फैला जिसकी चपेट में दुनिया के 26 देश आए थे। इसी तरह 2012 में चीन से ही मर्स नामक वायरस फैला था। जिसने 27 देशों में इतना खतरनाक आतंक मचाया कि आठ सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इन सभी वायरसों का जन्म उसी वुहान शहर से हुआ, जहां चीन की वायरोलाॅजी पी-4 प्रयोगशाला है, जिससे वैज्ञानिकों को शक है कि कोरोना वायरस किसी अन्य वायरस के जीन में वंशानुगत परिवर्तन करते समय किसी कारण से प्रयोगशाला से निकल गया।

संदेह उठ रहे हैं कि कहीं चीन चुपके- चुपके जैविक हथियार तो तैयार नहीं कर रहा है? शुरुआती दो महीनों में तो चीन कोरोना वायरास को मामूली बीमारी बताता रहा था। जब इसने विकराल रूप ले लिया तब जाकर उसने इसकी जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों से साझा की। लेकिन तब तक इस बीमारी ने दुनियाभर में अपने पैर जमा लिए थे। चीन के मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हांकिंग ने मानव समुदाय को सुरक्षित बनाए रखने की दृष्टि से जो चेतावनियां दी थी, उनमें से प्रमुख चेतावनी अनुवांशिक अभियांत्रिकी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) से खिलवाड़ करना भी है।

खासतौर से चीन और अमेरिकी वैज्ञानिक वायरस और बैक्टिरिया से प्रयोगशालाओं में एक तो नए वायरस और जीवाणु तैयार कर रहे हैं, दूसरे उनकी मूल प्रकृति में बदलाव कर उन्हें और ज्यादा खतरनाक बना रहे हैं। इनका उत्पादन मानव स्वास्थ्य हित के बहाने किया जा रहा है। लेकिन ये बेकाबू हो गए तो तमाम मुश्किलों का भी सामना करना पड़ सकता है।

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