तालिबान के सत्ता में आने से देश चौतरफा संकट में है। आम नागरिकों के लिए खाद्य पदार्थ और बेरोजगारी की समस्या एक बड़ी चुनौती बन गई है। हालात इतने खराब हो चले हैं कि दो वक्त की रोटी के लिए अपनी किडनी तक बेचने को मजबूर हैं। ऐसी स्थिति में हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने आगाह किया है कि बढ़ती गरीबी से जूझ रहे अफगानिस्तान के 60 लाख लोगों पर अकाल से प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है।
कोरोना से हो रही मौतों के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा हो, लेकिन सत्ता लालसा के चलते विश्व भर में जो लाखों लोग मर रहे हैं, भुखमरी के कगार पर हैं, अपनी माटी, अपना वतन छोड़ रहे हैं, घर से बेदखल हो रहे हैं। आंतकवाद, नक्सलवाद, साम्राज्यवाद, आर्थिकवाद के चलते विश्व में जो अफरा-तफरी मची है, आखिर इस सबका जिम्मेदार कौन है? ऐसे में पड़ोसी देश अफगानिस्तान में बीस साल बाद तालिबान के सत्ता में आने से देश चौतरफा संकट में है। आर्थिक संकट से जूझ रहे आम नागरिकों के लिए खाद्य पदार्थ और बेरोजगारी की समस्या एक बड़ी चुनौती बन गई है। हालात इतने खराब हो चले हैं कि आम नागरिक लोग दो वक्त की रोटी के लिए अपनी किडनी तक बेचने को मजबूर हैं। ऐसी स्थिति में हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने आगाह किया है कि बढ़ती गरीबी से जूझ रहे अफगानिस्तान के 60 लाख लोगों पर अकाल का खतरा मंडरा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र ने दान-दाताओं से अनुरोध किया कि वे आर्थिक विकास के लिए वित्त मुहैया करना फिर से शुरू करें और ठंड के मौसम में अफगानिस्तान की मदद के लिए तुरंत 77 करोड़ अमेरिकी डॉलर मुहैया करें। मार्टिन ग्रिफिथ्स ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया कि मानवीय, आर्थिक, जलवायु, भुखमरी और वित्तीय संकट जैसे कई संकटों का अफगानिस्तान सामना कर रहा है। संघर्ष, गरीबी, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और खाद्य असुरक्षा लंबे समय से अफगानिस्तान की एक दुखद वास्तविकता रही है।
जो चीज अफगानिस्तान के मौजूदा हालात को ‘इतना गंभीर’ बनाती है, वह है एक साल पहले तालिबान द्वारा काबुल की सत्ता पर कब्जा किये जाने के बाद से बड़े पैमाने पर विकास सहायता को रोक दिया जाना। मार्टिन ने कहा कि अफगान की आधी से अधिक आबादी यानी लगभग 2.4 करोड़ लोगों को राहत सहायता की आवश्यकता है और करीब 1.9 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा की गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं। ‘‘हमें चिंता है कि हालात जल्द ही बदतर हो जाएंगे, क्योंकि सर्दियों का मौसम पहले से ही काफी उच्च स्तर पर पहुंच चुकी ईंधन और खाद्य सामग्री की कीमतों को आसमान पर पहुंचा देगा। उन्होंने कहा कि चुनौतियों के बावजूद संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों और उनके गैर सरकारी संगठन साझेदारों ने पिछले एक साल में लगभग 2.3 करोड़ लोगों तक पहुंचने के लिए अभूतपूर्व कदम उठाया। सर्दियों के मौसम की तैयारी के लिए 61.4 करोड़ डॉलर की तत्काल आवश्यकता है, जिसमें आवास की मरम्मत-उन्नयन और गर्म कपड़े और कंबल प्रदान करने का खर्च शामिल है।
ठंड के कारण कुछ क्षेत्रों से संपर्क कट जाने से पहले, वहां तक भोजन और अन्य आपूर्ति के लिए अतिरिक्त 15.4 करोड़ डॉलर की जरूरत है। तालिबान के पास अपने देश के भविष्य के लिए निवेश करने के लिए कोई बजट नहीं है, इसलिए यह स्पष्ट है कि कुछ विकास सहायता शुरू करने की आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 70 प्रतिशत से अधिक अफगानों के लिए मार्टिन ने चेतावनी दी कि यदि कृषि और पशुधन की रक्षा नहीं की गई, तो लाखों लोगों का जीवन और आजीविका खतरे में पड़ जाएगी।
गौरतलब है कि तालिबान का इतिहास अत्याचारों से भरा पड़ा है लेकिन पिछले साल 15 अगस्त को अफगानिस्तान में अपनी वापसी करने के बाद तालिबान ने अफगानी जनता को भरोसा दिलाया था कि यह शासन तालिबान के पिछले शासन से अलग होगा, पिछली बार की तरह क्रूर नहीं होगा। इस बार के शासन में जनता के प्रति सरकार का रवैया अलग होगा। इसके साथ ही वह ‘दोहा एग्रीमेंट’ का पालन करेंगे। लेकिन अब सत्ता में आए एक साल से भी ज्यादा समय बीत गया है। फिर भी देश कुछ बदलता नहीं दिख रहा है।
दरअसल,अफगानिस्तान में तालीबानी सत्ता के बाद से अभी तक अंतरराष्ट्रीय स्तर से किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिल पाई है और इसके अलावा अफगानिस्तान की विदेशी मुद्रा भंडार पर भी तमाम देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है।अफगानिस्तान पिछले पांच दशक से भी ज़्यादा समय से लगातार युद्ध व आतंकवाद का शिकार रहा है। जिस कारण वहाँ की अर्थव्यवस्था नष्ट हो गई है। इसी कारण वह अपनी अर्थव्यवस्था के लिए पिछले कई दशकों से दूसरे देशों के अनुदान व सहयोग पर ही निर्भर है। तालिबानी सत्ता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता न मिलने के कारण आर्थिक लेन-देन भी प्रतिबंधित हो रखा है जिस कारण भी वहाँ की अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय बाजार से कोई सहायता नहीं मिल पा रही है।