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अमेरिका में श्वेत बनाम अश्वेत का मुद्दा फिर गरमाया

अमेरिका में जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन में समर्थकों ने जमकर उत्पात काटा और हिंसा को अंजाम दिया, उसके बाद पूरी दुनिया में इस घटना की निंदा हो रही है। कई देशों के राजनेताओं द्वारा इस घटना की कड़ी निंदा की गई है।

गौरतलब है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सैकड़ों समर्थकों ने अमेरिकी कैपिटल पर धावा बोल दिया, खिड़कियां तोड़ दीं और जमकर कहर बरपाया। इस बीच अब इस घटना की कई राजनेता और कार्यकर्ता पिछले साल के ब्लैक लाइव्स मैटर के विरोध प्रदर्शनों के बीच पुलिस की प्रतिक्रिया से जोड़कर तुलना कर रहे हैं।

आपको याद होगा पिछले साल अमेरिका में एक अश्वेत युवक की मौत के बाद लोगों का गुस्सा सड़को पर ऐसा फूटा कि पूरा शहर हिंसा की आग में जलने लगा था। अमेरिका में उस समय अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड (George Floyd) की पुलिस हिरासत में मौत की वजह से भयंकर बवाल मच गया था। पूरे अमेरिका में जॉर्ज की मौत के बाद हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। कई लोगों की जानें भी गई। कइयों को पुलिस ने गिरफ्तार किया। अमेरिका की सम्पति को अरबों डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा। यहां तक कि व्हाइट हाउस के बाहर भारी विरोध प्रदर्शन के कारण राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप को बंकर में जाना पड़ा। जिसके बाद अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड न्‍याय और बराबरी मांग के प्रतीक बन गए।

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पूरी दुनिया उस 25 मई की घटना को नहीं भूली है जब अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड को पुलिस ने पकड़ा, तो उन्होंने कहा कि उन्हें सांस लेने में दिक्क्त हो रही है। लेकिन पुलिस की बर्बरता के कारण पुलिस हिरासत में उनकी मौत हो गई। बाद में यह वीडियो पूरे अमेरिका में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसके बाद पूरे अमेरिका में हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। अश्वेत लोगों की भलाई के लिए लड़ने वाले सबसे प्रसिद्ध संगठनों में से एक ने 6 जनवरी, बुधवार के दंगों को “तख्तापलट” के रूप में वर्णित किया है।  समूह ने कहा कि यह “विरोध करने के लिए हमारे देश की कानून प्रवर्तन प्रतिक्रिया में पाखंड का एक और उदाहरण है।”

समूह ने एक बयान में कहा, “जब श्वेत लोग हमारे जीवन का विरोध करते हैं, तो हम सभी अक्सर नेशनल गार्ड सैनिकों या पुलिस से मिलते हैं, जो राइफल, शील्ड, आंसू गैस और बैटल हेलमेट से लैस होते हैं।” “कोई गलती न करें, अगर प्रदर्शनकारी काले होते, तो हमें गाड़ दिया जाता, पस्त कर दिया जाता, और शायद गोली मार दी जाती।”

मानवाधिकारों, पेशेवर ताक़तों और लोकतांत्रिक मानदंडों पर चलने को लेकर अमेरिका हमेशा से सभी दूसरों देशों को भाषण देता रहता है। लेकिन जॉर्ज फ्लॉयड, ब्रेओना टेलर और वैसी अन्य हत्याओं को लेकर ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग किए जाने की वजह से अमेरिकी पुलिस आलोचना की शिकार भी हुई है। हर साल सैंकड़ो की संख्या में अमेरिकी पुलिस के हाथों लोग मरते हैं। खासकर संघर्ष का सामना करते हैं अश्वेत लोग।

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साल 2019 में अमेरिकी पुलिस द्वारा एक ब्लैक महिला को उनकी बेडरूम की खिड़की से ही तड़के गोली मार दी गई थी। पिछले साल पुलिस ने एक ब्लैक व्यक्ति को गोली मार दी और पुलिस के मुताबिक़ ये एक घरेलू घटना बताई गई।

इन घटनाओं की 6 जनवरी, बुधवार को हज़ारों ट्रंप समर्थकों के ख़िलाफ़ पुलिस की कार्रवाई से तुलना की जाए तो जहां ज़्यादातर गोरे पुलिस से भिड़ गए, कैपिटल बिल्डिंग के अंदरूनी हिस्सों में तोड़फोड़ की, दीवारों पर चढ़ गए, खिड़कियां तोड़ दीं और इमारत में फैल गए। अगर वहीं अश्वेत लोग होते तो अब तक उन्हें मौत की घाट उतार दिया जाता। पुलिस का अमानवीय चेहरा सबके सामने उजागर होता। कई एक्टिविस्टों ने इसे पुलिस का दोहरा रवैया बताया है। पूरी दुनिया भी खुली आँखों से इस पर नजर रखे हुए है।

रिपब्लिकन शहाब क़रनी ने कहा, “अगर किसी अफ्ऱीकी-अमेरिकी अश्वेत ने कैपिटल हिल का एक कांच भी तोड़ा होता तो सोचिए पुलिस और नेशनल गार्ड की क्या प्रतिक्रिया होती। वॉशिंगटन डीसी जल रहा होता। ” उन्होंने कहा, “फ़िलहाल जो एक्शन लिया गया वो एक धोखा है। ऐसा लग रहा है कि अमेरिका दो भागों में विभाजित हो गया है और बीच में एक लाइन खिंच गई है।”

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6 जनवरी, बुधवार को अमेरिकी संसद पर हिंसा की घटना देश के राजनीतिक और वैचारिक विभाजन को दर्शाती है, जहां अराजकता की तस्वीरों ने शर्मिंदगी और अमेरिका को खुद में झाँकने पर मजबूर कर दिया है।

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