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पर्यावरण के लिए जो करोड़ो-अरबों की योजनाएं नहीं कर पाई, वह कोरोना ने कर दिखाया

भारत में कोविड-19 का पहला मामला केरल के थ्रीसुर में जनवरी 2020 में दर्ज किया गया था। अभी दिसंबर 2020 में 90-वर्षीय ब्रिटेन का एक नागरिक इस संक्रमण के खिलाफ टीका लेने वाला दुनिया का पहला व्यक्ति बना। इन्हीं दो मामलों के मध्य में वर्ष 2020 का विस्तार रहा। इसे मास्क और सैनीटाईजर का साल कहा जा सकता है। दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत भी इस संक्रमण से बुरी तरह प्रभावित रहा। हमलोग 2021 की दहलीज पर खड़े हैं और अभी भी इसकी आंच महसूस हो रही है। चुनौतियों के इस साल में प्रकाशन के क्षेत्र में भी ढेरों मुश्किलें आयीं।

 

कोरोना महामारी ने बहुत सारी चुनौतियां पैदा करने के साथ ही बेहतर पर्यावरण की तरफ भी दुनिया का ध्यान खींचा है। इस दौरान लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों की वजह से लोगों को घरों में रहने को बाध्य होना पड़ा, जिससे कार्बन उत्सर्जन में बड़ी कटौती देखने में आई। अगर वैश्विक स्तर पर देखें तो इस दौरान कार्बन उत्सर्जन में 5.5 फीसदी की कमी आई है। कार्बन मीटर की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कार्बन उत्सर्जन में बीते साल के बनिस्पत 9.9 फीसदी की कमी आई है। 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस को मनाए जाने के पीछे उद्देश्य है पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाना। हर साल विश्व पर्यावरण दिवस को एक थीम दी जाती है। विश्व पर्यावरण दिवस 2020 की थीम है प्रकृति के लिए समय। इसका मकसद पृथ्वी और मानव विकास पर जीवन का समर्थन करने वाले आवश्यक बुनियादी ढांचे को प्रदान करने पर ध्यान दिया जाए। कोरोना महामारी के दौरान लगभग सभी देशों में आवाजाही बंद कर दी गई थी। लोग घरों में कैद हो गए थे। सड़कों पर सन्नाटा छा गया था।

 

गाड़िया थमी तो हवा में शुद्धता बढ़ी, लोगों की आवाजाही कम हुई तो सड़कों पर गाड़ियों के झुंड दिखने बंद हुए। सभी तीर्थ स्थल बंद कर दिए गए थे। इसका फायदा यह हुआ कि नदियां साफ हुई, जहां सरकारे नदियों को साफ करने के लिए करोड़ो रूपए खर्च करती है लॉकडाउन ने बिना कुछ लिए नदियों को साफ कर दिया। नदियों के पानी की गुणवत्ता में बढ़ोतरी हुई। प्रदूषण से लोगों को राहत मिली। अगर, आप राजधानी दिल्ली से पड़ोसी शहर नोएडा के लिए निकलें, तो पूरा मंज़र बदला नज़र आता थे। सुबह अक्सर नींद अलार्म से नहीं, परिंदों के शोर से खुलने लगी थी। जिनकी आवाज़ भी हम भूल चुके थे। इतना नीला आसमान, दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले बहुत से लोगों ने ज़िंदगी में शायद पहली बार देखा हो। फ़लक पर उड़ते हुए सफ़ेद रूई जैसे बादल बेहद दिलकश लग रहे थे। सड़कें वीरान तो थी, मगर मंज़र साफ़ हो गया था। सड़क किनारे लगे पौधे एकदम साफ़ और फूलों से गुलज़ार। यमुना नदी तो इतनी साफ़ कि पूछिए ही मत।

लॉकडाउन की वजह से तमाम फ़ैक्ट्रियां बंद थी। यातायात के तमाम साधन बंद थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था को भारी धक्का लग रहा था, लाखों लोग बेरोज़गार हुए। शेयर बाज़ार ओंधे मुंह आ गिरा था, लेकिन अच्छी बात ये है कि कार्बन उत्सर्जन रुक गया था। अमरीका के न्यूयॉर्क शहर की ही बात करें तो पिछले साल की तुलना में इस साल वहां प्रदूषण 50 प्रतिशत कम हो गया है।

हर साल की तरह इस साल भी इस वन में आग लगी है। पृथ्वी का फेफड़ा फिर से जल रहा है। अमेज़ॉन वन में हजारों वार आग लगती है। ये आग ज्यादातर अगस्त,सितम्बर और अक्टूबर के माह में लगी आग भयानक रूप ले लेती है। पिछली साल यह पर 88,000-90,000 हजार बार आग लगी थी। पिछले साल जो आग लगी थी इतनी भयानक थी कि इसका धुँआ अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता था। इस धुएं की वजह से अमेज़ॉन वन से 2000 किलोमीटर दूर स्थित साओ पौलो एक सहर है जहा पर धुएं की वजह से अँधेरा छाया था। इससे आप समझ सकते है की आग कितनी बड़ी लगी थी। 018 से 85% ज्यादा आग 2019 में लगी जबकि 2020 में 2019 से 13% ज्यादा आग लगी है। अमेज़ॉन वन के लिए सरकार भी कुछ ज्यादा उपाए नहीं करती है। आग लगने से पेड़ पौधे जल जायेंगे तो वह जमीन के अंदर दबे हुए खनिजों को निकाल सके यह कारण है की आग लगने पर सरकार कुछ नहीं करती है। पेड़ काट नहीं सकते इसलिए आग का सहर ले कर वन को ख़तम किया जा रहा है। कुछ प्राकृतिक की वजह से तो कुछ खुद ही आग लगवाते है जिससे वन ख़तम हो सके और अपना स्वार्थ सिद्ध कर सके।

आरे जंगल में करीब 2600 से ज्यादा पेड़ों को काटकर मेट्रो शेड के लिए इस्तेमाल किए जाने की योजना बनाई गई थी। गोरेगांव और फिल्मसिटी के पास स्थित इस इलाके के पेड़ों को काटे जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया था और इस इलाके को जंगल मानने से इनकार कर दिया था।

जिस उम्र में बच्चे अपना शौक पूरा करने के लिए अपने माता-पिता से जिद करते हैं, उस उम्र में एक लड़की पूरी दुनिया में क्लाइमेंट चेंज के खिलाफ मुहिम की झंडाबरदार बन गई है। दुनियाभर में मौसम में हो रहे परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) को लेकर अलख जगाने वाली 16 साल की यह लड़की स्कूल छोड़कर यह काम कर रही है। वह धरती बचाने की लड़ाई लड़ रही थी। स्वीडन की रहने वाली इस लड़की का नाम ग्रेटा थनबर्ग है। वह जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनियाभर में जागरूकता फैला रही है। थनबर्ग ने कार्बन उत्सर्जन घटाने की पहले सबसे पहले अपने घर से की। इसके तहत उन्होंने अपने माता पिता को कम से कम हवाई यात्राएं करने और मांस न खाने की अपील की। इससे ग्रीन हाउसों को उत्सर्जन कम होता है। ग्रेटा का जन्म स्वीडन में जनवरी 2003 में हुआ था। उनकी मां ओपेरा गायिका और पिता अभिनेता हैं। ग्रेटा को इस साल नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। यहां एक तरफ कोरोना ने दुनिया को हिलाया तो वहीं पर्यावरण पर इसके अच्छे परिणाम देखने को मिले।

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