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जितनी बड़ी जीत, उतनी बड़ी चुनौतियां

ट्रंप की तरह ही बाइडन भी अपने चुनावी अभियान में चीन के खिलाफ मुखर रहे। जाहिर है कि चीन के प्रति अमेरिका का रुख सख्त ही रहेगा। भारत इस लिहाज से फायदे में है कि बाइडन भारतीय मूल के अमेरिकियों की अहमियत बखूबी समझते हैं। यही वजह है कि उन्होंने कमला हैरिस को अपने साथ उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया फिर अमेरिका के विकास में भी भारतीय योगदान दे रहे हैं

 

अमेरिका के राष्ट्रापति चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन ने अब तक की सबसे बड़ी ऐतिहसिक जीत हासिल की है। देश भर में लोग बड़े उत्साह से उनकी जीत का जश्न मना रहे हैं। निवर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप को 214 के मुकाबले 290 इलेक्टोरल मतों से मात देने वाले जो बाइडन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति होंगे। कोरोना महामारी के बीच हुए इस चुनाव में बाइडन को भारी सफलता मिली है, लेकिन अब राष्ट्रपति के रूप में उनके सामने चुनौतियां भी बहुत बड़ी है। एक तरफ उन्हें अपने देश की जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरनाक है, तो दूसरी तरफ भारत, चीन आदि देशों से अमेरिका के संबंध क्या रहें, इस बारे में संतुलन बनाना होगा।

जानकारों के मुताबिक सत्ता संभालने से पहले बाइडन के रास्ते में अभी निवर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप बहुत बड़ी चुनौती हैं। टं्रप उनकी राह में ऐसे हो सकते हैं जिन पर चलकर आगे बढ़ने में बाइडन को निश्चित तौर पर दिक्कतें होंगी।

विशेषज्ञों और पूर्व अधिकारियों का कहना है कि ट्रंप बाइडेन के हाथ बांधने के लिए अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में कुछ विघटनकारी कदम उठा सकते हैं। ट्रंप के निशाने पर चीन हो सकता है। गौरतलब है कि कोरोना महामारी और अमेरिका की अर्थव्यवस्था को लेकर ट्रंप ने लगातार चीन पर हमला बोला है। चाइना मून स्ट्रैटेजीज के प्रमुख और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के पूर्व अधिकारी जेफ मून ने के मुताबिक ट्रंप की इस बात को गंभीरतर से लिया जाना चाहिए कि वह कोविड-19 को लेकर चीन को दंड देंगे। मार्क मैग्नियर लिखते हैं कि पहले से ही कमजोर अमेरिका-चीन संबंधों को खराब करने और वैश्विक पर्यावरण और स्वास्थ्य मुद्दों पर द्विपक्षीय सहयोग में सुधार करने के लिए बाइडेन प्रशासन के कदम को कमजोर करना एक तरीका हो सकता है। इसके लिए ताइवान को शामिल किया जा सकता है। झिंजियांग में उइगुर मुस्लिमों पर बड़े पैमाने पर किए गए अत्याचार को लेकर ट्रंप पहले ही चीन की आलोचना कर चुके हैं। लेकिन इस बार वह इससे आगे बढ़ते हुए कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों का वीजा ब्लॉक करने का प्रयास कर सकते हैं। माना जा रहा है कि वह बीजिंग में होने वाले 2022 शीतकालीन ओलंपिक में भाग लेने वाले अमेरिकी एथलीटों को रोकने के लिए आदेश पारित कर सकते हैं। इसके अलावा ट्रंप चीन सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। माना जा रहा है कि वह टिकटॉक और वीचौट से आगे बढ़ते हुए अन्य चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। वहीं, ट्रंप के पास हुआवेई टेक्नोलॉजीज पर भी प्रतिबंध लगाने का विकल्प है।

ट्रंप के चीन पर 5 बड़े आरोप

 

  • चीन ने कोरोनावायरस फैलाया। अमेरिका के पास इसके सबूत। बीजिंग को इसकी कीमत चुकानी होगी। साउथ चाइना सी पर कब्जा करके चीन दुनिया के 30 फीसदी कारोबार पर कब्जा करना चाहता है।
  • भारत समेत पड़ोसी देशों की जमीन पर कब्जा करना चाहता है चीन। पड़ोसियों को धमका रहा बीजिंग।
  • चीन दुनिया के हर लोकतांत्रिक देश के लिए खतरा। उसके यहां मानवाधिकार जैसी कोई चीज नहीं।
  • सायबर सिक्योरिटी और ट्रेड के मामले में अमेरिका अब चीन को कोई राहत नहीं देगा।

 

ऐसे माहौल के बीच बाइडेन, डोनाल्ड ट्रंप के रूप में एक ऐसे प्रतिद्विंदी के सामने खड़े थे जो पहले के राष्ट्रपतियों से पूरी तरह अलग रहे हैं। कोरोना वायरस महामारी अमेरिका में दो लाख तीस हजार लोगों की जान ले चुका है और इसने वहां के लोगों की जिंदगियों के साथ-साथ राजनीति को उलट कर रख दिया है। चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में खुद डोनाल्ड ट्रंप ने ये बात स्वीकार की थी।

ट्रंप के अशंकाएं करोड़ों को पार करने के बाद बाइडन की बड़ी चुनौती यह तय करने की होगी कि विदेशों से अमेरिका के संबंध कैसे रहें। जहां तक भारत का प्रश्न है, बाइडन तहेदिल चाहेंगे कि चार से अमेरिका के संबंध अचदे रहें। पहली बात यह है कि अमेरिकी चुनाव में पहली बार भारतीय मूल के वोटर बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं। 16 राज्यों में इनकी संख्या कुल अमेरिकी आबादी के एक प्रतिशत से ज्यादा हुआ। लेकिन खास बात ये है कि 13 लाख भारतीय उन 8 राज्यों में रहते हैं जहां कांटे का मुकाबला है। ऐसे में किसी भी पार्टी के लिए एक-एक वोट कीमती हो जाता है। याद रहे कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा लगाया था। ट्रंप भी गाहे-बगाहे भारत के प्रति अपना प्रेम जाहिर करते आए हैं।

भारत के लिए तो ट्रंप से पहले के राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पार्टी डेमोक्रेटिक भी करीब की रही है। तभी तो बाइडेन ने न केवल भारतीय मूल की कमला हैरिस को रनिंग मेट बनाया, बल्कि भारतीय अमेरिकियों के लिए अलग से चुनाव घोषणा पत्र भी जारी किया। इतना समझ लीजिए कि नंबरों से इसका कोई संबंध नहीं है। कार्नेगी एनडाउमेंट रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में 19 लाख भारतीय मूल के वोटर हैं। यानी कुल वोटर्स का 0.82 प्रतिशत हिस्सा। आप कहेंगे कि यह कैसे रिजल्ट प्रभावित कर सकते हैं? जवाब के लिए आपको अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया को समझना होगा। यहां सबसे ज्यादा वोट पाने वाला कैंडीडेट नहीं जीतता, बल्कि वह राष्ट्रपति बनता है, जिसके पास इलेक्टोरल कॉलेज के कम से कम 270 इलेक्टर का साथ होता है।

अमेरिकी चुनावों में देसी अमेरिकियों का दूसरा महत्व है, उनकी कमाई। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडियन ओरिजिन (एएपीआई) के मुताबिक, 2018 में भारतीय अमेरिकी वोटर्स की सालाना आय 1.39 लाख डॉलर थी। गोरे, हिस्पैनिक और अश्वेत वोटर्स की औसत सालाना आय 80 हजार डॉलर से कम थी। साफ है कि भारतीय समुदाय अमेरिका के प्रभावशाली तबके में आता है।

 

बाइडन का चीन पर रवैया अब तल्ख

 

  • चीन ने अमेरिकी चुनाव में दखल की साजिश रची। बख्शा नहीं जाएगा।
  • अमेरिकी कंपनियों को चीन में परेशान किया जा रहा है। माकूल जवाब देंगे।
  • मानवाधिकारों के मसले पर चीन का रिकॉर्ड दुनिया में सबसे खराब। जवाबदेही तय करेंगे।
  • हॉन्गकॉन्ग, तिब्बत और वियतनाम में चीन की मनमानी नहीं चलेगी। साउथ चाइना सी में अमेरिकी बेड़ा स्थायी करेंगे।

 

भारत के लिए भी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के अहम मायने हैं। कोरोना वायरस, ट्रेड वॉर, सायबर सिक्योरिटी और साउथ चाइना सी। ये कुछ मामले ऐसे हैं, जिनको लेकर चीन और अमेरिका में तनाव है। दूसरी तरफ, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद जारी है। बाइडेन के कैम्पेन पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि चीन के प्रति उनका रुख सख्त ही रहेगा।

जानकारों के मुताबिक भारत हो या अमेरिका। दोनों के लिए इस वक्त चीन ही सबसे बड़ी चुनौती है। अमेरिका के सुपर पावर के दर्जे को शी जिनपिंग चुनौती देते आ रहे हैं। दूसरी तरफ, भारत की जमीन पर बीजिंग की लालच भरी नजरें टिकी हैं। दोनों चीन की चालों को नाकाम करने के लिए साथ आ रहे हैं। दोनों देशों के बीच कुछ दिन पहले मिसाइल डिफेंस और सर्विलांस पैक्ट हुआ। बाजार, आकार और भरोसे के लिहाज से एशिया में चीन को टक्कर देने की ताकत सिर्फ भारत में है। इसलिए, अमेरिका हर हाल में भारत का साथ चाहेगा।

चीन अब अमेरिकी सुरक्षा, आर्थिक हितों और संस्कृति के लिए सबसे बड़ा खतरा और चुनौती बन चुका है। उस पर शिकंजा काफी पहले कसना चाहिए था, लेकिन अब भी देर नहीं हुई। अमेरिका को फिर अपने मित्र राष्ट्रों, नाटो और दूसरे गठबंधनों को साथ लाना होगा। अगर ऐसा हुआ तो मुकाबला मुश्किल नहीं होगा। अमेरिकी अफसर इस पर बहुत तेजी से काम कर रहे हैं। सियासत इस मामले में बाधा नहीं बनेगी।

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