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अफगान में आतंकी सरकार

अफगानिस्तान में तालिबान की ताजपोशी के साथ ही यह अहम सवाल खड़ा हो गया है कि जिस सरकार का नेतृत्व वैश्विक आतंकियों के हाथों में हो, क्या उसे दुनिया के मुल्क मान्यता दे सकेंगे

अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा की जा रही बर्बरता ने पूरी दुनिया को चिंतित किया है। संयुक्त राष्ट्र से लेकर दुनियाभर की सरकारें अफगानिस्तान में शांति कायम किए जाने की बात कर रही हैं। पड़ोसी देश में घट रही घटनाओं से भारत में भी लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं। लोगों को लग रहा है कि अफगानिस्तान में तालिबानी शासन स्थापित होने से भारत सहित पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में आतंकी घटनाओं में वृद्धि हो सकती है। इस बीच अफगानिस्तान में तालिबान ने एक अंतरिम सरकार का गठन कर दिया है। अफगानिस्तान में तालिबान ने वैश्विक आतंकी मुल्ला हसन अखुंद को ‘इस्लामिक अमीरात’ का प्रधानमंत्री नियुक्त किया है, जबकि अमेरिका के मोस्ट वांटेड आतंकी मुल्ला बरादर को तालिबान सरकार में गृहमंत्री बनाया गया है। सरकार में नंबर एक और दो पद पर वैश्विक आतंकियों की नियुक्ति से दुनिया में तहलका मचा हुआ है। 17 आतंकी सरकार में हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आतंकियों के प्रमुख पदों पर रहते हुए कोई भी देश तालिबान सरकार को मान्यता कैसे दे सकता है। अफगानिस्तान में तालिबान की नई सरकार की चाल-ढाल क्या होगी, इसकी झलक अभी से ही दिखनी शुरू हो गई है। सरकार गठन के साथ ही तालिबानी शिक्षा मंत्री नूरूल्ला मुनीर का एक अजीबो-गरीब बयान आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि आज के नूरुल्ला मुनीर का वक्त में पीएचडी डिग्री और मास्टर की डिग्री की कोई वैल्यू नहीं है। आप देख सकते हैं कि मुल्ला और तालिबान तालिबानी नेता आज सत्ता में हैं और इनमें से किसी के पास कोई डिग्री नहीं है। पीचएडी, एमए तो छोड़िए, यहां तक कि इनके पास हाईस्कूल की डिग्री तक नहीं है।

अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का मुखिया बना मुल्ला हसन अखुंद संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल है। मुल्ला मोहम्मद हसन वर्तमान में तालिबान के शक्तिशाली निर्णय लेने वाले निकाय रहबारी शूरा या नेतृत्व परिषद का प्रमुख है। वह तालिबान के जन्मस्थान कंधार से ताल्लुक रखता है और आतंकी आंदोलन के संस्थापकों में से एक है। अखुंद ने रहबारी शूरा के प्रमुख के रूप में 20 साल तक काम किया है और बहुत अच्छी प्रतिष्ठा अर्जित की। वह एक सैन्य पृष्ठभूमि के बजाय एक धार्मिक नेता है। अफगानिस्तान का गृहमंत्री या आंतरिक मंत्री बना सिराजुद्दीन हक्कानी अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई की हिटलिस्ट में शामिल है। अमेरिकी सरकार ने तो बाकायदा इस आतंकी के ऊपर 5 मिलियन डॉलर (करीब 36 करोड़ रुपये) का इनाम भी रखा हुआ है। पिता जलालुद्दीन हक्कानी की मौत के बाद सिराजुद्दीन हक्कानी, हक्कानी नेटवर्क की कमान संभाले हुए है। हक्कानी समूह पाकिस्तान-
अफगानिस्तान सीमा पर तालिबान की वित्तीय और सैन्य संपत्ति की देख-रेख करता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हक्कानी ने ही अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों की शुरुआत की थी। हक्कानी नेटवर्क को अफगानिस्तान में कई हाई-प्रोफाइल हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। उसने तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या का प्रयास भी किया था।

वैश्विक आतंकियों पर लागू होते हैं ऐसे प्रतिबंध

संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार आतंकी सूची में शामिल लोगों को सभी देश बिना देरी किए संबंधित व्यक्ति, समूह या संस्था का धन, वित्तीय संपत्ति और आर्थिक संसाधनों को जब्त कर लेते हैं। जिस भी देश में इन आतंकियों के नाम से कोई भी संपत्ति या बैंक अकाउंट होगा उसे तुरंत ही जब्त कर लिया जाएगा।

यात्रा पर प्रतिबंध प्रतिबंधित

सूची में शामिल लोगों पर विश्व के किसी भी देश में आने-जाने पर प्रतिबंध लग जाता है। इसके अलावा वह जिस देश में हैं उसमें भी स्वतंत्र रूप से यात्रा नहीं कर सकते हैं। कोई भी देश ऐसे आतंकियों को न तो वीजा जारी कर सकता है और न ही अपने देश में शरण दे सकता है। हथियार खरीदने-बेचने पर प्रतिबंध संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में शामिल होते ही संबंधित व्यक्ति या संस्था को किसी भी देश या संगठन द्वारा हथियारों की खरीद-फरोख्त, उसके पुर्जों, मैटेरियल, तकनीकी की जानकारी देने पर प्रतिबंध लग जाता है। प्रतिबंधित व्यक्ति या संस्थान किसी भी देश का झंडा लगा हवाई जहाज या शिप का उपयोग नहीं कर सकता है।

तालिबान सरकार को कैसे मिलेगी मान्यता?
दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दो या दो से अधिक वैश्विक आतंकी किसी सरकार में सबसे ऊंचे ओहदे पर बैठे हुए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जिन- जिन देशों ने इन आतंकियों पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं, वे आखिरकार तालिबान सरकार को मान्यता कैसे देंगे। अगर ये देश नियमों तो ताक पर रखकर मान्यता देते हैं तो इसे आतंकवाद के साथ समझौता माना जाएगा। इसके साथ ही एक नई मिसाल कायम होगी कि क्या आतंकी होने के बावजूद सरकार का प्रमुख बनने पर सभी अपराध माफ हो जाते हैं।

कैसे हटेगा वैश्विक और मोस्ट वांटेड का तमगा?
मुल्ला हसन अखुंद और सिराजुद्दीन हक्कानी के ऊपर से वैश्विक आतंकी और मोस्ट वांटेड का तमगा हटाना कोई आसान बात नहीं है। अगर कोई आतंकी संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आतंकियों वाली सूची में शामिल होता है, तो वह दुनियाभर के अधिकतर देशों में अपने आप ही  प्रतिबंधित हो जाता है। भारत भी संयुक्त राष्ट्र के डेजिग्नेटेड टेररिस्ट सूची को मान्यता देता है। ऐसे में इन देशों के लिए तालिबान सरकार को मान्यता देना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।

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