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अरब क्रांति के दस साल: तानाशाही को सबक तो मिला, मगर गृहयुद्ध और अराजकता के हालात भी बने

अक्सर दुनिया के कई देशों ने तानाशाह से छुटकारा पाने के लिए क्रांति का सहारा लिया है। कुछ जगहों पर हुई क्रांतियों ने अपनी बात मनवाई और अपने देश में लोकतंत्र को कायम किया। अरब में हुई क्रांति को दस साल हो चुके हैं। जिसे अरब वसंत क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। अरब क्रांति ने अरब के कुछ देशों में शांति बहाल की तो कुछ में अभी भी अराजकता, हिंसा, लूटपाट और गृहयुद्ध जैसी स्थितियां बनी हुई है। ट्यूनीशिया से शुरू हुई यह क्रांति सीरिया, यमन, बहरीन, लीबिया तक फैल गई। अरब क्रांति ने केवल टयूनीशिया में बदलाव किया, लेकिन अन्य देशों में युद्ध, अराजकता और दमन में समाप्त हो गई। फिर भी, हाल के लोकप्रिय आंदोलनों ने लेबनान, इराक, अल्जीरिया और सूडान में शीर्ष नेताओं को उखाड़ फेंकने की प्रेरणा दी।

17 दिसंबर 2010 को एक युवा तानाशाह की नीतियों से तंग आकर ट्यूनीशिया का स्ट्रीट वेंडर मोहम्मद बुआजिजी ने अपने आप को आग के हवाले कर दिया था। इसके बाद विरोध की यह आग पूरे अरब में फैल गई। इस क्रांति ने मध्य-पूर्व की कई सरकारों को उखाड़ फेंका था। जन आक्रोश को देखते हुए 23 सालों तक ट्यूनीशिया में तानाशाही राज चलाने वाले जिने अल आबेदीन बेन अली को गद्दी छोड़कर भागना पड़ता है। पूरे क्षेत्र में मजबूत तानाशाहों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन फैल जाता है। हालांकि ट्यूनीशिया में लोकतांत्रिक बदलाव की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना हुई, लेकिन देश में राजनीतिक अस्थिरता भी देखने को मिली।

ट्यूनीशिया से शुरू हुई अरब वसंत की क्रांति के लपेटे में मिस्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक भी आ गए और दशकों से सत्ता पर बने रहने वाले मुबारक को 18 दिनों के आंदोलन के बाद सत्ता छोड़नी पड़ी, 18 दिनों के आंदोलन में 850 लोगों की जान गई, मुबारक ने इसके बाद 11 फरवरी 2011 को सत्ता छोड़नी पड़ी। मुबारक के हटने के बाद मोहम्मद मुर्सी लोकतांत्रिक रूप से चुने गए देश के पहले राष्ट्रपति थे। अल सीसी ने 2013 में जनता के चुने राष्ट्रपति मुर्सी के शासन के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शनों के बीच उन्हें सैनिक विद्रोह में कुर्सी से हटाकर खुद देश के सर्वोच्च पद पर कब्जा कर लिया था।

यमन में अली अब्दुल्लाह सलेह का तीन दशकों का राज 2012 में विरोध प्रदर्शन के बाद समाप्त हुआ। लेकिन 2014 के बाद से ही देश में अस्थिरता है, हूथी विद्रोहियों ने देश पर हमला किया और बड़े भाग पर कब्जा जमा लिया, जिसमें राजधानी साना भी शामिल है। सऊदी अरब अपने सहयोगियों के साथ हूथी विद्रोहियों से लड़ाई लड़ रहा है। यमन संकट में लाखों लोग मारे जा चुके हैं जिनमें कई नागरिक भी हैं।

इसी तरह का विरोध प्रदर्शन सीरिया में भी हुआ था, बशर अल असद को सत्ता हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन ने कई तरह के संकट का रूप ले लिया और लाखों लोग इस संकट के कारण मारे गए और इतने ही लोग विस्थापित हो गए। आज की तारीख में असद देश के 70 फीसदी हिस्से में कब्जा जमाए हुए हैं। असद को रूस, ईरान और लेबनान की सेना का समर्थन हासिल है।

इन आंदोलन के बाद कई देशों में लोकतांत्रिक सत्ता तो आई, लेकिन साथ ही अपने साथ अराजकता, दमन और गृहयुद्ध जैसी स्थितियां भी लेकर आई। क्रांति के बाद कई देश आज भी आर्थिक स्थिति को सही नहीं कर पाए, तेल की कीमतों में आई गिरावट के कारण कई देश आज भी वित्तीय परेशानियों का सामना कर रहे हैं। अरब देशों में आज भी आंतकवाद पनप रहा है। जिसने ना जाने कितने ही मासूमों को मौत के घाट उतार दिया है। सरकार की गलत नीतियों के चलते आज भी अरब के युवा बेरोजगारी का सामना कर रहे है। मध्यपूर्व के देशों में आज भी 30 फीसद युवा बेरोजगार हैं। यमन, सीरिया और लीबिया जैसे देशों में विद्रोह और गृहयुद्ध जैसी समस्याओं से तंग आकर बहुत सारी आबादी इन देशों से विस्थापन कर गई। सीरिया में 50 लाख लोग अपना देश छोड़ चुके है। लैगिंक समानता पर भी इस क्रांति का कोई ज्यादा असर देखने को नहीं मिला, आज भी मध्य-पूर्व में महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय है। हालांकि क्रांति में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। लेकिन ट्यूनीशिया और मिस्त्र में महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों के खिलाफ मुखर तरीके से सामने आए।

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