सीरिया नाम सुनते ही गोलीबारी, बमबारी, हत्याएं, खून के द्श्य समाने आते हैं। दस साल से सीरिया युद्ध की आग में धधक रहा है। इस आग न जानें कितने लोगों को अपनी लपेटों में ले लिया है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि यह सिलसिला अभी तक भी जारी है। हम शायद कल्पना ही कर सकते है कि जिन लोगों ने इस युद्ध में अपना घर खोया या अपने परिवार को खोया उनके जख्म अभी भी भरे नहीं हैं। युद्ध की आंड में यहां चरमपंथ को भी अपना डेरा जमाने का मौका मिला। सीरियाई गृहयुद्ध के दसवें वर्ष में प्रवेश पर संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस देश में चल रहे गृहयुद्ध के कारण अब तक 9000 बच्चों ने अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठे हैं। इनमें से दस लाख बच्चें शरणयार्थी शिविरों में पैदा हुए जिनके परिवारों ने युद्ध के बचने के लिए दूसरे देशों में शरण ली।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरियटा फोर ने बताया कि उन्होंने एक सप्ताह पहले ही सीरिया का दौरा किया, अब जबकि सीरियाई युद्ध दसवें साल में दाखिल हो गया है, लाखों बच्चे भी अपने जीवन का दूसरा दशक युद्ध, हिंसा, मौत और विस्थापन के माहौल में ही शुरू कर रहे हैं। सीरिया में साल 2014 से आधिकारिक आंकड़े इकट्ठा किए जा रहे हैं। यूनिसेफ का कहना है कि, “9 हजार से अधिक बच्चे या तो मारे गए या फिर जख्मी हुए।” साथ ही यूनिसेफ ने बताया कि इस दौरान लगभग पांच हजार बच्चों को युद्ध में भाग लेने के लिए भर्ती किया गया, उनमें से कुछ की उम्र 7 साल की थी। दूसरी तरफ लगभग एक हजार शैक्षिक और चिकित्सा ठिकानों पर हमले हुए।”सीरिया में जारी युद्ध के कारण 9 लाख 60 हजार लोग विस्थापित हो चुके हैं जिनमें 5 लाख 75 हजार बच्चें शामिल है।
दस साल पहले सीरिया के राष्ट्रपति के विरोध में शुरू हुआ शांतिपूर्ण आंदोलन इतना ज्यादा हिंसक और लंबा चला जाएगा, शायद इसकी उम्मीद ही की जा सकती है। लेकिन दूसरी तरफ यह एक कटु सत्य भी है। गृहयुद्ध के कारण यहां लाखों लोगों की मौत हो गई, और हर तरफ भीषण तबाही नजर आती है। इस गृहयुद्ध की शुरूआत तब हुई जब कुछ युवकों ने अपने स्कूल की दीवार पर एक सरकार विरोधी चित्र बना दिया था। चित्र बनाने वाले युवकों में मुआ-वी-आ सानेहे भी शामिल था। उस समय मुआ की उम्र करीब 14 साल की रही होगी। चित्र के साथ युवकों ने दीवार पर लिखा था, अब आपकी बारी है डाक्टर। दरअसल यह युवक स्प्रिंग क्रांति( जिसे अरब क्रांति के नाम से भी जाना जाता है) से इनफ्यूलेंस हुए थे। डॉक्टर से युवकों का इशारा था राष्ट्रपति बशर अल असद की ओर। दीवार पर लिखने वाले सभी युवकों को गिरफ्तार करके यातनाएं दी गई। इसके बाद लोग इनकी रिहाई की मांग को लेकर दारा की सड़कों पर उतर आए। भीड़ जब नियत्रंण से बाहर हो गई तो सुरक्षाबलों ने प्रदर्शन को दबाने के लिए उन पर गोलीबारी कर दी। जिसमें कई प्रदर्शनकारी मारे गए। इसके बाद सरकार के खिलाफ पूरे देश में हिंसक प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया। एक साल बाद पूरा देश गृहयुद्ध की भेंट चढ़ गया।
राष्ट्रपति असद और विपक्षी सेनाओं के बीच लड़ाई छिड़ गई। गृहयुद्ध का फायदा उठाते हुए जल्द ही इस युद्ध में बाहरी देशों का आगमन भी हो गया। इसके बाद अस्थिरता का ऐसा दौर देख इस्लामिक चरमपंथियों को अपनी ताकतें बढ़ाने का मौका मिल गया। सीरिया के लोगों ने इस युद्ध में बहुत ज्यादा तकलीफें सहीं है। अलेप्पी में एक स्कूल पर मिसाइल से हमला किया गया, जहां काफी संख्या में बच्चों ने दम तोड़ दिया था। अब तक इस युद्ध में पांच लाख लोग मारे जा चुके है। विद्रोह के लिए उतरी जनता को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने समर्थन का ऐलान किया। इराक बार्डर से आईएसआईएस भी इस लड़ाई में असद सरकार के खिलाफ शामिल हो गया। विद्रोहियों को अमेरिकी हथियार मिलने की बात सीरियाई सरकार द्वारा कही गई तो सीरिया के परंपरागत दोस्त रूस ने आईएसआईएस के खिलाफ हवाई हमले शुरू कर दिए।
सीरिया के इस युद्ध को कई लोग धर्म के एंग्ल से भी देखते है। सीरिया में बहुसंख्यक आबादी सुन्नी मुसलमानों की है, जबकि असद शिया मुसलमान है। सुन्नी मुसलमान ज्यादातर विद्रोह में शामिल है। इन्हें तुर्की, सऊदी अरब, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन का समर्थन मिल रहा है। बशर अल असद की सरकार को ईरान के समर्थन से काफी मजबूती हो रही है। वहीं लेबनान का हिजबुल्लाह विद्रोही ग्रुप भी बशर अल असद का समर्थन कर रही है। सीरिया का होम्स शहर विद्रोहियों का मुख्य केंद्र बना और तबाही का भी। 2011 में इस शहर मे 10 लाख लोग बसते थे। तभी 2011 के बाद यहां सबकुछ बदल गया। विद्रोही सेना से सबसे ज्यादा तबाह इसी शहर को किया, और इसका नाम क्रांति की राजधानी रख दिया। बमबारी ने इस शहर को कंकाल बना दिया। हजारों की संख्या में लोग मारे गए और बाकी होम्स को छोड़कर शरणार्थी शिविरों में चल गए।
खूनी होली के बाद सीरिया दुनिया की जंग का अखाडा बन चुका है। तमाम दुनिया की ताकतें बमबारी का केंद्र सीरिया को बनाए हुए है। यूनिसेफ और ह्यूमन राइट जैसी सस्थाएं भी जहां युद्ध रोकने और लोगों की जिंदगियां बचाने में नाकाम रही है। लेकिन वहीं रुस का टीवी चैनल तीसरे विश्वयुद्ध की ओर सकेंत कर रहा है। लेकिन शांति कायम करने के लिए दुनिया के राजनयिकों को एक साथ एक मंच पर विचार-विमर्श करके इस बढ़ते तनाव से बचा जा सकता है। ताकि भविष्य की नसले इन सब से सबक ले सकें।