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सऊदी अरब में सत्ता संघर्ष का खतरनाक खेल जारी ही नहीं है बल्कि वह अब परवान भी चढ़ने लगा है। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को पद से हटाने की कोशिशें तेज हो गई है। परिवार के बीच छिड़ी इस सत्ता संघर्ष को कुछ बाहरी शक्तियां भी शह दे रही हंै जिसने इसे संजीदा बना दिया है। अब  तो आलम यह है कि पूरी दुनिया की निगाहें इसी पर जमी हुई है कि यहां जारी इसी सत्ता संघर्ष की अंतिम परिणति क्या होती है?
बहुत सी बातें, बहुत सी दिशाओं और स्रोतों से आ रही है। उन सबको मिलाकर मौजूदा परिदृश्य और परिदृश्य के पीछे चल रहे पेंचोंखम की देखने-समझने की कोशिशें हो रही हंै।
सूत्र बता रहे है कि सऊदी शाही घराने के कई ताकतवर गुट किसी दूसरे शख्स को 82 साल के बादशाह का वारिश बनाना चाहता है। मगर बादशाह मलिक सलमान अपने प्रिय पुत्र को गद्दी से हटाने के कतई तैयार नहीं है। सूत्र यह भी बता रहे है कि मलिक सलमान के एकमात्र जीवित सगे भाई राजकुमार अध्यक्ष को शाही परिवार के सदस्यों, सुरक्षा एजेंसियों और कुछ पश्चिमी देशों का शह मिला हुआ है। याद रहे कि वर्ष 1953 से छह भाइयों ने दुनिया की एकमात्र और आखिरी पूर्ण राजशाही वाली व्यवस्था पर शासन किया ये सभी सभी भाई आधुनिक सऊदी अरब या तीसरी सऊदी राजसत्ता के संस्थापक मलिक अब्दुल अजीज आज-ए-सऊद के बेटे रहे है। इन्हीं के राज में पश्चिमी देशों की कंपनियों में यहां बड़े स्तर पर तेल उत्पादन का आगाज किया।
आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सऊदी अरब के प्रति उमड़े प्रेम का देखकर कुछ लोगों को हैरानी हो रही है। कुछ लोग इसे इरान के काट के तौर पर भी देख रहे हैं जिससे अमेरिका की ठनी हुई है। सच तो यह है कि सऊदी अरब के अमेरिका से बहुत पुराने रिश्ते है और मौजूदा ट्रंप प्रेम उसी परंपरा की नवीतम कड़ी है। वर्ष 194 में मलिक अब्दुल अजीज आए-ए-सऊद ने लाल सागर में एक अमेरिकी प्रदूशित के डेक पर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेडली रूजवेल्ट से मुलाकात की थी। दोनों देशों में जरूरत का रिश्ता है। उन्हें एक -दूसरे की दरकार है। वह इस तरह कि सऊदी अरब अमेरिका की तेल की गारंटी देता है और उसके ऊपर में अमेरिका उसके आंतरिक मामले में बिना हस्तक्षेप के उसके शत्रुओं से रक्षा करता है। यह भी दिलचस्प है कि मलिक अजीज को 64 बेटे और 55 बेटियां थी। उनके इंतकाल के बाद उनमें से छह बेटों ने यह शासन किया।
असल में अब मोहम्मद बिन सलमान तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे है। इन आरोपों में कितनी सच्चाई है, यह बाद की बात है मगर माहौल तो उनके खिलाफ बनने जरूर लगा है। आरोप है कि मोहम्मद बिन सलमान ने सल्तनत की बुनियाद को कमजोर किया है, यमन के मोर्चे पर उनके निर्णय के कारण देश को क्षति उठानी पड़ी है। यह भी आरोप है कि वह अपने दिल को दूर रखने के मकसद दे दो अरब डालर की लागत से लाल सागर के किनारे राजमहल बनवा रहे है।
इनके विरोधियों की मुश्किल यह है कि पिता पुत्र अपने खिलाफ हो रहे प्रतिरोध या आरोपों को जरा भी गंभीरता से नहीं ले रहे। उनके मन में क्या चल रहा है। यह वही जान सकते है। लेकिन उनकी गतिविधियों से जाहिर तो यही हो रहा है कि उनकी सेहत पर कोई भी फर्क नहीं पड़ रहा है।
इस बात की आशंका बार-बार जताई जा रही है कि सऊदी अरब का यह शाही कुनबा बिखराव के कगार पर पहुंच गया है। खासकर अमेरिका समेत पश्चिम देश जिस तरह से उसमें दिलचस्पी ले रहे है। उससे यह आशंका और अधिक गहरी हो जाती है। इस दिलचस्पी के मूल में तेल का खेल है। सऊदी में तेल के अकूत भंडार है। सबको तेल चाहिए। इसलिए वह साम-दाम-दंड-भेद कोई भी नीति अपनाकर इस पर कब्जा जमाने की फिराक में जुटे हुए है।
दरअसल बादशाह अब्दुल्लाह लंबे समय तक मिश्र की मुस्लिम पार्टी ब्रदरहुड को मदद पहुंचाते रहे। सऊदी अरब क्षेत्र में शिया आंदोलनों के खिलाफ भी रहा है। उसे हमेशा लगा कि इससे ईरान का प्रभाव पड़ेगा। एक क्लब जब शिया प्रदर्शनकारियों ने पड़ोसी बहीन में तानाशाही शासन व्यवस्था की चुनौति दी तो सऊदी अब ने अपनी सेना भेज दी। इतना सबके बावजूद अमेरिका सऊदी का साथ देता है। क्योंकि उसकी नजर तेल पर है। सऊदी नहीं चाहता था कि अमेरिका ईरान के साथ परमाणु समझौता के ओबामा ने जब किया तो उसे परेशानी हुई। सऊदी को खुश करने के लिए टंªप ने उस समझौते को तोड़ दिया।

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