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तालिबान ने फिर शुरू किया महिलाओं का दमन

तालिबान का इतिहास महिलाओं के अत्याचार से भरा हुआ है। वर्ष 2021 में अफगानिस्तान में अपनी वापसी करने के बाद तालिबान ने भरोसा दिया था कि उनकी सत्ता इस बार महिलाओं के साथ अत्याचार नहीं करेगी बल्कि लड़कियों के पढ़ने-लिखने का अधिकार बरकरार रखा जाएगा। ऐसा लेकिन धरातल पर होता नजर नहीं आ रहा है। दरअसल, तालिबान अफगानिस्तान में लड़कियों के स्कूलों को खोलने के वादे से मुकर गया है। अफगानिस्तान में नब्बे के दशक में तालिबान के शासन के दौरान लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी लगा दी गई थी। इसके बाद जब वर्ष 2021 में जब अफगानिस्तान पर तालिबान का दोबारा कब्जा हुआ तो लड़कियों के स्कूलों को खोलने का वादा किया गया था। जिससे अब वह मुकर गया है। स्कूलों को 23 मार्च को खोला जाना था। लेकिन इससे पहले ही तालिबान ने इन्हें बंद रखने का फैसला जारी कर दिया है। हैरतनाक यह कि कुछ दिन पहले ही अफगानिस्तान के शिक्षा मंत्रालय ने एलान किया था कि लड़कियों के स्कूल समेत देश के सभी स्कूल को खोले जाएंगे। लेकिन अब कहा गया है कि लड़कियों के सभी स्कूल और वे स्कूल जिनमें लड़कियां पढ़ती हैं, अगले आदेश तक बंद रहेंगे। लड़कियों के लिए यूनिफॉर्म तय करने के बाद ही स्कूल खोले जाएंगे। यूनिफॉर्म ‘शरीयत कानून और अफगानी परंपरा’ के मुताबिक होंगी। इस फैसले के बाद कई लड़किया रो पड़ी और उनके माता- पिता आखिरी वक्त में लिए गए इस फैसले के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने लगे हैं।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय से दबाव की अपील
तालिबान के इस फैसले से अंतरराष्ट्रीय समुदाय की कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय तालिबान के सामने पहले शर्त रखी थी कि अगर उसे विदेशी फंड चाहिए तो महिलाओं और लड़िकियों को शिक्षा हासिल करने देना होगा। इस फैसले पर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई ट्वीट करके कहा है कि मुझे उम्मीद थी कि स्कूल जाने वाली अफगानिस्तान की लड़कियों को वापस नहीं भेजा जाएगा। लेकिन तालिबान ने अपना वादा पूरा नहीं किया। वे लड़कियों को सीखने से रोकने के लिए बहाने तलाशते रहेंगे, क्योंकि वे शिक्षित लड़कियों और सशक्त महिलाओं से खौफ खाते हैं।

महिला अधिकार कार्यकर्ता और अफगान विमेन्स नेटवर्क की संस्थापक महोबा सिराज लड़कियों के स्कूलों को खोले जाने को लेकर तालिबान के यूटर्न से चकित हैं। इस पर उनका कहना है कि तालिबान ने बहाना ये बनाया कि लड़कियों ने ठीक से हिजाब नहीं पहना है। पता नहीं उन्होंने यह फैसला कैसे कर लिया। उन्होंने कहा है कि अफगानिस्तान में लड़कियों की स्कूल यूनिफॉर्म ऐसी होती है, जिससे उनका शरीर पूरा ढका होता है। महोबा सिराज ने आगे कहा है कि मैं अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यही सुनना चाहती हूं कि वे सामने आए और कहें कि आपने (तालिबान) ये करने का फैसला किया है। हमने ये फैसला किया है। अगर आप लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा को मान्यता नहीं देते तो हम आपको पैसा भी नहीं देंगे।

गौरतलब है कि तालिबान ने इससे पहले जोर देकर कहा था कि वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि 12 से 19 साल की लड़कियों के लिए स्कूल अलग-अलग हों और इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार काम करें। इससे पहले तालिबान सरकार ने महिलाओं को बिना पुरुषों के लंबी यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। तालिबान के आदेश के मुताबिक जो महिलाएं लंबी दूरी की यात्रा करना चाहती हैं उनके साथ कोई नजदीकी पुरुष रिश्तेदार होना जरूरी है।

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