तालिबान ने अफगानिस्तान पर आसान जीत तो हासिल कर ली, मगर अब उसकी आगे की राह बेहद कठिन है। वल्र्ड बैंक, आईएमएफ, यूरोपीय यूनियन, अमेरिका सहित 60 देशों ने अफगानिस्तान के हालात को देखते हुए जो स्टैंड लिया है उससे तालिबान के सामने बड़ी आर्थिक चुनौती खड़ी हो गई है
अफगानिस्तान में तालिबान के चलते हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल है। तालिबानी अत्याचारों से त्रस्त लोग पलायन को मजबूर हैं। वहां की जनता के लिए यह सुकून का विषय अवश्य है कि अभी तक दुनिया के अधिकतर देशों ने तालिबानी शासन को मंजूरी नहीं दी है। इस बीच अब विश्व बैंक ने भी बड़ी कार्रवाई की है। वल्र्ड बैंक ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर रोक लगा दी है। वल्र्ड बैंक ने अफगानिस्तान के हालात खासतौर पर महिला अधिकारों की स्थिति से चिंतित होकर यह फैसला लिया है। कहा जा रहा है कि फिलहाल वल्र्ड बैंक ने सभी तरह की आर्थिक मदद पर रोक लगा दी है और अब स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है। इससे पहले अमेरिका ने भी बीते हफ्ते ऐलान किया था कि वह अपने देश में मौजूद अफगानिस्तान के सोने और मुद्रा भंडार को तालिबान के कब्जे में नहीं जाने देगा। अकेले अमेरिका में ही अफगानिस्तान की करीब 706 अरब रुपये की संपत्ति है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने भी अफगानिस्तान की आर्थिक मदद रोक दी थी। आईएमएफ ने तालिबान पर अफगानिस्तान में अपने संसाधनों का इस्तेमाल करने से रोक लगा दी थी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने 460 मिलियन अमेरिकी डाॅलर यानी 46 करोड़ डाॅलर, 34 लाख 16 हजार 43 करोड़ रुपये के आपातकालीन रिजर्व तक अफगानिस्तान की पहुंच को ब्लाॅक करने की घोषणा की थी, क्योंकि देश पर तालिबान के नियंत्रण ने अफगानिस्तान के भविष्य के लिए अनिश्चितता पैदा कर दी है।
विश्व बैंक के मौजूदा समय में अफगानिस्तान के अंदर दो दर्जन से ज्यादा प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं। बैंक की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, साल 2002 से लेकर अब तक विश्व बैंक की तरफ से अफगानिस्तान को 5.3 अरब डाॅलर की आर्थिक सहायता दी जा चुकी है। अब अमेरिका सहित 60 देशों ने तालिबान को बड़ा झटका दिया है। इन देशों ने अफगानिस्तान को हर साल मिलने वाली कई बिलियन डाॅलर की मदद रोकने का फैसला किया है। हालांकि, चीन तालिबान के सपोर्ट में सामने आया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने अमेरिका को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि अफगानिस्तान की बदतर स्थिति के लिए सिर्फ अमेरिका जिम्मेदार है। वेनबिन ने कहा अफगानिस्तान को इस हालत में छोड़कर अमेरिका वापस नहीं जा सकता। युद्ध जैसी स्थिति का सामना कर रहे अफगानिस्तान को मजबूत करने के लिए चीन जरूरी कदम उठाएगा। तालिबान के कब्जे के बाद अमेरिका के बैंकों में मौजूद अफगान सरकार के खातों को सील कर दिया गया है।
अमेरिकी बैंक में जमा है अफगानिस्तान का पैसा अफगानिस्तान सेंट्रल बैंक के विदेशी भंडार में जमा 9 बिलियन डाॅलर में से करीब 7 बिलियन फेडरल रिजर्व बैंक आॅफ न्यूयाॅर्क के पास हैं। बाइडेन प्रशासन पहले ही इस पैसे को सीज कर चुका है। कोशिश की जा रही है कि बाकी पैसा भी तालिबान तक न पहुंच सके। अगले 4 साल तक अफगान को 12 बिलियन डाॅलर देने के लिए 60 से ज्यादा देशों ने नवंबर में एग्रीमेंट किया था। अब यह पैसा मिलना मुश्किल नजर आ रहा है।
चीन को तालिबान पर भरोसा चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेनबिन ने कहा कि अफगान मुद्दे पर चीन की स्थिति स्पष्ट है। हमें उम्मीद है कि तालिबान सबको साथ लेकर एक सरकार बना सकता है। ये उदार होगी और उसकी घरेलू और विदेश नीति अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अफगानी लोगों का प्रतिनिधित्व करेगी। चीन हमेशा से अफगानिस्तान के लोगों के प्रति दोस्ताना रवैया अपनाता आया है। हम अफगानिस्तान के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए पूरी सहायता करते रहे हैं। देश में अराजकता और जंग के खत्म होने के बाद वित्तीय व्यवस्था को फिर शुरू किया जा सकता है।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा चीन अफगानिस्तान में शांति और लोगों की आजीविका की स्थिति में सुधार के लिए सकारात्मक भूमिका निभाएगा। अफगानिस्तान में चीनी नागरिकों की सुरक्षा के बारे में वेनबिन का कहना है कि हम अफगानिस्तान में अपने नागरिकों और संस्थानों की सुरक्षा पर नजर बनाए हुए हैं। वहां हमारा दूतावास सामान्य रूप से काम कर रहा है। अफगानिस्तान से अधिकतर चीनी नागरिक पहले ही देश लौट चुके हैं। बचे हुए नागरिकों को वापस लाने के लिए हम उनसे लगातार संपर्क में हैं। साथ ही वहां मौजूद चीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए निर्देश दिए गए हैं।
जर्मनी और ईयू ने रोकी मदद जर्मनी पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह तालिबानियों के कब्जे के बाद अफगानिस्तान को आर्थिक मदद नहीं देगा। यूरोपीय यूनियन (ईयू) भी अफगानी अधिकारियों द्वारा स्थिति स्पष्ट न होने तक कोई भी भुगतान नहीं करने की बात कह चुका है।पिछले हफ्ते हुई दुनिया की सात सबसे विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मौजूदगी वाली बैठक में जी-7 संगठन ने कहा कि वे 31 अगस्त की समय सीमा तक काबुल एयरपोर्ट खाली नहीं करेंगे बल्कि तालिबान को इसके बाद भी उड़ान भरने और बाहर जाने के इच्छुक अफगान नागरिकों को सुरक्षित राह देनी होगी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि सभी देशों ने इसे तालिबान से किसी भी संपर्क की पहली शर्त माना है। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि तालिबान के सहयोग करने पर ही समयसीमा के भीतर अफगानिस्तान को खाली किया जा सकेगा।
जाॅनसन ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि संगठन की वर्चुअल बैठक में सभी ने तालिबान से निपटने की एक योजना पर सहमति जताई। उन्होंने कहा हमने न केवल निकासी को संयुक्त दृष्टिकोण बनाने पर सहमति जताई, बल्कि तालिबान से जुड़ने के तरीके को लेकर एक रोडमैप पर भी सहमति बनी है। 31 अगस्त की समय सीमा के बाद भी अफगान नागरिकों को बाहर जाने देने की शर्त को कुछ तालिबानी लोग नहीं मानेंगे, लेकिन मेरे हिसाब से कुछ को इसका लाभ समझ आएगा, क्योंकि जी-7 से संपर्क का बहुत ही अच्छा आर्थिक, कूटनीतिक और राजनीतिक लाभ है।
जाॅनसन ने कहा कि हमने तय किया है कि अफगानिस्तान दोबारा आतंकवाद का जन्मदाता देश नहीं हो सकता, अफगानिस्तान एक नार्काे नशीले पदार्थों वाला देश नहीं हो सकता, लड़कियों को 18 साल की उम्र तक शिक्षा देनी होगी।
हालांकि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से उनके तालिबान संकट से निपटने के तरीके और अफगानिस्तान में अमेरिकी जवानों के बने रहने की समय सीमा को आगे बढ़ाने से इनकार करने को लेकर अन्य जी-7 नेताओं ने बैठक में नाराजगी जाहिर की है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि हम 31 अगस्त तक अफगानिस्तान छोड़ने की दिशा में काम कर रहे हैं। लेकिन ये तभी संभव होगा जब तालिबान सहयोग करे और जो लोग एयरपोर्ट पहुंचना चाहते हैं उन्हें न रोका जाए। हमारे आॅपरेशन में किसी तरह की रुकावट पैदा न की जाए।
बाइडन ने कहा कि जी-7 नेताओं, ईयू, नाटो और संयुक्त राष्ट्र तालिबान के खिलाफ हमारी सोच के साथ खड़े हैं। हम देखेंगे कि वो क्या करते हैं और उसी आधार पर आगे का फैसला लेंगे। तालिबान के बर्ताव को देखकर ही हम आगे की रणनीति पर काम करेंगे। तालिबान ने फिर दी अमेरिका को चेतावनी तालिबान ने एक बार फिर अमेरिका को चेतावनी दी है। इस बार तालिबान ने अमेरिका को अफगान नागरिकों के एलीट वर्ग को देश छोड़ने के लिए बढ़ावा देने को लेकर चेताया। तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा, वाॅशिंगटन को अफगान के अमीर एवं विद्वान वर्ग को देश छोड़ने के लिए बढ़ावा नहीं देना चाहिए। तालिबान प्रवक्ता ने यह चेतावनी अमेरिका की तरफ से हालिया दिनों में बहुत सारे अफगान नागरिकों को देश से बाहर ले जाने को लेकर दी। बता दें कि बहुत सारे अफगान राजनेता, अपदस्थ सरकार के कर्मचारियों और पत्रकारों ने तालिबान का निशाना बनने के डर से देश छोड़ दिया है। मुजाहिद ने यह भी कहा कि तालिबान पंजशीर घाटी की समस्या को शांति से हल करने के लिए प्रतिबद्ध है। हिंदुकुश पर्वत की पंजशीर घाटी इकलौता ऐसा इलाका है, जो तालिबान के नियंत्रण से बाहर है। काबुल से 90 किलोमीटर उत्तर में मौजूद इस इलाके पर तालिबान कभी कब्जा नहीं कर पाया है। मुजाहिद ने तालिबान लड़ाकों के घर-घर जाकर तलाशी लेने की खबरों को भी गलत बताया और कहा कि हम पहले ही सबको अभयदान दे चुके हैं।