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अफीम की खेती पर तालिबान ने लगाई रोक

  •   प्रियंका यादव, प्रशिक्षु

अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था में अफीम की खेती का विशेष महत्व है। देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 11 प्रतिशत इस खेती से जुडा है। विश्व भर में फैले नशे के कारोबार में अफीम के पौधों से हेरोइन नामक घातक ड्रग बनाई जाती है। एक अनुमान के मुताबिक विश्व भर में सप्लाई होने वाली इस अवैध ड्रग का 80 प्रतिशत उत्पादन अफगानिस्तान में होता है। तालिबान सरकार ने अब इस खेती को पूरी तरह प्रतिबंधित करने का एलान कर दिया है। विशेषज्ञ उसके इस कदम को संदेह भरी नजरों से देख रहे हैं। क्योंकि तालिबान स्वयं इस अवैध खेती का हिस्सा रहा है।


अफगानिस्तान पर तालिबानियों के कब्जे के बाद से ही आम नागरिकों पर नाना प्रकार के अत्याचार और प्रतिबंधों की खबरें आ रही है। देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से डगमगा गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मदद न मिलने के कारण वहां गरीबी बढ़ गई, शिक्षकों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक को उनका वेतन नहीं मिल पा रहा था। भुखमरी के हालात अभी भी कम नहीं हुए हैं। ऐसे में तालिबान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मदद पाने के लिए अफगान में बदलाव ला रहा है। सत्तारूढ़ तालिबान ने
अफगानिस्तान पर अफीम की खेती पर गत् 3 अप्रैल से पाबंदी लगा दी है। गौरतलब है कि तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश देशों ने मान्यता नहीं दी है। ऐसे में वह पश्चिमी देशों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में लगा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए तालिबान का यह अहम कदम माना जा सकता है। तालिबान खुद भी लम्बे समय तक अफीम व्यापार का बड़ा हिस्सा रहा है। उसके द्वारा अफगानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में अफीम खेती की जाती रही है। यह तालिबान की कमाई का बड़ा जरिया रहा है। तालिबान ने नाटो गठबंधन वाली सेनाओं के खिलाफ युद्ध के दौरान इस अफीम के जरिए ही पैसा कमाकर खुद को मैदान में बनाए रखा था। अब तालिबान के इस फैसले ने अफगान के लोगों की मुसीबते और बढ़ा दी है। अफगानिस्तान से भारी मात्रा में अफीम विश्व के दूसरे देशों को सप्लाई की जाती है। विश्व के कई देशों में इसका उपयोग वेध ड्रग व्यापार के रूप में होता है। इन देशों में अमेरिका, ब्राजील, मेक्सिको, फ्रांस, आदि शामिल हैं। तालिबान के सत्ता कब्जाने से पहले यहां सालभर में 6000 टन से ज्यादा अफीम का उत्पादन होता था। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इससे 320 टन शुद्ध हेरोइन बनती थी।

बेबस किसान
युद्ध से जूझने व तालिबानियों के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में बेरोजगारी बढ़ गई है। ऐसी स्थिति में अफगान के किसानों और दिहाड़ी मजदूरों के लिए अफीम की खेती ही आय का मुख्य स्रोत है। इसके जरिये वह प्रति माह औसतन 300 डॉ.लर तक की कमाई कर लेते हैं। अफीम पर लगा यह प्रतिबंध 1990 के दशक के तालिबान के पिछले शासन की याद दिलाता है, जब अफगानिस्तान में अफीम की खेती को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। तालिबान ने तब यह प्रतिबंध दो साल के भीतर पूरे मुल्क में लागू कर दिया था। उस समय संयुक्त राष्ट्र ने अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों में अफीम की खेती पूरी तरह से बंद होने की पुष्टि की थी। 2001 में अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत खत्म होने के बाद मुल्क के कई हिस्सों में किसानों ने कथित तौर पर अपने गेहूं के खेतों की जुताई करते हुए वहां अफीम की फसल की बुवाई कर दी थी। दरअसल बुनियादी ढांचे की कमी के कारण किसानों के लिए गेहूं को बाजार तक ले जाना नामुमकिन था। किसानों की आय बढ़ोतरी के लिए अफीम की खेती उनके लिए सबसे सरल एवं सुरक्षित साधन था और आय का मुख्य स्रोत हैं। मादक पदार्थ और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक देश है।

तालिबानियों की चेतावनी
तालिबान सरकार ने अपने आदेश में लोगों को चेतावनी दी कि अगर किसी ने अफीम की कटाई करी तो उनकी फसले जला दी जाएगी और उन्हें कैद तक की सजा भी सुनाई जा सकती है। यह प्रतिबंध उस समय लगाया गया जब किसानों ने अफीम के फूलों की कटाई शुरू कर दी थी। यह एक मादक पदार्थ है जो विश्व भर में हेरोइन का सोर्स है। इसके बीजों में कई रसायनिक तत्व पाए जाते हैं जो नशीले होते हैं। अफगानिस्तान विश्व में सबसे ज्यादा अफीम बनाता था और दुनियाभर में हेरोइन की 80 प्रतिशत सप्लाई भी करता था। साल 2019 में अंतरराष्ट्रीय ऑफिस ऑन ड्रग्स ऐंड क्राइम की एक रिपोर्ट में कहा गया। कि अफीम के निर्यात से जुड़ीं गतिविधियों से 1-2 अरब डॉ.लर की कमाई होती थी जो अफगानिस्तान के जीडीपी का 11 प्रतिशत है। इस धंधे से 5 लाख लोग जुड़े थे।

अफीम की खेती करने को मजबूर किसान
अफीम के सबसे बड़े उत्पादक देश अफगानिस्तान में रोजगार की कमी है। बीते वर्ष नवंबर मे तालिबान के चेतावनी के बाद भी लोगों ने अफीम की खेती करना जारी रखा था। तब काबुल पर तालिबानियों ने कब्जा कर कहा था कि उनकी सरकार नशीली दवाओं के व्यापार की इजाजत नहीं देगी। हम ड्रग्स के खिलाफ हैं और अफगानिस्तान से नशीले पदार्थों के उत्पादन को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब दुनिया के देश हमें हमारे किसानों को सशक्त बनाने में मदद करें इसके अलावा पैसे कमाने के और विकल्प देने में हमारी मदद करे। अफगान के किसानों का कहना था कि परिवार को पालने व जिंदा रखने के लिए अफीम की खेती करते हैं क्योंकि फसलों के लिए पानी सही मात्रा में उपलब्ध नहीं है। आलू, प्याज, अनार जैसे अन्य फसलें खराब हो रही है क्योंकि बाँडर बंद कर दिए गए हैं पर अफीम बेचने के लिए उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ता। खरीददार अफीम खरीदने खुद घर पर आते और पैसे देकर जाते हैं। अफीम की खेती ने लाखों लोगों को रोजगार दिए हैं। लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी सामने आए हैं। अफगान के लोगों को भी नशे की लत लग गई है।

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