पिछले हफ्ते पड़ोसी देश नेपाल की यात्रा पर गए पीएम मोदी की यह 2014 के बाद पांचवीं नेपाल यात्रा थी। बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर होने वाली यह यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों की बेहतरी के साथ दोनों देशों के बीच रिश्तों के नए आयामों को मजबूत करने और गति देने का काम भी करेगी। कुछ समय पहले वहां के नए पीएम शेर बहादुर देउबा की भारत यात्रा और अब भारत के पीएम मोदी का लुंबिनी दौरा रिश्तों को सहज कहने के साथ ही सामरिक और कूटनीतिक दृष्टि से भी अहम माना जा रहा है।
मोदी के इस दौरे में भारत और नेपाल के बीच बिजली व्यापार सौदे के तहत दोनों देश मिलकर 695 मेगावाट हाइड्रोपॉवर प्लांट का निर्माण करने जा रहा है। भारत नेपाल में हाइड्रोपॉवर प्लांट के अलावा बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है। नेपाल में चीन की बढ़ती सक्रियता के बीच माना जा रहा है कि भारत के इस कदम से नेपाल में भारत का प्रभाव बढ़ेगा। दरअसल नेपाल में बिजली की कमी को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए अपनी भौगोलिक स्थिति का दोहन करना चाह रहा था जिसमें भारत उसकी मदद करेगा। पीएम मोदी की नेपाल यात्रा के दौरान हुए 6 समझौतों में से एक यह समझौता भी शामिल है।
दुनिया में आमतौर पर दो पड़ोसी देशों के बीच रिश्ते कारोबारी और कूटनीतिक होते हैं। सीमाएं जुड़ी होती हैं लेकिन भारत और नेपाल के बीच रिश्ता इन सबसे अलग है। यहां रिश्ता केवल दो देशों की सीमा के बीच नहीं है बल्कि यहां रहने वाले लोगों की सांझी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी पहुंच भारत और नेपाल के संबंधों को हिमालय की तरह अटल बताया और कहा कि दोनों देशों को मिलकर इन ‘स्वाभाविक और नैसर्गिक’ रिश्तों को हिमालय जितनी ऊंचाई देनी है। वहीं, नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि उनका देश भारत के साथ परस्पर सम्मान और समझ के आधार पर संबंधों को मजबूत करने के लिए आशांवित है। उन्होंने कहा कि दोनों पड़ोसी समान आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से एक-दूसरे से बंधे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने लुंबिनी के अंतरर्राष्ट्रीय सम्मेलन में 2566वें बुद्ध जयंती समारोह को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने लुंबिनी मठ क्षेत्र में भारत अंतरर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति व विरासत केंद्र का शिलान्यास भी किया। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय बैठक में संस्कृति, शिक्षा, जल विद्युत, संपर्क सहित बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर चर्चा की। इसके बाद सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाने, शिक्षा क्षेत्र में सहयोग एवं पनबिजली क्षेत्र से जुड़ी परियोजनाओं को लेकर छह समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए। नेपाल के प्रधानमंत्री ने अपने देश में पश्चिमी सेती जल विद्युत परियोजना के विकास के लिए भारतीय कंपनियों को आमंत्रित किया है। इस दौरान मोदी ने ट्वीट कर कहा कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के साथ मेरी बैठक शानदार रही। हमने भारत और नेपाल के बीच संबंधों के सभी क्षेत्रों पर चर्चा की। महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए, जो सहयोग का विविधीकरण करेंगे और दोनों के संबंधों को गहरा बनाएंगे।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, दोनों पक्षों ने लुंबिनी एवं कुशीनगर के बीच ‘सिस्टर सिटी’ का संबंध स्थापित करने पर सैद्धांतिक रूप से सहमति जताई। दोनों शहर प्रमुख बौद्ध स्थल हैं और दोनों देशों की साझी बौद्ध विरासत को प्रदर्शित करते हैं।
देउबा के दौरे से बदला माहौल
आमतौर पर नेपाल के साथ भारत के रिश्ते मधुर ही रहे हैं, लेकिन नेपाल के पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में बनी सरकार के समय माहौल बिगड़ा या यूं कह सकते हैं कि बिगाड़ा गया। वर्ष 2020 में ओली सरकार ने नेपाल के नक्शे में बदलाव किया और भारत की सीमा में स्थित लिपुलेख, कालापानी और लिपियाधुरा पर अपना अधिकार जताया। धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव की बात करें तो दोनों देशों के बीच रामायण सर्किट भी मित्रता का अहम बिंदु है। नेपाल में जनकपुर है तो भारत में सीतामढ़ी। इसके अलावा राम-जानकी से भी दोनों देश जुड़े हैं।
बौद्ध परिपथ के माध्यम से भी दोनों देश धार्मिक रूप से जुड़े हैं। भगवान बुद्ध की शिक्षा को दोनों ही देशों में आस्था के साथ स्वीकार किया जाता है और बुद्ध पूर्णिमा पर पीएम मोदी की लुंबिनी यात्र दोनों देशों के धार्मिक रिश्ते के रंग को और चटख करेगी। बाबा पशुपतिनाथ मंदिर एक सशक्त पुल का काम करता रहा है।
चीन का बढ़ता दखल
कभी नेपाल के राजपरिवार के साथ संपर्क रखने वाले चीन ने बाद में अपनी विस्तारवादी नीति में नेपाल को भी मोहरा बनाने की तरफ कदम बढ़ा दिए। जब नेपाल में राजशाही समाप्त हो गई तो चीन ने वहां के राजनीतिक दलों पर पासा फेंका। नेपाल में भी कम्युनिस्ट विचारधारा वाले राजनीतिक दल असरदार हैं, ऐसे में चीन का प्रभाव बढ़ना स्वाभाविक था। ओली के सत्ता में आने से चीन के साथ नेपाल की करीबी और बढ़ी। वर्ष 2016 में ओली ने बीजिंग का दौरा किया जिसका उद्देश्य सीमा पर दोनों देशों के बीच आवागमन सुगम करना था। ओली की इस यात्रा के तीन वर्ष बाद सीमा पर आवागमन मामले को लेकर एक प्रोटोकॉल को स्वीकृति मिली जो नेपाल की पहुंच चीन के चार बंदरगाहों तक आसान करता था। इसके साथ ही चीन के तीन जमीनी पोर्ट तक भी नेपाल को पहुंचने की सुविधा प्रदान की गई।
भारत के लिहाज से यह भी अहम है कि मार्च 2017 में चीन के रक्षा मंत्री पहली बार नेपाल के दौरे पर पहुंचे। यह सब सोची समझी रणनीति के तहत था क्योंकि इस दौरे के एक माह बाद ही नेपाल और चीन ने संयुक्त सैन्य अभ्यास किया था।
चीन ने नेपाल में सीधे निवेश के मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया है। रक्षा मंत्री के दौरे के दो वर्ष बाद वर्ष 2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नेपाल यात्रा हुई। एशिया में छोटे देशों को विकास के नाम पर लुभावनी योजनाएं पेश कर रहा चीन नेपाल में भी इसी मिशन में जुटा और पोखरा व लुंबिनी हवाई अड्डे के विस्तार की योजना से जुड़ गया। ऐसे में भारत के लिए नेपाल के साथ रिश्तों को सहेजना अत्यंत आवश्यक व सही रणनीतिक कदम है।
ऐसा पीएम देउबा की ‘इंडिया फस्ट’ नीति के अंतर्गत किया गया है। काठमांडू पोस्ट ने पीएम देउबा के हवाले से कहा है कि हम इस परियोजना में निवेश करने में असफल रहे हैं और अब भारत के पीएम मोदी की यात्रा में हम इस पर चर्चा की है ।
पीएम मोदी की यात्रा से नेपाल ने एक बड़ा सकारात्मक संदेश दिया है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नेपाल ने पश्चिमी सेती में हाइड्रोपावर परियोजना के लिए चीन को झटका दे भारत का साथ चाहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल और भारत के संबंध बिगड़ने नहीं चाहिए। नेपाल के विशेषज्ञों का कहना नेपाल की यह सोच सही नहीं है कि भारत का विकल्प चीन हो सकता है। तीन तरफ से इसकी सीमा भारत से लगती है। भारत के साथ रिश्ते खराब करना नेपाल के लिए सही नहीं कहा जा सकता है। इसका आर्थिक प्रभाव भी पड़ेगा।
जब नेपाल के साथ सीमा विवाद हुआ था तो वहां के राष्ट्रीय योजना आयोग के सदस्य रहे डॉ ़पोशराज पांडे ने जो कहा था, वह बात यहां पर काफी अहम हो जाती है। उनका कहना था कि जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति में नेपाल के लिए भारत का विकल्प चीन नहीं हो सकता। भारत के साथ पूर्व में मेची से लेकर पश्चिम में महाकाली तक व्यापारिक केंद्र हैं। इसकी तुलना चीन के साथ नेपाल के साथ कुछ ही व्यापारिक केंद्र हैं और वहां भी मूलभूत सुविधाओं की कमी है। ऐसे में नेपाल का स्वाभाविक कारोबारी साझीदार भारत ही कहा जा सकता है।
आंकड़े कहते हैं कि नेपाल का सर्वाधिक आयात भारत से ही होता रहा है। चीन ने इसमें घुसपैठ की कोशिश की और किसी हद तक कामयाब भी रहा है। वर्ष 2017 में जब देउबा भारत आए तो भारत ने बांहें फैलाकर उनका स्वागत किया। उस दौरान देउबा के दौरे में 132 किलोवाट की डबल सर्किट ट्रांसमिशन लाइन का भी शुभारंभ किया गया। यह लाइन नेपाल के टिला से भारतीय सीमा के समीप स्थित मिरचैया को जोड़ती है। इससे एक दर्जन पनबिजली परियोजनाओं को जोड़ने की तैयारी है। धीरे-धीरे नेपाल में राजनीतिक स्थितियां बदली और शेर बहादुर देउबा पांचवीं बार देश के पीएम बने। देउबा ने अप्रैल 2022 के पहले सप्ताह में भारत यात्रा की तो दोनों देशों के संबंधों को जैसे फिर से ऑक्सीजन मिल गई। बिहार के जयनगर से नेपाल के कुर्था तक ट्रेन चली। यह योजना तकनीकी कारणों से लंबित थी।