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याद आने लगा ‘तियानमेन नरसंहार’

चीन में हो रहे विरोध-प्रदर्शन को अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन माना जा रहा है। कोरोना वायरस के खिलाफ आई ‘जीरो कोविड नीति’ के खिलाफ जनता सड़कों पर आ गई है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग जो अपने तीसरे कार्यकाल की तरफ देख रहे हैं, जनता उनसे गद्दी छोड़ने की मांग करने लगी है। जो लोग पिछले कई दशकों से अंतरराष्ट्रीय खासकर चीन के मामलों के बारे में जानते आ रहे हैं, उन्हें अब वर्ष 1989 के उस खौफनाक तियानमेन नरसंहार याद आने लगा है

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जिन्हें दुनिया के सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार किया जाता है, उनकी नींद इन दिनों उड़ी हुई है। तीसरे कार्यकाल की तरफ देखने वाले जिनपिंग और उनकी सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि पिछले कुछ दिनों से देश में जो प्रदर्शन जारी हैं, उन पर कैसे लगाम लगाई जाए। दरअसल जीरो कोविड नीति के चलते देश में लॉकडाउन लगाया गया और अब जनता इसके खिलाफ सड़क पर उतर आई है। ‘जीरो कोविड पॉलिसी’ और लॉकडाउन की वजह से जो प्रदर्शन हो रहा है, वह पिछले करीब तीन दशकों में सबसे बड़ा प्रदर्शन माना जा रहा है। इस प्रदर्शन के हिंसक होने से लोगों की धड़कनें बढ़ गई हैं। लोगों को अब साल 1989 में हुआ तियानमेन स्क्वॉयर प्रदर्शन याद आने लगा है। उस समय भी लोग शासन के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे और लोगों को रोकने के लिए सरकार ने मासूमों पर टैंक तक चढ़वा दिया था।

गौरतलब है कि कोरोना को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा अब थम गई है, लेकिन चीन में इसे लेकर खूब शोर-शराबा और हंगामा मचा हुआ है। देश की आधी आबादी सड़कों पर उतर आई है। वैसे तो विरोध की तस्वीरें चीन में कभी-कभार ही नजर में आती हैं क्योंकि चीन की पुलिस इन विरोधी स्वरों और विरोधी लोगों को ऐसा कुछ करने से पहले ही कुचल देती है जिसके कारण चीन में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों की आवाज पूरी दुनिया को नहीं सुनाई देती है। मगर मौजूदा समय में पश्चिम शिनजियांग से लेकर मध्य चीन में झेनझाऊ और दक्षिण में   चोंगकिंग और गुआंगडांग में जनता सड़कों पर उतरकर सरकार के विरोध में प्रदर्शन कर रही है और पूरी दुनिया चीनी जनता का आक्रोश देख रही है।

प्रदर्शनकारी शी जिनपिंग से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। आमतौर पर चीन जैसे देश में प्रदर्शन होते हैं तो सरकार इसे पश्चिम की साजिश बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करती है। लेकिन इस बार पानी सिर से ऊपर चला गया है। इसकी वजह कोविड-19 तो है ही, सरकार द्वारा कोविड फैलने से रोकने के लिए लागू किए गए कड़े प्रतिबंधों के खिलाफ लोग भड़के हुए हैं। प्रदर्शन इतना उग्र हो चुका है कि प्रदर्शनकारी कम्युनिस्ट शासन को खत्म करने की मांग पर अड़े हुए हैं।

पहले भी हुए प्रदर्शन
कहा जाता है कि किसी को जितना सताओगे वह आज नहीं तो कल पलटवार जरूर करेगा। इसलिए सालों का दबा गुस्सा अब सरकार पर काल बनकर टूट पड़ा है। लोग सोशल मीडिया के जरिए सरकार को अपनी आक्रमकता से अवगत करा रहे हैं। ऐसे में एक सवाल पूरी दुनिया के सामने आ खड़ा हुआ है कि अचानक इतने बड़े स्तर पर प्रदर्शन क्यों होने लगे और ये पहले से कितने अलग हैं? इसका चीन के हालात देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है क्योंकि आमतौर पर चीन में हर साल सामाजिक अशांति पैदा होने की डेढ़ लाख से ज्यादा घटनाएं होती हैं लेकिन ये काफी सीमित स्तर पर स्थानीय श्रेणी की होती हैं। यानी इनका दायरा काफी छोटा होता है। इस बार चीन की ‘जीरो कोविड पॉलिसी’ के खिलाफ देश के कोने-कोने से सरकार विरोधी स्वर फूट रहे हैं।

विशेषज्ञों की मानें तो चीन में यह अस्वाभाविक बात है क्योंकि विरोध को कुचल देने का उसका लम्बा इतिहास रहा है। ऐसा प्रदर्शन पहली बार नहीं हो रहा है। इससे पहले पूरी दुनिया को याद होगा वह दिन जब चीन ने अपने देश के छात्रों का विरोध प्रदर्शन कुचलने के लिए वर्ष 1989 में बीजिंग के थियानमेन चौक पर टैंक उतार दिए थे। बताया जाता है कि तब हजारों छात्रों को चीनी सेना ने मौत के घाट उतार दिया था। ऐसे में दुनिया को डर है कि क्या एक बार फिर चीन साल 1989 की ओर बढ़ रहा है। क्योंकि चीन में सरकार के खिलाफ विरोध होना आम बात नहीं है। 1989 में चीन के थियानमेन चौक पर लोकतंत्र समर्थक युवकों पर चीनी सेना ने गोली चला दी थी। इस घटना में 10 हजार से ज्यादा लोकतंत्र समर्थकों की हत्या कर दी गयी थी। यह घटना चीन के इतिहास में एक कलंक है। यह घटना तब सामने आयी थी जब चीन में उस वक्त के ब्रिटिश राजदूत एलन डोनाल्ड ने इसकी जानकारी लंदन को टेलीग्राम के जरिये दी थी। इस घटना के दस्तावेज को ब्रिटेन ने भी 28 वर्ष बाद सार्वजनिक किया था।

थियानमेन चौक की घटना चीन के इतिहास के पन्नों में दर्ज है। यह घटना इस बात का उदाहरण है कि सरकार विरोधी प्रदर्शन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। चीन एक समाजवादी गणराज्य है, जहां हमेशा से एक ही पार्टी की सरकार काबिज रही है। ऐसे में वहां पूर्ण लोकतंत्र की संभावना अब तक सपना ही है। ऐसे में इस बात की आशंका जताई जा रही है कि चीन में एक बार फिर थियामेन चौक की घटना को दोहराया जाएगा, क्योंकि चीन में विरोध-प्रदर्शनों का इतिहास बहुत बुरा रहा है।

क्यों हो रहा जीरो कोविड पॉलिसी का विरोध
चीन के शंघाई, बीजिंग जैसे बड़े शहरों में चीन की ‘जीरो कोविड’ नीति का कड़ा विरोध हो रहा है। ‘जीरो कोविड नीति’ के तहत क्षेत्र में किसी व्यक्ति के कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने पर सख्त लॉकडाउन का आदेश दिया गया है। पीसीआर टेस्ट भी किए जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि जीरो कोविड नीति के तहत नागरिकों के दैनिक लेन-देन पर भी प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसी वजह से चीन में सरकार की इस नीति का विरोध हो रहा है। चीन में यह जीरो कोविड पॉलिसी साल 2020 से लागू है, जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का प्रकोप फैला था। अन्य देशों में कोरोना प्रतिबंधों में ढील दी गई है। लेकिन चीन ने अभी भी कई जगहों पर लॉक डाउन जारी रखा हुआ है।

उरुमकी में आग लगने से 10 लोगों की मौत
जीरो कोविड के विरोध में चीन के नागरिक सड़कों पर उतर आए हैं। पिछले कुछ सालों से यहां के लोगों में सरकार गिराने को लेकर गुस्सा है। कहा जा रहा है कि यह गुस्सा इन विरोध-प्रदर्शनों के जरिए सामने आ रहा है। यह आंदोलन यहां राजनीतिक रंग लेता नजर आ रहा है। शिनजियांग प्रांत की राजधानी उरुमकी में बीते 24 नवंबर को एक इमारत में आग लग गई। इस आग में 10 लोगों की मौत हो गई। लॉकडाउन होने के चलते राहत कार्य में देरी होने से लोगों की मौत हो गई। इसके बाद इस प्रदर्शन की धार तेज हो गई। इस घटना के बाद यहां के लोग सड़कों पर उतर आए। उरुमची में करीब 100 दिनों से नागरिकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। यह प्रदर्शन शंघाई और बीजिंग जैसे बड़े शहरों के विश्विद्यालयों तक भी पहुंच गया है। बीजिंग के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन किया है। करीब 50 विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन शुरू होने की खबर है।

ब्लैंक पेपर बना प्रदर्शन का प्रतीक
इन विरोध प्रदर्शनों के बीच एक खास चीज ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। वह है एक ‘कोरा कागज।’ जी हां, एक ब्लैंक पेपर जिस पर कुछ भी अंकित नहीं है। ‘कोरा कागज’ हो रहे प्रदर्शनों में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हजारों लोगों के हाथों में एक ब्लैंक पेपर का टुकड़ा है जो इस पूरे प्रदर्शन की खामोशी को आवाज दे रहा है। इस पेपर को लहराते हुए राष्ट्रपति जिनपिंग के इस्तीफे की मांग की जा रही है। देखते ही देखते कोरे कागज का यह टुकड़ा सरकार विरोधी प्रदर्शन का प्रतीक बन गया है।

कैसे ढूंढा यह अनोखा तरीका
चीन में इस तरह के प्रदर्शन की बात आने पर एक बार फिर ‘हांगकांग’ में हुए 2020 के प्रदर्शनों को याद किया जा रहा है। तब हांगकांग के स्थानीय लोगों ने कठोर नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के खिलाफ कोरे कागज के टुकड़े लहरा कर विरोध जताया था। क्योंकि साल 2019 में यहां की सरकार ने विरोध प्रदर्शनों से जुड़े नारों को प्रतिबंधित कर दिया था, जिसके कारण विरोध में ब्लैंक शीट लहराई गई थीं। आज भी वही तरीका दोहराया जा रहा है।

सरकार ‘जीरो कोविड नीति’ को क्यों देती है अहमियत
पूरी दुनिया में कोरोना से बचाव के नियमों में ढील दी गई है। लेकिन चीन में सरकार अब भी जीरो कोविड पॉलिसी लागू पर अडिग है। चीनी सरकार का दावा है कि इस नीति ने कई लोगों की जान बचाई है। सरकार का कहना है कि इसमें हमें कुछ हद तक सफलता मिली है। दूसरी ओर लगातार हो रहे प्रदर्शन और लोगों में व्याप्त रोष कुछ और ही बयां कर रहा है। इसका असर यहां की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है। लाखों परिवार अपने घरों में कैद हो गए हैं। इस कारण यहां सरकार विरोधी माहौल बन गया है।

क्यों उग्र हुआ विरोध प्रदर्शन
दुनिया के कई देशों में चीन से शुरू हुई कोविड महामारी का असर काफी कम हो चुका है। भारत में भी अब कोविड के दैनिक मामले 500 से 600 के दायरे में आ चुके हैं। लेकिन चीन कोरोना वायरस की चपेट से अभी तक बाहर नहीं आ पाया है। जबकि चीन ने साल 2020 से ही जीरो कोविड पॉलिसी सख्ती से लागू कर रखी है। बहरहाल चीन द्वारा नेशनल लॉकडाउन की नीति को तो हटा दिया गया है, लेकिन अभी भी एक कोविड केस सामने आ जाए तो जीरो कोविड पॉलिसी लागू कर दी जाती है। इलाके के सभी लोगों के पीसीआर टेस्ट शुरू, घर से बाहर निकलने पर पाबंदी और पूरा इलाका क्वारंटीन कर दिया जाता है। लेकिन इस वक्त चीन में हो रहे विरोध-प्रदर्शन से यह सवाल जोर-शोर से सर उठाने लगा है कि जब तमाम देशों ने लॉकडाउन की पॉलिसी को खत्म कर दिया है, तो फिर चीन में जीरो कोविड पॉलिसी पर इतना जोर क्यों दिया जा रहा है? आंकड़ों पर गौर किया जाए तो फ्रांस और जर्मनी जैसे कुछ देशों में डेली केस 25-30 हजार की रेंज में आ रहे हैं, लेकिन वहां ऐसी सख्ती नहीं दिखाई दे रही है जैसी चीन में इस वक्त देखी जा रही है। वर्ल्ड हेल्थ
ऑर्गनाइजेशन ने भी जीरो कोविड पॉलिसी पर सवाल उठाए हैं।

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