एक समय था जब रेडियो पर सीलोन राज करता था। सीलोन किसी रेडियो स्टेशन का नाम नहीं बल्कि श्रीलंका का पुराना नाम है। धीरे-धीरे नाम बदलकर श्रीलंका हो गया जो इसका पौराणिक नाम भी है। ये एशिया में सबसे ज्यादा सुना जाने वाला रेडियो स्टेशन था लेकिन एक समय में लोकप्रिय सीलोन आज अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर में है। आजाद होने के बाद से ही देश में माहौल तनावपूर्ण रहा। बीच में भाषाई आधार पर भी हिंसा भड़की और अब तो मजहबी रंग फिजा में ऐसा घुल चुका है कि तबाही का मंजर हर वक्त देखने को मिल जाता है। चर्च से लेकर मस्जिद तक में भयानक धमाकों से दहल चुके इस देश के हालात अब और बुरे हो चुके हैं। वर्तमान समय में दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुके देश में गृहयुद्ध के हालात पैदा हो गए हैं
जब भी पौराणिक ग्रंथों में लंका का उल्लेख होता है तो दो बातें हमेशा बताई जाती हैं एक सोने की लंका और दूसरा उसका बजरंगबली द्वारा दहन। उस समय तो लंका को जलाने वाले बजरंगबली थे लेकिन आज श्रीलंका जिस आग में जल रहा है उससे सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि आखिर श्रीलंका के दहन का गुनहगार कौन है? वर्ष 1948 में अंग्रेजों की 150 साल की हुकूमत के बाद आजाद होने वाला श्रीलंका, आज जल रहा है और अब सिविल वॉर यानी गृह युद्ध के मुहाने पर खड़ा है।
हालात यह हैं कि देश की जनता को सामान्य जरूरत के सामान की भी आपूर्ति नहीं हो पा रही है। जिसके चलते जनता सड़को पर है और इतनी उग्र हो गई है कि देश की डिफेंस मिनिस्ट्री द्वारा सेना को शूट ऑन साइट का आदेश दे दिया गया है। इससे बड़ा दुर्भाग्य किसी देश का क्या होगा कि देश की सेना ही देश की जनता पर गोली चलाए। हालात इतने बेकाबू है कि लागू कर्फ्यू को 12 मई की सुबह सात बजे तक के लिए बढ़ा दिया गया है। हालांकि कर्फ्यू लागू होने के बाद भी हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। भीड़ ने 10 मई को कोलंबो में प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास के पास एक शीर्ष श्रीलंकाई पुलिस अधिकारी के साथ मारपीट की और उनके वाहन में आग लगा दी। वरिष्ठ उप महानिरीक्षक देशबंधु तेनाकून कोलंबो में सर्वोच्च पद के अधिकारी हैं। उनके मुताबिक भीड़ को तितर-बितर करने के लिए अधिकारी ने हवाई फायरिंग की थी।
हाथ से निकल गया है सबकुछ
श्रीलंका में सरकार समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई झड़प में राजपक्षे बंधुओं की सत्तारूढ़ पार्टी के एक सांसद और 5 लोगों की मौत हो गई और लगभग 200 घायल हो चुके हैं। प्रदर्शनकारियों ने देश के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और मंत्रियों का घर फूंक दिया है। इस बीच पुलिस ने बताया कि पोलोन्नारुआ जिले से श्री लंका पोदुजना पेरामुना के सांसद अमरकीर्ति अतुकोराला (57) को सरकार विरोधी समूह ने पश्चिमी शहर नित्तम्बुआ में घेर लिया था। वहीं, लोगों का दावा है कि सांसद की कार से गोली चली थी और जब आक्रोशित भीड़ ने उन्हें कार से उतारा तो उन्होंने भागकर एक इमारत में शरण ली। बाद में उन्होंने खुद को गोली मार ली। इसके अलावा आक्रोशित भीड़ ने पूर्व मंत्री जॉनसन फर्नांडो के कुरुनेगाला और कोलंबों स्थित कार्यालयों पर हमला किया है। पूर्व मंत्री नीमल लांजा, महापौर समन लाल फर्नांडो, मजदूर नेता महिंदा कहानदागमागे के घरों पर भी हमले हुए हैं।
गुनहगार कौन?
महंगाई, बेरोजगारी और भुखमरी की आग की लपटों में जल रहे श्रीलंका का गुनहगार कौन हैं इसको लेकर जनता की नजर में पहला नाम राजपक्षे परिवार का है। जिसकी सत्ता में श्रीलंका की यह हालत हो गई है कि वहां आम लोगों को पेट भरने तक का संकट खड़ा हो गया है। राजपक्षे परिवार के 6 सदस्य श्रीलंकाई सरकार को चला रहे थे। इनमें गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति, उनके बड़े भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री जो राष्ट्रपति भी रह चुके हैं। उनके अलावा राष्ट्रपति गोटबाया के सबसे बड़े भाई चमल राजपक्षे जो कि श्रीलंका के गृहमंत्री, बासिल राजपक्षे श्रीलंका के वित्तमंत्री और राष्ट्रपति गोटबाया के भतीजे नमल राजपक्षे श्रीलंका के कृषि मंत्री का पद संभाल रहे थे। गौरतलब है कि श्रीलंका की कमान लंबे समय से महिंदा राजपक्षे और उनके परिवार के हाथों में थी, अब भी है। भले ही कैबिनेट को जनता के सामने इस्तीफा देना पड़ा हो। लेकिन अब जनता आर-पार के मूड में आ चुकी है और हर कीमत पर इंसाफ चाहती है। 9 मई को महिंदा राजपक्षे के समर्थकों ने जनता पर ही हमला कर दिया, तो पलटवार में जनता ने 12 सांसदों, मंत्रियों, मेयरों के घर फूंक दिए, दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया। गाड़ियों को नेस्तनाबूद कर दिया। जिसके बाद खुद महिंदा राजपक्षे को भी इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन सत्ता पर पकड़ उनकी अब भी उतनी ही मजबूत है, जितनी पहले रही। हो भी क्यों न? संवैधानिक तौर पर उनके भाई गोटाबाया राजपक्षे ही देश के राष्ट्रपति हैं, जिनके हाथों में अधिकतर कार्यकारी शक्तियां अभी मौजूद हैं।
क्या अदूरदर्शी नीतियों ने बिगाड़ी हालत?
आरोप है कि राजपक्षे परिवार के भ्रष्टाचार और अदूरदर्शी नीतियों के चलते ही श्रीलंका इस बुरे दौर से गुजर रहा है। जिन्होंने अपनी सत्ता को कायम रखने के लिए टैक्स की दरें कम कर दीं। जिससे हालात बिगड़ गए। आरोप यह भी है कि श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे चीन के करीबी है। उनके कार्यकाल में ही श्रीलंका द्वारा बुनियादी ढांचे के विकास के लिए चीन से करीब 7 बिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज लिया गया था। जिसका नतीजा आज पूरा श्रीलंका भुगत रहा है। श्रीलंका की 2 करोड़ से ज्यादा की आबादी राजपक्षे परिवार के श्रीलंका कांड को झेल रही है।
राजपक्षे सरकार के खिलाफ क्यों बढ़ा जनता का गुस्सा
श्रीलंका पहले से महंगाई और आर्थिक संकट की आग में जल रहा था। अब हिंसा और दंगों की आग में भी जल रहा है जिसकी शुरुआत तब हुई जब 9 मई को इस्तीफा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के समर्थकों ने सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया। उसके बाद स्थिति इतनी ज्यादा बेकाबू हो गई कि प्रधानमंत्री राजपक्षे को जान बचाकर भागना पड़ा। यह नहीं प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा। हालांकि राजपक्षे सरकार ने भले ही विरोध को कुचलने के लिए कर्फ्यू लगा दिया है। सेना ने भी लोगों के विरोध प्रदर्शनों को काबू करने के लिए मोर्चा संभाल लिया है लेकिन यह आम हिंसा नहीं है। ये राजपक्षे सरकार के खिलाफ श्रीलंका की आम जनता का गुस्सा है।
जनता हुई बेसहारा
श्रीलंका इस वक्त कर्ज के जाल में पूरी तरह फंस चुका है। हालात गृहयुद्ध जैसे हो गए हैं। देश पाई पाई को मोहताज है। विदेशी कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं है। वर्ल्ड बैंक ने भी नया कर्ज देने से इंकार कर दिया है। और तो और आय का सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन है वह भी कोरोना के कारण खस्ताहाल है।