श्रीलंका में आर्थिक तंगी के चलते हालात दिनोंदिन खराब होते जा रहे हैं। भारत और चीन द्वारा दी गई वित्तीय मदद भी ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। स्थिति इतनी खराब हो चली है कि सरकार ने कागज की कमी का हवाला दे स्कूली परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं। बिजली में भारी कटौती जारी है और तेल की किल्लत चलते सेना को पेट्रोल पंपों की रक्षा के लिए उतारना पड़ा है
पड़ोसी देश श्रीलंका अब तक के इतिहास में अपने सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है। श्रीलंका के ऊपर इतना विदेशी कर्ज हो गया है कि वो ‘दिवालिया’ होने की कगार पर आ गया है। इस आर्थिक संकट की वजह से श्रीलंका सरकार स्कूली बच्चों की परीक्षा भी नहीं करवा पा रही है। इसके साथ ही श्रीलंका कई समस्यायों का सामना कर रही है। श्रीलंका में पेट्रोल-डीजल की इतनी किल्लत हो गई है कि, पेट्रोल पंपों पर लंबी- लंबी लाइनें लग रही हैं। इस लाइन के भीड़ में कोई हंगामा न हो इसके लिए श्रीलंका सरकार ने सेना के जवानों को तैनात किया गया है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार काफी घट गया है। इस वजह से पेट्रोल-डीजल का आयात मुश्किल हो रहा है। महंगाई भी आसमान छू रही है। रसोई गैस के लिए भी लोग खाली सिलेंडर लिए घंटों लाइन में खड़े दिख रहे हैं। पेट्रोल के लिए लाइनों में खड़े चार लोगों की मौत भी हो चुकी है। महंगाई की वजह से लोगों का खर्चा चार गुना बढ़ गया है।
विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से श्रीलंका पड़ोसी देशों से इन चीजों को खरीद भी नहीं पा रहा है। हालात इतने खराब हैं कि देश में स्कूली छात्रों की परीक्षा के पेपर छापने के लिए कागज और स्याही तक के पैसे नहीं है। इस वजह से परीक्षा रद्द करनी पड़ी है। श्रीलंका को इस वक्त अनाज, तेल और दवाओं की खरीद के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। हाल में भारत ने श्रीलंका को एक अरब डॉलर का कर्ज देने का वादा किया है। चीन भी ढ़ाई अरब डॉलर का कर्ज दे सकता है। श्रीलंका पर चीन का पहले से ही काफी कर्ज है। श्रीलंका बिजली संकट का भी सामना कर रहा है। मार्च की शुरुआत में श्रीलंका ने देश में अधिकतम साढ़े सात घंटे तक की बिजली कटौती का एलान किया था। श्रीलंका के केंद्रीय बैंक की ओर से फरवरी में जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश का विदेशी मुद्रा भंडार जनवरी 2022 में 24 .8 फीसदी घट कर 2 .36 अरब डॉलर रह गया था। रूस-यूक्रेन में छिड़ी जंग के चलते भी श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो रही है। क्योंकि रूस श्रीलंका की चाय का सबसे बड़ा बाजार रहा है। इसके साथ ही रूस और यूक्रेन से बड़ी तादाद में श्रीलंका पर्यटक भी आते हैं। रूबल की गिरती कीमत, जंग और रूस यूक्रेन की ओर से चाय की घटती खरीद की वजह से श्रीलंका को दोहरी मार पड़ रही है।
जीडीपी कम, कर्ज ज्यादा
श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने इस बात को माना है कि, उनका देश भारी कर्ज से जूझ रहा है। उन्होंने स्थानीय मीडिया से बात करते हुए कहा कि श्रीलंका पर चीन, भारत और जापान का कर्ज है। उन्होंने बताया था कि श्रीलंका को इस साल 7 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है। श्रीलंका को अगले 5 साल में 26 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है। वही श्रीलंका पर चीन का ही 6 अरब डॉलर का कर्ज है। श्रीलंका ने चीन से पहले 5 अरब डॉलर का कर्ज लिया था। बाद में आर्थिक संकट से निकलने के लिए फिर से पिछले साल 1 अरब डॉलर का कर्ज लिया था।
आर्थिक नुकसान की वजह
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर काफी हद तक निर्भर है। कोरोना महामारी की वजह से पर्यटन बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। श्रीलंका की जीडीपी में टूरिज्म और उससे जुड़े सेक्टरों की हिस्सेदारी 10 फीसदी के आस-पास है। कोरोना के चलते पर्यटकों के न आने से श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ है। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म काउंसिल की रिपोर्ट बताती है कि महामारी के चलते श्रीलंका में 2 लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए हैं।
श्रीलंका की आर्थिक समस्या पर विशेषज्ञों का मानना है कि इस आर्थिक हालात के लिए विदेशी कर्ज खासकर चीन से लिया गया कर्ज भी जिम्मेदार है। चीन का श्रीलंका पर 5 अरब डॉलर से अधिक कर्ज है। पिछले साल उसने देश में वित्तीय संकट से उबरने के लिए चीन से और 1 अरब डॉलर का कर्ज लिया था। अगले 12 महीनों में देश को घरेलू और विदेशी लोन के भुगतान के लिए करीब 7 .3 अरब डॉलर की जरूरत है। नवंबर तक देश में विदेशी मुद्रा का भंडार महज 1 .6 अरब डॉलर था।
सरकार को घरेलू लोन और विदेशी बॉन्ड्स का भुगतान करने के लिए पैसा छापना पड़ रहा है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विशेषज्ञ श्रीलंका की इस बदहाली के लिए केवल चीन से लिए गए कर्ज की बात से इंकार करते हैं। इन विशेषज्ञों का मानना है कि अपनी इस दशा के लिए श्रीलंका की गलत आर्थिक नीतियां जिम्मेदार हैं। श्रीलंका के कुल कर्जे में से चीन का हिस्सा मात्र 10 प्रतिशत है। इससे कहीं ज्यादा कर्ज श्रीलंका ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों से उठा रखा है। ऑस्ट्रेलिया के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ‘लोवी इंस्टीट्यूट’ के अनुसार इस समय श्रीलंका के कुल कर्ज का 47 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय बाजार से उठाया गया ऋण है। 22 प्रतिशत कर्ज विश्व बैंक समेत कई अंतरराष्ट्रीय बैंकों का है। 10 प्रतिशत कर्ज जापान का है।
भारत ने की मदद
पिछले कई वर्षों से श्रीलंका में बढ़ रही चीनी गतिविधियों की वजह से भारत के साथ श्रीलंका रिश्ते उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। लेकिन चीनी कर्ज के दम पर शुरू की गई इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के फंस जाने के बाद श्रीलंका ने भारत के साथ रिश्तों में संतुलन लाने की
कोशिश की है। भारत ने पिछले महीने श्रीलंका को 40 हजार टन पेट्रो उत्पाद भेजा था। जनवरी में भारत ने श्रीलंका को 40 करोड़ डॉलर का क्रेडिट स्वैप दिया था। फरवरी में पेट्रोलियम प्रोडक्ट खरीदने के लिए भारत ने एक बार फिर इसे 50 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया था। इस महीने भारत ने श्रीलंका को एक अरब डॉलर का कर्ज देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके लिए श्रीलंकाई वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने भारत का शुक्रिया अदा किया।
सरकार से आक्रोशित है जनता
पिछले कई सालों से श्रीलंका की सत्ता पूरी तरह से राजपक्षे परिवार के पास है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे हैं। देश के प्रधानमंत्री उनके भाई महिन्द्रा राजपक्षे हैं और वित्त मंत्री भी उनके ही एक भाई बासिल राजपक्षे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि राजपक्षे परिवार की गलत आर्थिक नीतियां और चीन के साथ करीबी रिश्तों ने देश को इस संकट में डाला है। गौरतलब है कि मजबूत राष्ट्रपति होने का दावा करने वाले गोतबाया राजपक्षे के नेतृत्व में बनी श्रीलंका की सरकार देश को बचाने में बुरी तरह से फेल साबित होती दिखाई दे रही है।कोरोना संकट के साथ-साथ बेरोजगारी, महंगाई को संभालने में सरकार विफल रही है। इसके साथ ही सरकार के खर्च में काफी ज्यादा बढ़ोतरी और राजस्व में काफी ज्यादा कमी होने से देश दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है। इस चलते श्रीलंका में दिनोंदिन राजपक्षे सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा है।