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सुलगता बलूचिस्तान, हताश पाकिस्तान

 पंजाबियों को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी चुन-चुनकर मार रही है। कई मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि पंजाबी नौजवानों को अगवा किया जा रहा है। जिसकी खबरें आए दिन सुर्खियों में रही हैं। दरअसल पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी के मन में पंजाब और पंजाबियों से भरी हुई पाकिस्तानी सेना के खिलाफ नफरत का भाव रहा है। उग्रवादियों की बढ़ती नफरत का आलम यह है कि पंजाबियों पर इस साल चौथी बार सबसे बड़ा हमला हुआ है। इससे पहले ईरान जा रहे नौ पंजाबियों की हत्या अप्रैल में कर दी गई थी। जिसकी जिम्मेदारी बलूच लिबरेशन आर्मी ने ली थी

पड़ोसी मुल्क पाक्सितान में आंतरिक कलह रुकने का नाम नहीं ले रही है। बलूचिस्तान में हिंसक हमलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दशकों से पाकिस्तानी सुरक्षा बल बलूचिस्तान में सांप्रदायिक, जातीय और अलगाववादी हिंसा का लगातार सामना कर रहा हैं। इस साल भी उग्रवादियों द्वारा पंजाबियों, सिंध प्रवासियों और चीनियों को निशाना बनाया गया। हाल ही में बलूचिस्तान के मूसाखेल जिले में हुए हमलों की जिम्मेदारी अलगाववादी संगठन बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ली है। बलूच लिबरेशन आर्मी द्वारा बड़े हमले को अंजाम देते हुए पुलिस स्टेशन, रेलवे लाइन और हाईवे को निशाना बनाया गया है। इन हमलों में सबसे ज्यादा नुकसान बलूचिस्तान के मूसाखेल, लासबेला, कलात और मस्तुंग के अलग-अलग इलाकों में हुआ है। हमले में अब तक 74 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। इनमें सबसे ज्यादा पंजाबी शामिल हैं।

27 अगस्त को हथियार बंद लड़ाकों द्वारा पंजाब और बलूचिस्तान के बीच चलने वाले विभिन्न वाहनों को रोका गया। मुसाफिरों को बसों और ट्रकों से उतारा गया। उनकी पहचान पंजाबियों के तौर पर पुष्टि होने पर गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस ऑपरेशन को प्रतिबंधित संगठन बीएलए द्वारा ऑपरेशन ‘हेरोफ’ नाम दिया गया है। बलूचिस्तान में कामकाज के सिलसिले में आते-जाते पंजाबियों का कत्लेआम बीते कई सालों से जारी है। हालांकि इस अलगाववादी संगठन का कहना है कि वह केवल आम लोगों की वेशभूषा धारण किए हुए सैन्य कर्मियों को निशान बना रहा है। हमले से पहले बीएलए ने चेतावनी देते हुए कहा था कि उनकी लड़ाई कब्जा करने वाली पाकिस्तानी सेना के खिलाफ है, आगे भी इस तरह के हमले किए जा सकते हैं। 26, 27 अगस्त को हुए हमलों में हथियारबंद लोगों द्वारा बस ट्रक समेत कई वाहनों को क्षतिग्रस्त किया गया है। इन वाहनों पर गोली चलाई गई, कुछ को आग के हवाले कर दिया गया। पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा जवाबी कार्रवाई की गई। इस कार्रवाई में 14 पुलिसकर्मी समेत 21 आतंकवादी मारे गए हैं।

उग्रवादियों के निशाने पर पंजाबी

पंजाबियों को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी चुन-चुनकर मार रही है। कई मीडिया रिपोर्ट्स का दावा है कि पंजाबी नौजवानों को अगवा किया जा रहा है। जिसकी खबरें आए दिन सुर्खियों में रही हैं। दरअसल पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी के मन में पंजाब, पंजाबियों और पंजाबियों से भरी हुई पाकिस्तानी सेना के खिलाफ नफरत का भाव रहा है। उग्रवादियों की बढ़ती नफरत का आलम यह है कि पंजबियों पर इस साल चौथी बार सबसे बड़ा हमला हुआ है। इससे पहले इसी साल ईरान जा रहे नौ पंजाबियों की हत्या अप्रैल में कर दी गई थी। जिसकी जिम्मेदारी बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ली थी। वहीं पिछले अक्टूबर में केच जिले में छह पंजाबी मजदूरों को मार दिया गया था, जिसे खुद स्थानीय अधिकारियों ने टारगेट किलिंग माना था। साल 2015 में कुछ बंदूकधारियों ने तुर्बत के पास मजदूरों के एक कैम्प पर हमला कर 20 लोगों को मार दिया, जो पंजाब और सिंध से थे।
इस अलगाववादी संगठन की रडार पर न केवल पंजाबी है, बल्कि सिंध और चीन के लोग भी हैं। कई हमलों में चीन के नागरिकों को भी निशाना बनाया गया है। अलग राष्ट्र की मांग कर रहे बीएलए और अन्य बलूच अलगाववादियों द्वारा विदेशी ऊर्जा कंपनियों को भी निशाना बनाया गया है।

उनका मानना है कि बलूचिस्तान में ये विदेशी कंपनियां मुनाफे में हिस्सेदारी साझा किए बिना इस क्षेत्र का शोषण कर रही हैं। दरअसल चीन इस इलाके में खनन परियोजनाओं और ग्वादर में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के निर्माण से जुड़ा हुआ है। जिसका पाकिस्तान के चरमपंथी समूह बढ़-चढ़कर विरोध करते रहे हैं। खबरों के मुताबिक पाकिस्तान सरकार ने बलूच इलाके में स्थिति खदानों को चीनियों को लीज पर दिया हुआ है। जिसका विरोध करते हुए बीएलए बम धमाके करता रहता है। पाकिस्तान सरकार को लगता है कि ग्वादर पोर्ट के बनने से देश की तकदीर बदल जाएगी। लेकिन बलूचिस्तान के अवाम को यह सब फरेब लगता है। उनका मानना है कि ग्वादर पोर्ट बनने से इसका अधिकतर लाभ पंजाब को मिलेगा न की बलूचिस्तान को।

गौरतलब है कि लम्बे अर्से से अलग राष्ट्र की मांग कर रहा बलूचिस्तान गैस, खनिजों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मामले में पाकिस्तान के सबसे अमीर प्रांत के तौर पर जाना जाता है। हालांकि प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न होने के बावजूद, बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे कम आबादी वाला और गरीब प्रांत बना हुआ है। बलूचिस्तान सरकार पर उनके प्रचूर प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के आरोप लगाता रहा है। जिस वजह से यह प्रांत बर्बादी के कगार पर आ गया है।

बलूचिस्तान की जमीन करीब 44 फीसदी हिस्से में फैली हुई है। लेकिन यहां महज पाकिस्तान की करीब 6 फीसदी आबादी ही बसी हुई है। बलूचिस्तान का नाम बलूच नाम की जनजाति से पड़ा है। यह जनजाति सदियों से इसी इलाके में रहती आई है। यहां बलूच जातीय समूह के बाद पश्तून की बड़ी आबादी रहती है। बलूचिस्तान में क्वेटा से करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर उत्तर-पूर्व में मूसाखेला जिला है। यहां ज्यादातर आबादी पश्तूनों की है। इस प्रांत में रह रहे लोगों की अपनी अलग संस्कृति है। यहां के लोग बलूची भाषा बोलते हैं, जबकि पाकिस्तान में उर्दू और उससे मिली पंजाबी चलती है। इसलिए बलूचियों को डर सताता रहता है कि पाकिस्तान उनकी भाषा को खत्म कर सकता है। बलूचिस्तान का इतिहास चरमपंथ और मानवाधिकारों के उल्लंघन से भरा हुआ है। बलूचिस्तान सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद इस्लामाबाद की राजनीति और मिलिट्री में इनकी जगह नहीं के बराबर है।

बलूचिस्तान की आवाम का कहना है कि पाकिस्तान में हमेशा उनके साथ भेदभाव किया गया है। यही वजह रही हैं लंबे समय से ही बलूच पाकिस्तान से अलग राष्ट्र की मांग करता रहा है। बीएलए, बलोच रिपब्लिकन आर्मी के अलावा लश्कर-ए-बलूचिस्तान जैसे कई गुट हैं, जो बलूचिस्तान की आजादी मांग कर रहे हैं। पाकिस्तान सरकार द्वारा 2006 में बीएलए को आतंकी गुट करार दे दिया गया है। सरकार पर बलूच ह्यूमन राइट्स को खत्म करने का आरोप लगाया जाता रहा है। बलूचिस्तान के समर्थक अक्सर गायब हो जाते हैं, या फिर एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल किलिंग के शिकार बनते हैं। एक एनजीओ बलूच मिसिंग पर्सन्स के मुताबिक साल 2001 से 2017 के बीच पांच हजार से ज्यादा बलूच लोग लापता हुए हैं।

बीएलए पाकिस्तान की सत्ता को सबसे अधिक चुनौती देने वाला चरमपंथी संगठन है। बलूचिस्तान की आजादी को लेकर ये संगठन लगातार हिंसक होता जा रहा है। इस्लामाबाद स्थित एक एनजीओ पाकिस्तान इंस्टीट्îूट फॉर पीस स्टडीज की एक रिपोर्ट ‘पाकिस्तान सिक्योरिटी रिपोर्ट 2023’ के अनुसार बलूच विद्रोहियों, खासकर बीएलए और बीएलएफ ने पिछले साल बलूचिस्तान में 78 हमले किए, जिनमें 80 से ज्यादा मौतें हुईं और 137 लोग घायल हुए। इन संगठनों पर आरोप लगता रहा है कि ये समूह मुल्क की जमीन पर पाकिस्तान के खिलाफ काम कर रहे हैं।

पाकिस्तान का दावा है कि ये दोनों संगठन ईरान और अफगानिस्तान में भी अपने ठिकाने बनाए हुए हैं। गौरतलब है कि बलूच पाकिस्तान के पड़ोसी ईरानी प्रांत सिस्तान-बलूचिस्तान के साथ-साथ अफगानिस्तान में भी रहते हैं। पाकिस्तान ईरान पर इन समूहों के नेताओं और चरमपंथियों को पनाह देने का आरोप लगाता रहा है, हालांकि ईरान इससे इनकार करता है। वहीं भारत पर इन गुटों की आर्थिक मदद करने का आरोप लगाता रहा है। जिससे भारत साफ इनकार करता है।

महबूब नेता अकबर बुगती का कत्ल

बलूचों द्वारा अलग देश की मांग को लेकर 1948 से ही चरमपंथी विद्रोह की शुरुआत हो गई थी। यह विद्रोह 1950, 1960 और 1970 के दशक तक कई चरणों में हुआ। लेकिन सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में 2003 से विद्रोही गतिविधियां काफी बढ़ गईं। उनके द्वारा बलूचिस्तान में चरमपंथ के खिलाफ कई अभियान चलाए गए। सबसे विवादास्पद अभियानों में से एक में मशहूर बलूच नेता नवाब अकबर खान बुगती की सेना द्वारा हत्या कर दी गई। बलूचिस्तान की जनता मानती रही है कि उनके देश की सेना ने उनके महबूब नेता अकबर बुगती का कत्ल किया था। हालिया हुए हमले भी उनकी पुण्यतिथि के आसपास हुए हैं। गौरतलब है कि इनकी हत्या के बाद से ही कई अलगाववादी संगठन उभर कर आए। इन खूनी उग्रवाद विरोधी अभियानों और कार्यवाहियों के बीच बलूचिस्तान से कथित तौर पर हजारों लोग लापता हो गए। कथित तौर पर कहा जाता रहा है कि पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने इन लोगों को उठाया और टॉर्चर करने के बाद उन्हें मार दिया। हालांकि पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता रहा है। वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स (वीबीएमपी) के मुताबिक, बलूचिस्तान से 7,000 से ज्यादा लोग लापता हो चुके हैं।

अलग राष्ट्र चाहते थे फ्रंटियर गांधी अब्दुल गफ्फार खान

गौरतलब है बलूचिस्तान की मांग भारत पाकिस्तान के बटवारे के पहले से उठाई जा रही है। न केवल बलूच, बल्कि पश्तून भी अपने अलग राष्ट्र के लिए संघर्ष करते रहे हैं। इस अलग राष्ट्र की मांग ने कई संघर्षशील नेताओं को जन्म दिया। बलूचों के साथ जुटकर पश्तून पठान भी अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी आजादी की लड़ाई के लिए लड़े। बिना पख्तूनिस्तान के बलूचों का उल्लेख अधूरा रहता है। बादशाह खां और सीमांत गांधी जैसी उपाधियों से नवाजे गए खान अब्दुल गफ्फार ने सीमा प्रांत में खुदाई खिदमतगार की एक बड़ी अहिंसक फौज खड़ी कर दी थी। बादशाह खां की तरह बलूच नेता अब्दुल समद खान अचकजाई को भी अहिंसा में विश्वास था।

अपनी आजादी के रूप में बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान के निर्माण के लिए सीमांत राज्य कांग्रेस की सहायता चाहते थे, जिसका नेतृत्व गांधी कर रहे थे। इसे देखते हुए 1928 में खान अब्दुल गफ्फार खां कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उनके साथ-साथ बलूच नेता अचकजाई ने भी कांग्रेस में प्रवेश लिया। गांधीवादी विचार धारा और आजादी की लड़ाई में शामिल होने वाले अब्दुल गफ्फार पश्तूनों के लिए अलग राष्ट्र पख्तूनिस्तान चाहते थे। इसी वादे के साथ वो कांग्रेस में शामिल हुए थे, पर जब समय आया तो उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें जबरदस्ती पाकिस्तान के साथ कर दिया गया। हालांकि अंग्रेजों ने भारत और पाकिस्तान की आजादी के समय बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया था। साढ़े सात महीने तक यह स्वतंत्र रहा। लेकिन जल्द ही जिन्ना की फौजों ने बलूच जनता की इच्छा के विरुद्ध जोर जबरदस्ती से बलूचिस्तान को पाकिस्तान में मिला लिया, पर बलूच शांत न रहे। सत्ता के विरुद्ध उस समय जो विद्रोह प्रारंभ हुए वे अब तक जारी हैं। इन विद्रोहों को सख्ती से दबाया गया। उस दौरान बादशाह खां ने कांग्रेस से कहा था कि तुमने हमें भेड़ियों के बीच छोड़ दिया। पठानों के सामने विकल्प हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच का नहीं, बल्कि पाकिस्तान और पख्तूनिस्तान के बीच का रखा जाना चाहिए था। इस पर कांग्रेस का कहना था कि वे परिस्थितियों के अधीन थे।

आजादी के बाद भी पाकिस्तान में खान ने पश्तूनों के हक की लड़ाई जारी रखी। वह आजाद पख्तूनिस्तान की मांग के चलते कई साल जेल में रहे। अपनी कुल 98 साल की जिंदगी का करीब आधा हिस्सा यानी 42 साल उन्होंने जेल में ही गुजार दिए।

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