बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं कि उनके देश को विकास के लिए मोटी जेब के पड़ोसियों की मदद तो चाहिए, लेकिन अपने स्वाभिमान की कीमत पर उन्हें किसी का प्रभाव उन्हें बर्दाश्त नहीं होगा। उनकी रणनीति है कि भारत और चीन दोनों बांग्लादेश में विकास के लिए पैसा तो दें, लेकिन प्रभाव भी न बना सकें। यानी बांग्लादेश अपने यहां प्रभाव बनाने की रेस में शामिल भारत और चीन का फायदा तो उठाना चाहता है, दोनों से दोस्ती तो बनाए रखना चाहता है, लेकिन किसी का भी प्रभाव अपने यहां नहीं जमने देना चाहता।
प्रधानमंत्री शेख हसीना की रणनीति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक ओर वह बांग्लादेश की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वर्चुअल मीटिंग करती हैं और दूसरी ओर उस चीन के साथ भी रिश्तों में गर्माहाट दिखाती हैं जो कि दक्षिण एशियाई में भारत का प्रभाव समाप्त कर अपना प्रभाव जमाने के लिए किसी भी हद तक उतावला रहा है और निरंतर प्रयासरत भी है। एक तरफ वे अपने देश के प्रमुख अखबार ‘डेली स्टार’ और स्वतंत्रता सेनानियों की मौजूदगी में बांग्लादेश की आजादी में भारतीय योगदान को याद करती हैं, वहीं दूसरी ओर चीन के राष्ट्रपति श्री जिनपिंग के ‘बेल्ट एण्ड रोड प्रोजेक्ट’ के प्रति उत्साह भी दिखाती हैं।
शेख हसीना ने साफ कर दिया है कि भारत और चीन की अपनी सामरिक सोच और रणनीति हो सकती है, लेकिन बांग्लादेश के लिए अपना हित प्रमुख है। इसके लिए वे भी भूल जाती हैं कि आखिर चीन पाकिस्तान का पक्षधर रहा है। 1971 के युद्ध में चीन उसके पीछे खड़ा रहा। जबकि भारत को बांग्लादेश का जन्मदाता माना जाता है। शेख हसीना अपने देश को संदेश दे रही हैं कि उनकी सरकार एक मजबूत सरकार है जिसे अपनी संप्रभुत्ता का पूरा ख्याल है और वह अपने देश में भारत हो या फिर भी किसी का भी अनावश्यक वर्चस्व नहीं होने देंगी।
शेख हसीना की इसी रणनीति के तहत बांग्लादेश ने हाल में पद्मा नदी पर 20 किलोमीटर लंबे पुल को खुद ही बनाने का फैसला लिया। राजधानी ढाका और देश के अन्य हिस्सों को आर्थिक स्तर पर पिछड़े दक्षिण पश्चिम क्षेत्र से जोड़ने वाला यह पुल विकास में महत्वपूर्ण होगा। इस इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राॅजेक्ट में रेल और सड़क दोनों मार्ग होंगे। शेख हसीना की सरकार ने इस पर 30 हजार करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया है, जिसका वहन वे खुद करेंगे। इसे कब तक पूरा कर लिया जाएगा, इस पर कुछ नहीं कहा गया है।
जिस तरह बांग्लादेश के जन्मदाता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की ‘राजनीतिक इच्छा’ थी उसी तरह, यह शेख हसीना की राजनीतिक इच्छाशक्ति है जो पद्मा ब्रिज के साथ पूरी होगी। वर्ष 2011 में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पद्मा नदी पर पुल के लिए 1 बिलियन डाॅलर की घोषणा की थी। वर्ष 2015 में जब नरेंद्र मोदी जी ढाका गए, तब भारत और बंगलादेश में इस पुल को बनाने की बात चली। तब मोदी जी ने 200 मिलियन के पुराने अनुदान के साथ इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए अतिरिक्त 2 बिलियन के अन्य क्रेडिट की पेशकश की।
लेकिन पुल बनाने की यह राशि पर्याप्त नहीं थी। तब तक चीन की रेलवे ब्रिज कंपनी इस बीच निविदा को जीत चुकी थी, और उसने दिसंबर 2015 में काम भी शुरू किया। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा 30 वर्षो में पहली बार ढाका की यात्रा पर गए और 24 बिलियन के क्रेडिट पर हस्ताक्षर किए। सितंबर 2017 में पुल के 37 और 38 स्तंभों की पहली नींव रखी गई थी। लेकिन कुछ समय बाद बांग्लादेश ने कुछ देशों को देखकर सबक लिया है।
अब वह अपने यहां के सबसे बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राॅजेक्ट को खुद से पूरा करेगा। बताया जाता है कि बांग्लादेश ने चीन से कर्ज ना लेने का निर्णय नेपाल, श्री लंका और मालदीव की स्थिति देखकर लिया। चीन इन सभी देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाकर उनकी हालत खराब कर चुका है। इन देशों को कर्ज देकर वह यहां अपना प्रभाव बनाता गया।