इस कालखंड में महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में ऐसे कानून बने हैं जो न सिर्फ उनकी सुरक्षा के लिए ढाल बने बल्कि उन्हें एक सम्मान की जिंदगी देने का जरिया भी बनें। लेकिन महिलाओं में हर महीने होने वाली पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली सैनेटरी पैड को लेकर स्कॉटलैंड ने नया कानून बना मिसाल कायम की है
महिलाओं का कारवां आज इस मुकाम पर पहुंच चुका है कि दुनिया के सभी देशों की महिला हर क्षेत्र में बुलंदियों को छू रही हैं। इसी लंबे कालखंड में महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में ऐसे कानून बने हैं जो न सिर्फ उनकी सुरक्षा के लिए ढाल बने बल्कि उन्हें एक सम्मान की जिंदगी देने का जरिया भी बनें। लेकिन महिलाओं में हर महीने होने वाली पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली सैनेटरी पैड को लेकर स्कॉटलैंड में एक नया कानून बनाया गया है। इस कानून के तहत महिलाओं के पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल किया जाने वाला सैनेटरी प्रोडक्ट्स को मुफ्त कर दिया गया है। इसे पारित कराने में 4 वर्ष का समय जरूर लगा मगर महिलाओं के हित के लिए उठाये गए इस फैसले ने दुनिया में एक मिसाल कायम करने के साथ-साथ स्कॉटलैंड दुनिया का पहला मुफ्त सैनेटरी उत्पाद देने वाला देश भी बन गया है।
स्कॉटलैंड दुनिया का पहला देश बन गया है जहां पीरियड्स के प्रोडक्ट्स को मुफ्त कर दिया गया है। एक ओर जहां दुनिया के कई हिस्सों में आज भी माहवारी के साथ कई भ्रांतियां और रूढ़िवादी परंपराएं जुड़ी हुई हैं। ऐसे में स्कॉटलैंड का यह कदम वाकई सराहने के काबिल है। इस कानून के तहत स्थानीय प्रशासन को पीरियड प्रोडक्ट्स को मुफ्त में उपलब्ध कराना होगा। इसे नॉर्थ आयरशायर जैसी काउंसिल के पहले से किए जा रहे काम पर आधारित करना होगा। यहां पहले से फ्री टैंपॉन और सैनिटरी टाल सार्वजनिक इमारतों में 2018 से दिए जा रहे हैं।
महिलाओं का बढ़ेगा सम्मान
स्कॉटलैंड में 14 अगस्त 2022 को यह कानून पारित किया गया है। इस दिन को महिलाएं ‘ब्लड डे’ के रूप में मना रही हैं। इस अभियान का नेतृत्व करने वाली स्कॉटिश लेबर की स्वास्थ्य प्रवक्ता मोनिका लेनन ने इसे स्कॉटलैंड के लिए गर्व का दिन बताया है। उन्होंने कहा है, ‘यह उन महिलाओं और लड़कियों के जीवन में बड़ा बदलाव लाएगा जिन्हें पीरियड्स होते हैं। हालांकि सामुदायिक स्तर पर इन प्रक्रियाओं पर पहले ही काफी विकास हुआ है और स्थानीय प्रशासन के जरिए हर किसी को पीरियड्स में सम्मान मिल सकेगा।
रूढ़िवादी सभ्यताओं का चलन
पुराने दौर की बात की जाए तो पीरियड्स को समाज में एक अभिशाप माना जाता था। इसके बारे में लोग बात करना तो दूर इससे पीड़ित महिलाओं को दूषित और अपवित्र मानते थे। हालांकि कुछ ग्रामीण इलाकों में ऐसे हालात आज भी हैं। शहरों में भले ही आज यह एक आम बात हो लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी महिलाओं को सम्मान नहीं मिल पाया है। शहरों में समय बदला और धीरे-धीरे ऐसी धारणाएं कम होने लगीं और महिलाओं को समाज में सम्मान मिलने लगा। आज हम न केवल माहवारी के बारे में बात करते हैं बल्कि महिलाओं को इस समय हो रही पीड़ा को भी समझते हैं। इस कानून के पारित होने से महिलाओं को सम्मान के साथ सुरक्षा के लिए सामान भी दिया जा रहा है, यह एक बड़ा बदलाव है।
सुरक्षा का समाधान
माहवारी के समय महिलाओं को स्वच्छता से रहना बहुत महत्वपूर्ण होता है। लेकिन आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण महिलाएं सेनेटरी उत्पादों का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं। ऐसे में उन्हें कपड़ा इस्तेमाल करना पड़ता है जिससे कई तरह की बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं। कपड़ा इस्तेमाल करने और साफ- सफाई न रखने के कारण महिलाओं को जानलेवा बीमारियों जैसे-वेजाइना कैंसर के कारण अपनी जान गवानी पड़ जाती है। ऐसे में यदि सरकार द्वारा मुफ्त में माहवारी के समय इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थ दिए जाएंगे तो न सिर्फ महिलाओं को राहत मिलेगी बल्कि उन्हें जानलेवा बीमारियों से भी बचाया जा सकेगा। संसद की सदस्य मोनिका लेनान ने अप्रैल 2019 में इस बिल को संसद में पेश किया था। जिसे अब जाकर संसद द्वारा मंजूरी दे पारित भी कर दिया गया। इस कानून के तहत मासिक धर्म से जुड़े उत्पाद को सामुदायिक केंद्रों, युवा क्लबों, शौचालयों और फार्मेसियों में भी रखा जाएगा। महिलाओं और युवतियों के लिए तय जगहों पर टैम्पान और सेनेटरी पैड उपलब्ध कराए जाएंगे। महिलाएं इन वस्तुओं को मुफ्त में प्राप्त कर सकेंगी। इसमें महिलाओं को पीरियड से जुड़े प्रोडक्ट कम्यूनिटी सेंटर, यूथ क्लब, टॉयलेट और मेडिकल स्टोर्स पर उपलब्ध कराए जाएंगे, जहां से महिलाएं इन्हें मुफ्त में ले सकती हैं। स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी को अपने परिसर में मासिक धर्म के संबंधित सभी प्रोडक्ट्स उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। मोनिका लेनान चार साल से इस संबंध में एक अभियान चला रही थीं। उन्होंने इस कानून को दुनिया में जागरूकता कायम करने के लिए सहायक बताते हुए इसकी मांग की। लेनान ने कहा कि स्कूलों को मासिक धर्म के बारे में शिक्षा देनी चाहिए ताकि इससे जुड़ी भ्रांतियों को खत्म किया जा सके। स्कॉटलैंड की प्रथम मंत्री निकोला स्टर्जन ने इस पहल का स्वागत किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि यह महिलाओं और लड़कियों के लिए एक अहम फैसला है। मैं इस कानून के पक्ष में वोटिंग करके गर्व महसूस कर रही हूं।
भारत में क्या हैं हालात
भारत की बात करें तो यहां कुछ ऐसी सरकारी संस्थाएं हैं जो स्कूल और कॉलेजों में महिलाओं को मुफ्त में सेनेटरी नैपकिन बांटती हैं। भारत में अक्सर महिलाएं इस बारे में खुलकर बात करने से झिझकती हैं और अपनी स्वच्छता जैसे मामले को उठाने में संकोच करती हैं। यही कारण है कि भारत में आज भी महिलाएं माहवारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं और बीमारी की जद में आ जाती हैं। इसे सिर्फ स्वच्छता के जरिए ही रोका जा सकता है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरंमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ के सर्वे अनुसार भारत में करीब 355 मिलियन से अधिक महिलाएं व युवतियां पीरियड्स से गुजरती हैं। इस दौरान हाइजीन का ख्याल न रखने के चलते लाखों महिलाओं को कई बुरे अनुभवों का सामना करना पड़ता है। परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 57 .6 फीसदी महिलाएं हाइजीनिक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। वहीं, अन्य महिलाएं अनहाइजीनिक उपाय अपनाती हैं। देश में ‘स्वच्छ भारत’ पर जोर दिया जा रहा है लेकिन महिलाओं की स्वच्छता का अधिकार आज भी इस कैंपेन का हिस्सा नहीं बन सका है।