पड़ोसी देश श्रीलंका भले ही राजनीतिक अस्थिरता के दौर से बाहर निकल आया है, लेकिन उसकी आर्थिक समस्याओं का समाधान होना अभी भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है। राष्ट्रपति दिसानायके के नेतृत्व में श्रीलंका सरकार आर्थिक सुधारों को लागू करने, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने और देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए प्रयासरत है। सितम्बर 2024 में नेशनल पीपुल्स पावर पार्टी ने संसदीय चुनाव में 225 में से 159 सीटें जीतकर दो-तिहाई बहुमत हासिल कर अनुरा कुमारा दिसानायके श्रीलंका के राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने अपनी चुनावी रैलियों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ हुए समझौतों पर पुनर्विचार करने का वादा किया था। लेकिन पदभार ग्रहण करने के बाद, दिसानायके ने संसद में कहा कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था इतनी नाजुक है कि किसी भी छोटे झटके को सहन नहीं कर सकती, इसलिए आईएमएफ समझौतों पर पुनर्विचार सम्भव नहीं है
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका भले ही लम्बी राजनीतिक अस्थिरता के दौर से बाहर निकल आया है, उसकी आर्थिक समस्याओं का समाधान होना अभी भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है। इस गम्भीर आर्थिक संकट की शुरुआत 2022 में हुई थी। इस दौरान मुद्रास्फीति 70 प्रतिशत तक पहुंच गई और मुद्रा का मूल्य रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया था तथा अर्थव्यवस्था में 7.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।
राजनीतिक स्थिरता से जगी उम्मीदें
सितम्बर 2024 में अनुरा कुमारा दिसानायके श्रीलंका के राष्ट्रपति चुने गए। उनकी नेशनल पीपुल्स पावर पार्टी ने संसदीय चुनाव में 225 में से 159 सीटें जीतकर दो-तिहाई बहुमत हासिल किया। दिसानायके ने अपनी चुनाव रैलियों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ हुए समझौतों पर पुनर्विचार करने का वादा किया था। लेकिन पदभार ग्रहण करने के बाद, उन्होंने संसद में कहा कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था इतनी नाजुक है कि किसी भी छोटे झटके को सहन नहीं कर सकती, इसलिए आईएमएफ समझौतों पर पुनर्विचार सम्भव नहीं है। गौरतलब है कि अंतरर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कठिन शर्तों के साथ श्रीलंका को 2.9 बिलियन डॉलर के राहत पैकेज की मंजूरी दी है। इन शर्तों का श्रीलंका में खासा विरोध हो रहा है।
आर्थिक संकट से निपटने के प्रमुख कदम
1. आईएमएफ के साथ समझौता: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ 3 बिलियन डॉलर के राहत पैकेज पर सहमति बनी है। इसके तहत आर्थिक सुधारों, कर प्रणाली में बदलाव और सब्सिडी कटौती के कदम उठाए गए हैं। जनता में इस कटौती को लेकर नाराजगी है।
2. राजस्व बढ़ोतरी के लिए नए कर: राष्ट्रपति दिसानायके से जनता की नाराजगी का एक कारण कर दरों में वृद्धि किया जाना है। हालांकि राष्ट्रपति ने सरकारी खर्चों में भी बड़ी कटौती का ऐलान किया है।
3. ऋण पुनर्गठन: चीन, भारत और अन्य कर्जदाताओं के साथ विदेशी ऋण पुनर्गठन पर बातचीत कर राष्ट्रपति आर्थिक स्थिति को संभालने का प्रयास कर रहे हैं।
4. विदेशी निवेश पर जोर: पर्यटन और निर्यात-आधारित उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए नीतियों में नई सरकार तेजी से काम करती नजर आ रही है। विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) बनाने और निवेश को सरल बनाने के लिए राष्ट्रपति दिषानायके ने बड़ी पहल शुरू की है।
5. कृषि और ऊर्जा सुधार: खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादन में सुधार और हरित ऊर्जा परियोजनाओं और घरेलू ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने का काम शुरू हो चुका है।
विरोध-प्रदर्शनों को नियंत्रित करने के लिए सामाजिक संवाद शुरू करना
चुनौती:
आईएमएफ की शर्तों का जनता पर आर्थिक दबाव बढ़ाने के कारण नए राष्ट्रपति के प्रति जनता की नाराजगी भी बढ़ रही है। इस नाराजगी के पीछे एक बड़ा कारण बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी भी है।
राजनीतिक अस्थिरता और विरोध प्रदर्शनों का दबाव
भारत की तरफ दोस्ती का हाथ: दिसंबर 2024 में राष्ट्रपति दिसानायके ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत का चयन किया, जिससे दोनों देशों के बीच सम्बंधों को मजबूत करने का संकेत मिला। इस यात्रा के दौरान, भारत ने श्रीलंका को 20.66 मिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान की, जिससे ऋण बोझ कम करने में मदद मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के आर्थिक सुधार और स्थिरता के लिए भारत के निरंतर समर्थन की पुष्टि की।
इसके अतिरिक्त, भारत ने श्रीलंका के पावर प्लांट्स के लिए लिक्विड नैचुरल गैस की आपूर्ति करने और भविष्य में दोनों देशों के पावर ग्रिड को जोड़ने का वादा किया। राष्ट्रपति दिसानायके ने आश्वासन दिया कि श्रीलंका की भूमि का उपयोग भारत के खिलाफ किसी भी गतिविधि के लिए नहीं होने दिया जाएगा।
कुल मिलाकर राष्ट्रपति की नीतियां आर्थिक सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन्हें लागू करने में जनता का विश्वास और राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। हालांकि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में सुधार की गति धीमी है और देश अभी भी आर्थिक संकट से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि असली चुनौती आगामी तीन से चार वर्षों में शुरू होगी, जब श्रीलंका को अपने कर्जों की अदायगी पुनः शुरू करनी होगी। यदि अगले कुछ वर्षों में लोगों के जीवन स्तर में सुधार नहीं हुआ तो राष्ट्रपति दिसानायके और उनकी सरकार के प्रति जनता की धारणा बदल सकती है।
अंततः राष्ट्रपति दिसानायके के नेतृत्व में श्रीलंका सरकार आर्थिक सुधारों को लागू करने, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने और देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए प्रयासरत है। हालांकि इन प्रयासों के परिणामस्वरूप जनता के जीवन में सुधार दिखने में समय लग सकता है और सरकार को दीर्घकालिक स्थिरता के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।