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स्वीकार्यता की राह पर समलैंगिक संबंध

  •         प्रियंका यादव

 

समलैंगिक संबंध और विवाह देश-दुनिया की सुर्खियों में बने हुए हैं। एक ओर जहां अमेरिकी संसद ने समलैंगिकों और अलग-अलग नस्लों के बीच होने वाली शादियों की हिफाजत के लिए एक ऐतिहासिक विधेयक पास किया है तो वहीं इस फैसले के बाद अब भारत में भी समलैंगिक शादियों को मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हैदराबाद के एक गे कपल ने याचिका दायर कर सेम सेक्स शादी को मान्यता देने की मांग की है। सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिका अनुच्छेद 32 के तहत डाली गई है। इस अनुच्छेद के तहत भारत का हर नागरिक मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष याचिका डाल सकता है। इस जोड़े के अनुसार अपनी पसंद का विवाह करने का अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है, जो कि एलजीबीटीक्यू, समुदाय पर भी लागू होना चाहिए

पिछले कुछ समय से समलैंगिक संबंध और विवाह देश-दुनिया की सुर्खियों में बने हुए हैं। एक ओर जहां अमेरिकी संसद ने समलैंगिकों और अलग-अलग नस्लों के बीच होने वाली शादियों की हिफाजत के लिए एक ऐतिहासिक विधेयक पास किया है तो वहीं इंडोनेशिया की संसद ने नए कानून के जरिए प्री-मैरिटल सेक्स और लिव-इन रिलेशनशिप को आपराधिक करार दिया है। ये नियम इंडोनेशिया में एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए एक नकरात्मक प्रभाव के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि यहां अभी समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं है। इन सब के बीच भारत में भी समलैंगिक शादियों को मान्यता देने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। अमेरिकी संसद के फैसले को सकारात्मक बताते हुए कहा जा रहा है कि भारत सरकार के रुख में भी बदलाव की उम्मीद है।

अंग्र्रेजी दैनिक ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में हैदराबाद के एक गे कपल ने याचिका दायर कर सेम सेक्स शादी को मान्यता देने की मांग की है। सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिका अनुच्छेद 32 के तहत डाली गई है। इस अनुच्छेद के तहत भारत का हर नागरिक मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका डाल सकता है। इस जोड़े के अनुसार अपनी पसंद का विवाह करने का अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है जो कि एलजीबीटीक्यू, समुदाय पर भी लागू होना चाहिए।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग करते हुए कहा गया है कि सेम सेक्स जोड़ों को शादी की मान्यता ‘स्पेशल मैरिज’ एक्ट के तहत दी जाए। साथ ही इसके लिए सभी अधिकारियों को दिशा- निर्देश भी दिए जाएं। याचिकाकर्ता ने अपनी पसंद से शादी करने के अपने मौलिक अधिकार पर जोर दिया है। मौलिक अधिकारों के तहत ही उन्होंने अदालत से सेम सेक्स शादी की अनुमति देने की मांग की है। साथ ही उन्होंने इस मामले की सुनवाई का लाइव प्रसारण करने की गुहार भी लगाई है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने छह सितंबर, 2018 को एक अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द कर दिया था। तब अदालत ने कहा था कि अब से सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे। हालांकि उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था। अब इसी समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने के लिए एलजीबीटी समुदाय का कोर्ट में संघर्ष जारी है।

अदालत में एक क्वीयर (समलैंगिक) जोड़े ने भी कहा है कि वह बीते 17 सालों से एक-दूसरे के साथ संबंध में हैं और दो बच्चों की परवरिश भी कर रहे हैं। लेकिन उनकी शादी को कानूनी मान्यता न मिलने की वजह से वे अपने बच्चों को न ही अपना नाम दे सकते हैं और न ही उनसे कानूनी संबंध रख सकते हैं। इसलिए स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सेम सेक्स शादी को कानूनी मान्यता दी जाए। इस पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से चार हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने समलैंगिक विवाह से संबंधित सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने का आदेश दिया है ताकि सभी को एक साथ सुना जाएगा।

इससे पहले केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि हमारा समाज, हमारा कानून और हमारे नैतिक मूल्य इसकी मंजूरी नहीं देते। केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि संसद ने देश में विवाह कानूनों को केवल एक पुरुष और एक महिला के मिलन को स्वीकार करने के लिए तैयार किया है। ये कानून विभिन्न धार्मिक समुदायों के रीति-रिवाजों से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों, संहिताबद्ध कानूनों से शासित हैं। इसमें किसी भी हस्तक्षेप से देश में व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन के साथ पूर्ण तबाही मच जाएगी। गौरतलब है कि दुनियाभर में करीब 29 देश ऐसे हैं जहां समलैंगिक विवाह को तमाम कानूनी दिक्कतों के बावजूद कोर्ट के जरिए या कानून में बदलाव करके या फिर जनमत संग्रह करके मंजूरी दे दी गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार नीदरलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां साल 2000 में सेम सेक्स शादी को मंजूरी मिली थी।

उसके बाद से तकरीबन 17 यूरोपीय देश ऑस्ट्रिया, ब्रिटेन, बेल्जियम, फिनलैंड, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, माल्टा, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, स्लोवेनिया और स्विटजरलैंड सेम सेक्स मैरिज को वैध बना चुके हैं। साल 2019 में ताइवान एशिया का पहला ऐसा देश बना, जहां सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दी गई। इसी साल मेक्सिको के सभी राज्यों में समलैंगिक विवाह को अब कानूनी रूप से मान्य करार दे दिया गया है। इसके अलावा अन्य कई देश भी धीरे ही सही लेकिन इस दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। हालांकि भारत में इसकी मान्यता को और कितना लंबा रास्ता तय करना होगा यह तो वक्त ही बताएगा।

बढ़ रहे हैं समलैंगिक विवाह
बीते महीने देश में यशविका और पायल नाम की दो लड़कियों ने बड़े धूम-धाम से शादी की है। इस इंडियन लेस्बियन कपल की लव स्टोरी मीडिया और सोशल मीडिया की सुर्खियां बनी हुई थी। दरअसल इनकी शादी के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं। इन्होंने समाज की परवाह किए बिना इस शादी को हिंदू रीति-रिवाजों के साथ सम्पन्न किया है। हालांकि शुरुआत में इन दोनों को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। इस शादी के लिए यशविका का परिवार काफी मुश्किल से राजी हुआ था। भारत में यह पहला समलैंगिक विवाह नहीं है। इससे पहले भी राजस्थान में हुआ एक विवाह काफी चर्चा में रहा। भरतपुर में 4 नवंबर को दो महिलाओं ने शादी की थी। इनमें से एक मीरा नाम की महिला राजकीय माध्यमिक विद्यालय में फिजिकल एजुकेशन की टीचर के तौर पर कार्यरत थी। वहीं दूसरी महिला कल्पना उसकी स्टूडेंट थी। मीरा कल्पना को स्टेट लेवल पर कबड्डी का खेल खिलाने भी ले गई थी। प्रेमिका से शादी के लिए इनमें से एक महिला ने अपना जेंडर तक चेंज करवाया है। लिंग परिवर्तन कराने के बाद उन्होंने अपना नाम मीरा से बदलकर आरव रख लिया।

समलैंगिक जोड़े के रूप में फैशन डिजाइनर अभिषेक रे और डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट चैतन्य शर्मा का नाम खासी चर्चा में रहा है। इनका विवाह सबसे ज्यादा चर्चा में रहा था। जहां एक ओर इस समुदाय से आने वाले लोग समाज के डर से लिविंग में रहना या गुप-चुप तरीके से शादी करना पसंद करते हैं, वहीं इस ‘गे’ कपल ने अपनी शादी बड़े धूमधाम से की।

भारत में वर्जित है समलैंगिक विवाह
समलैंगिक विवाह संबंधों को कई दफा मान्यता और कानूनी दर्जा देने के लिए प्रयास किया जाता रहा है। लेकिन अभी तक इसका कोई पुख्ता परिणाम नहीं निकल पाया है। समाज में उन्हें काफी हेय दृष्टि से देखा जाता है। संवैधानिक अधिकार को देखते हुए उन्हें भले ही एक समान अधिकार दिए गए हों लेकिन वास्तविकता में धरातल पर उन्हें अभी भी एक लंबा संघर्ष करना है। अधिकतर देशों में अभी भी समलैंगिक संबंधों को न तो सामाजिक स्तर पर मान्यता मिली है और न ही व्यक्तिगत स्तर पर। इसके बावजूद यह समुदाय अपने अधिकारों और हक के लिए संघर्ष करता रहा है। इसी वजह से भारत में समलैंगिक समुदाय की लंबे समय से मांग रही है कि उन्हें उनका हक दिया जाए और धारा 377 को अवैध ठहराया जाए। दरअसल समाज के मुताबिक सेम सेक्स के साथ संबंध बनाना अप्राकृतिक है।

जिसे भारतीय दंड संहिता 377 के तहत अपराध की श्रेणी में रखा गया था। इस धारा के मुताबिक जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करेगा तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास से दंडित किया जा सकता था। भारत में यह अपराध गैर जमानती माना गया था। लेकिन वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आईपीसी की धारा 377 को खत्म कर समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। हालांकि भारत में अभी भी सेम सेक्स की शादी को कानूनी तौर पर मान्यता नहीं दी गई है। लेकिन कोर्ट द्वारा दिए गए इस आदेश के बाद देशभर में सेम-सेक्स जोड़े खुलकर सामने आकर अपनी बात रखने लगे हैं।

दुनियाभर में समलैंगिक संबंध की कानूनी स्थिति
हाल ही में समलैंगिक संबंधों के हित में अमेरिका ने एक बड़ा कदम उठा सेम सेक्स मैरिज एक्ट को पास कर दिया है। यहां समलैंगिक विवाह दशकों से विवाद का विषय रहा है। समलैंगिक संबंधों के हित में सबसे पहले नीदरलैंड ने वर्ष 2000 में समलैंगिक जोड़ों के शादी को मंजूरी दी थी। उसके बाद से तकरीबन 17 यूरोपीय देशों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दी। इसके अलावा कुछ देश जैसे चेक गणराज्य, क्रोशिया, साइप्रस, एस्टोनिया, ग्रीस, हंग्री और इटली केवल समलैंगिक नागरिक भागीदारी की ही अनुमति देते हैं, वहीं सिंगापुर ने इसी साल अगस्त में ‘गे’ सेक्स संबंध पर से प्रतिबंध हटाने का फैसला लिया है। कई देशों में समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने की भी इजाजत दी गई है। कनाडा उत्तरी अमेरिका का पहला ऐसा देश है जहां 2005 में सेम सेक्स मैरिज और समलैंगिकों द्वारा बच्चा गोद लेने के लिए अनुमति दी गई है। जिसके दस वर्षों के बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका द्वारा देशभर में ‘गे’ मैरिज को वैध कर दिया गया। इसके अतिरिक्त लैटिन अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना, कोलंबिया, कोस्टा रिका, इक्वाडोर, उरुग्वे और चिली में समलैंगिक विवाह की अनुमति है। मैक्सिको की संघीय राजधानी मेक्सिको सिटी में 2007 में समलैंगिक संघों को मान्यता मिली और 2009 में समलैंगिक विवाह को वैध करार दिया गया।

वर्ष 2020 में इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन (आईएलजीए) द्वारा एक रिपोर्ट पेश की गई थी जिसमें 69 देशों में समलैंगिकता को प्रतिबंधित बताया गया था और 11 देशों में इसके लिए मौत की सजा के बारे में जानकारी दी गई थी। वहीं 30 अफ्रीकी देशों में समलैंगिकता पर प्रतिबंध है, मॉरिटानिया, सोमालिया और सूडान में इसके लिए मौत की सजा दी जाती है। पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में केवल दक्षिण अफ्रीका ऐसा देश है जहां समलैंगिक शादी को वर्ष 2006 में वैध करार दिया गया था।

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