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मजबूत होते ‘नाटो’ से रूस का संकट रहा है बढ़

रूस – यूक्रेन युद्ध की वजह से नाटो की मजबूती बढ़ने लगी है। 12 सदस्यों वाला गठबंधन अब 32 तक पहुंचने की ओर बढ़ रहा है।


दरअसल, वर्षों तक  निष्पक्ष रहे फिनलैंड और स्वीडन भी नाटो का सदस्य बनने की तैयारी में हैं। फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्तो और प्रधानमंत्री सना मरीन ने 12 मई को फिनलैंड के नाटो में बिना देर किए शामिल होने को समर्थन देने की घोषणा कर दी है। उल्लेखनीय है कि फिनलैंड की सीमा रूस के साथ 1300 किलोमीटर तक लगती है। नाटो में शामिल होने के कई संकेत पहले से ही मिल रहे थे, खासतौर पर रूस – यूक्रेन युद्ध के बाद से,रूस यूक्रेन युद्ध कारण भी नाटो में शामिल होना है।

फिनलैंड की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि नाटो की सदस्यता फिनलैंड की सुरक्षा को मजबूत करेगी। नाटो के सदस्य के रूप में फिनलैंड इस सुरक्षा गठबंधन को मजबूत करेगा। फिनलैंड को बिना देरी किये नाटो की सदस्यता के लिए जरूर आवेदन करना चाहिए।

फिनलैंड के राष्ट्रप्रमुख और सरकार के मुखिया की रजामंदी मिल जाने के बाद ऐसा लग रहा है कि कई दशकों तक तटस्थ रहने के बाद फिनलैंड नाटो की सदस्यता के लिए अब कदम उठायेगा। यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद आम लोगों की नाटो के बारे में राय बड़ी तेजी से बदली है। फिनलैंड में हाल ही में कराये एक सर्वे में देश के 76 फीसदी लोग इस कदम के पक्ष में थे। कई राजनीतिक दलों ने भी इसका समर्थन करने के संकेत दिए हैं। 

नॉर्डिक देशों में डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड तो 1949 में नाटो का गठन होने के समय से ही इसके सदस्य हैं। फिनलैंड की तरह स्वीडन भी इसमें शामिल नहीं है लेकिन अब इसकी उम्मीद बढ़ गई है कि वह भी जल्दी ही फिनलैंड की राह पर चल कर नाटो की सदस्यता के लिए आगे आएगा।


क्या है नाटो

शीत युद्ध के समय का बना संगठन नाटो  दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन है, इसमें 30 यूरोपीय और उत्तर अमेरिकी देश शामिल हैं। इस संगठन को शीत युद्ध की शुरुआत में पश्चिमी देशों को सोवियत आक्रमण से बचाने के लिए बनाया गया था। सोवियत संघ के विघटन के बाद भी यह संगठन बरक़रार है। इसका मुख्यालय ब्रसेल्स में है।

पिछले कुछ वर्षो  में इसका महत्व कम हो गया था लेकिन यूक्रेन युद्ध ने अचानक इसे मुख्यधारा में वापस ला दिया है। फिलहाल नाटो के सदस्य देशों के बीच एकता की भावना मजबूत हो गई है और अमेरिका के साथ यूरोप का सहयोग भी काफी ज्यादा बढ़ गया है। 

नाटो की शुरुआत


पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट सरकारों की स्थापना करने की सोवियत संघ की कोशिशों से चिंतित 12 देशों ने 4 अप्रैल, 1949 को नाटो का गठन किया था। तब नाटो के गठन के लिए वॉशिंगटन ट्रीटी पर बेल्जियम, ब्रिटेन, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लग्जेमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, और अमेरिका ने दस्तखत किये थे। इसके बाद 1952 में इसमें ग्रीस और तुर्की, 1955 में पश्चिमी जर्मनी और 1982 में स्पेन भी शामिल हो गया था।

इस ट्रीटी में सबसे अहम है आर्टिकल 5 जिसमें लिखा है कि यूरोप या अमेरिका में किसी एक या ज्यादा सदस्यों पर सशस्त्र हमले को सभी देशों पर हमला माना जायेगा। इस परिस्थिति में सदस्य देशों के लिए ,”कदम उठाना जरूरी होगा जिनमें हथियारों का इस्तेमाल भी शामिल है।

वही नाटो के जवाब में सोवियत संघ ने भी वारसॉ की संधि की और इसके प्रतिद्वंद्वी के रूप में 12 कम्युनिस्ट देशों का संगठन बनाया था।1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद नाटो ने पूर्वी यूरोप के विरोधी देशों के साथ भी संबंध जोड़े और बाल्कन के युद्ध को भी खत्म करने में मदद की थी।

नाटो का पहला संयुक्त अभियान


वर्ष 1994 में सगठन ने अपना पहला संयुक्त युद्धक अभियान शुरू किया जब बोस्निया हर्जेगोविना में नो फ्लाई जोन को लागू कराने के लिए लड़ाकू विमान भेजे गये थे। नाटो की तरफ से पहले हमले में अमेरिकी विमानों ने चार सर्बियाई विमानों को मार गिराया था।

इसके एक वर्ष बाद ही बोस्निया में शांति सेना की तैनाती के साथ नाटो ने पहली बार जमीन पर अपने कदम रखे थे।  वर्ष 1999 में सर्बिया में इसने 78 दिनों तक बमबारी की थी।  यह कोसोवो में सर्बिया की तरफ से किये हिंसक कार्रवाइयों को रोकने के लिए किया गया था। आखिरकार सर्बियाई सेना कोसोवा से बाहर निकली और उसे संयुक्त राष्ट्र के अधीन कर लिया गया था।


रूस के साथ नाटो का करार
 

वर्ष 1990 के दशक में नाटो ने रूस के साथ भी रिश्तों में जमी बर्फ पिघलाने की कोशिश की थी।  वर्ष 1997 में सगठन ने राजनीतिक रूप से रूस के साथ फाउंडिंग एक्ट पर दस्तखत किया।  इसमें दोनों पक्षों ने शांत और अविभाजित यूरोप का निर्माण करने की शपथ के साथ ही इस बात पर भी जोर दिया था कि एक दूसरे को विरोधी नहीं मानेंगे।  


आतंकवाद के खिलाफ जंग


नाटो के एक के लिए सब और सबके लिए एक शपथ का आह्वान कर पहली बार अमेरिका पर 9/11 के हमले के बाद कार्रवाई किया था।अमेरिकी नेतृत्व में आतंकवाद के खिलाफ जंग में 2003 में नाटो भी शामिल हो गया और अफगानिस्तान में अल कायदा और दूसरे इस्लामी संगठनों को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग बल आईएसएफ का नेतृत्व करने लगा। इसके बाद यूरोपीय संघ का विस्तार होने के साथ गठबंधन का भी विस्तार हुआ।  वर्ष 2004 में बुल्गारिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया भी इसमें शामिल हो गये थे। इसी वर्ष तीन पूर्व सोवियत देशों एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया ने भी नाटो का हाथ पकड़ा था । इस घटना ने रूस को खासतौर से नाराज किया था। इसके बाद 2010 में अल्बानिया और क्रोएशिया और 2017 में मोंटनेग्रो भी नाटो का सदस्य बन गये थे।

वर्ष 2011 में नाटो को संयुक्त राष्ट्र से लीबिया में तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी के जुल्मों से आम लोगों को बचाने के लिए सारे जरूरी उपाय करने का अधिकार मिला। सात महीने तक चले नाटो के हवाई हमलों के अभियान के नतीजे में आखिरकार गद्दाफी को उनके विरोधियों ने सत्ता से हटा दिया था।


पाइरेसी, मानव तस्करी और साइबर अपराध से लड़ा नाटो

नाटो ने अफ्रीका में पाइरेसी, भूमध्यसागर में मानव तस्करी और साइबर हमलों से लड़ने में भी बड़ी भूमिका निभाई है। अफगानिस्तान में नाटो का युद्धक अभियान 2014 में मोटे तौर पर खत्म हो गया था। हालांकि इसके साथ कुछ वर्ष बाद अफगानिस्तान से पूरी तरह नाटो की विदाई हुई जिसके बाद पश्चिमी देशों के ट्रेन किये अफगान सुरक्षा बलों की ताकत बिखर गई और तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया।

नाटो और रूस के बीच रिश्तों को  सबसे ज्यादा चोट तब पहुंची जब रूस ने क्राइमिया को अपने साथ मिला लिया और पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों को समर्थन देने लगा था। वर्ष 2016 में नाटो ने चार बहुराष्ट्रीय बटालियन पोलैंड और बाल्टिक देशों में तैनात किये थे। शीतयुद्ध के बाद पहली बार इतने बड़े स्तर पर संयुक्त फौज की तैनाती हुई। इसके साथ ही इस गठबंधन की प्रासंगिकता को लेकर सवाल उठने लगे।  पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसे ‘बेकार ‘ कहा तो फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने इसके ‘दिमागी मौत’ की घोषणा कर दी थी। हालांकि इसी बीच मार्च 2020 में उत्तरी मैसेडोनिया नाटो का 30वां सदस्य बना था। 

गौरतलब है कि,24 फरवरी 2022 को रूस ने पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमला बोलने से पहले से यूक्रेन नाटो में शामिल होने की बात कर रहा है। इसके लिए यूक्रेन ने कई बार कोशिश भी की है। इस कोशिश में यूक्रेन अभी तक असफल है।युद्ध ख़त्म होने के बाद देखते है क्या होता है।

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