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लंबे समय तक भारत का परंपरागत दोस्त रहा रूस का झुकाव अब भारत के परंपरागत शत्रु पाकिस्तान की तरफ होता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही घटनाओं को लेकर वह भारत के बजाए आज पाक पर ज्यादा यकीन करने लगा है। अफगानिस्तान का घटनाक्रम इसकी पुष्टि करता है। अफगानिस्तान में बदले हालतों के बीच पाकिस्तान और रूस में काफी नजदीकी देखी जा रही है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान बराबर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ संवाद बनाए हुए है। इमरान ने पुतिन टेलीफोन पर अफगानिस्तान में उत्पन्न स्थिति के साथ-साथ क्षेत्रीय और द्विपक्षीय हितों के विषयों पर चर्चा की। दोनों नेताओं ने फोन पर बातचीत में आह्नान किया कि दुनिया को युद्धग्रस्त देश से संपर्क बनाए रखना चाहिए बजाय कि इस अहम मौके पर उसे अकेला छोड़ दिया जाए। यहां ध्यान देने वाली बात है कि एक महीने के भीतर रूसी राष्ट्रपति ने पाकिस्तानी पीएम इमरान खान से दो बार फोन पर बातचीत की है। इससे ऐसा लगता है कि रूस का पाकिस्तान के प्रति झुकाव बढ़ रहा है।

पिछले महीने 25 अगस्त को टेलीफोन पर हुई वार्ता को याद करते हुए दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान के नवीनतम घटनाक्रम, द्विपक्षीय सहयोग और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में साझेदारी के मुद्दे पर एक-दूसरे के विचार जाने। इतना ही नहीं, इमरान खान ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को पाकिस्तान आने का निमंत्रण भी दोहराया। हालांकि, अब तक स्पष्ट नहीं है कि पुतिन कब पाक का दौरा करेंगे, लेकिन पाक प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी एक बयान की मानें तो दोनों देश निकट संपर्क में रहने पर सहमत हुए हैं।
रूस की पाकिस्तान के प्रति दिलचस्पी उस वक्त भी देखी गई थी, जब 9 सालों के बाद रूसी विदेश मंत्री पहली बार पाकिस्तान की यात्रा पर गए थे। पाकिस्तान और रूस के ठंडे संबंधों में यह एक तरह से गर्माहट का हिस्सा था। इस्लामाबाद की अपनी यात्रा के दौरान रूसी विदेश मंत्री लावरोव ने एक बयान में कहा था कि हम पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी क्षमता को मजबूत करने के लिए तैयार हैं, जिसमें पाकिस्तान को विशेष सैन्य उपकरणों की आपूर्ति भी शामिल है। इतना ही नहीं, समुद्री अभ्यास जैसे अतिरिक्त संयुक्त सैन्य अभ्यास करने पर भी दोनों देशों में सहमति बनी है।

उल्लेखनीय है कि रूस और अमेरिका के बीच दशकों चले शीतयुद्ध ने दुनिया को एक अलग ढंग से सोचने के लिए बाध्य कर दिया था। इन दोनों के कोल्ड वॉर चलते छोटे देशों को खामियाजा भी भुगताना पड़ा। एक छोर कम्युनिस्ट का दूसरा छोर साम्राज्यवादी सोच का। उस दौर में भारत ने रूस का दामन थामा। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रूस के साथ मित्रता की जो लीक बनाई, उस पर भारत चलता रहा। चाहे हुक्मरान कोई भी रहा हो। रूस के साथ प्रगाढ़ता के क्रम में अमेरिका को हमने दुश्मन मान लिया और वह हमारे पड़ोसी मगर दुश्मन देश पाकिस्तान के साथ भी मिला। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अमेरिका ने खुले रूप से पाकिस्तान का साथ दिया तो रूस ने भारत का। जब भारत को तबाह करने के मकसद से अमेरिका ने सातवां बेड़ा भेजा तो वह रूस ही था जिसने बीच समंदर में उसे रोका। लेकिन 1990 के बाद यानी सोवियत संघ के विघटन और भूमंडलीकरण के आने के बाद दुनिया के देशों के आपसी रिश्ते और उनके समीकरण में भारी बदलाव आया। यूएसआर के विघटना के बाद रूस कमजोर अवश्य पड़ा है लेकिन उसका किसी भी देश के साथ खड़ा होना एक बड़ी बात है।

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