पिछले डेढ़ महीने से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध अब चरम पर पहुंचता नजर आने लगा है। रूस ने 24 फरवरी को सबको हैरान करते हुए यूक्रेन पर हमला कर दिया था। तब से दुनिया भर के लोग इस युद्ध को खत्म कर शांति बनाने की अपील कर रहे हैं। इस युद्ध को खत्म करने के लिए पश्चिमि देशों ने रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए हैं बावजूद इसके यह युद्ध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इस बीच अब रूस पर और दबाब बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् से रूस को निलंबन कर दिया है।
दरअसल ,संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पेश किया गया था जिसमें रूस द्वारा यूक्रेन में कथित नरसंहार के कारण उसकी सदस्यता निलंबित करने की बात कही गई थी। 193 सदस्य देशों में से 93 सदस्यों ने ही इस प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया है। जबकि 24 देशों ने रूस के समर्थन में मतदान किया है। वहीं 58 सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया, इसलिए प्रस्ताव को दो तिहाई समर्थन मिल गया और रूस की सदस्यता के निलंबन पर मुहर लग गई।
गौरतलब है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में यह तीसरा प्रस्ताव है । इस प्रस्ताव में पहले से ज्यादा सदस्य देशों ने रूस के समर्थन में वोट किया है। जिसमें चीन भी शामिल है। चीन पहले के दो मतदान में गैरहाजिर रहा था। लेकिन इस बार पहले से ज्यादा सदस्य देशों ने रूस के समर्थन में मतदान किया है , जिनमें चीन भी शामिल है। चीन पहले दो प्रस्तावों में मतदान से गैरहाजिर रहा था लेकिन 7 अप्रैल को सयुंक्त संघ में चीन ने रूस के समर्थन में वोट किया। पिछले दो प्रस्तावों में रूस के खिलाफ 141 और 140 सदस्य देशों ने मतदान किया था। जो इस बार 93 पर आ कर अटक गई है।
दरअसल मानवाधिकार परिषद में 47 अस्थाई सदस्यों में रूस भी शामिल हैं। रूस निलंबित के समय अपनी तीन साल की सदस्यता के दूसरे साल में था। मतदान के कुछ समय पहले यूक्रेन के राजदूत सर्गई किसलित्स्या ने कहा कि, ‘हमें आज काउंसिल को डूबने से बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने की जरूरत है। मानवाधिकार परिषद में मतदान के बाद यूक्रेन के विदेश मंत्री दमित्रो कुलेबा ने रूस के खिलाफ वोट करने वाले सदस्य देशों का धन्यवाद किया है। इसके साथ ही उन्होंने सोशल पर एक संदेश में कहा कि, ‘युद्ध अपराधियों के लिए ऐसी यूएन संस्थाओं में कोई जगह नहीं है, जिनका मकसद मानवाधिकारों की रक्षा करना न हो।
मानवाधिकार परिषद में मतदान के बाद रूस के उप राजदूत गेनादी कुजमिन ने पूरी प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठाए हैं । उन्होंने इसे अवैध और राजनीति से प्रेरित कदम बताया है। इसके साथ उन्होंने कहा है कि, रूस ने अब मानव अधिकार परिषद से पूरी तरह से बाहर रहने का फैसला किया है। वहीं यूएन में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉसम ग्रीनफील्ड ने कहा कि, इस प्रस्ताव के पारित होने के साथ ही यूएन ने एक स्पष्ट संदेश भेजा है कि पीड़ितों और बचे हुए लोगों की तकलीफों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
इस प्रस्ताव के विरोध में मतदान करने वाले चीन ने इसे जल्दबाजी में उठाया गया कदम बताया है। चीन के राजदूत जांग जुन का कहना है कि,इस तरह जल्दबाजी में सदस्य देशों को किसी एक पक्ष को चुनने के लिए मजबूर करने से दरारें और चौड़ी होंगी और संबंधित पक्षों के बीच विवाद और भड़केगा। यह आग में घी डालने जैसा है ।
इस पूरे मामले पर रूस का कहना है कि, रूस ने यूक्रेन में एक विशेष ‘सैन्य अभियान’ जिसका मकसद मानवाधिकार का उल्लंघन रोकना है। इसके साथ ही रूस ने किसी तरह का नरसंहार के आरोपों को भी गलत बताया है।
गौरतलब है कि, 7 अप्रैल को मतदान से पहले रूस ने चेतावनी दी थी कि इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करना या गैरहाजिर रहना प्रतिकूल रूख माना जाएगा जिसका द्विपक्षीय संबंधों पर असर पड़ेगा। लेकिन भारत पहले दो प्रस्तावों की तरह इस मतदान से भी बाहर रहा। भारतीय राजदूत टीएस त्रिमूर्ति का कहना है कि,भारत यदि किसी का पक्ष चुनेगा तो वह शांति का पक्ष है। इस हिंसा को तुरंत रोका जाना चाहिए। हमें विश्वास है कि सभी फैसले लोकतांत्रिक नीतियों की प्रक्रिया का पालन करते हुए लिए जाएंगे । यह बात सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर लागू होती है, खासतौर पर यूएन की संस्थाओं पर मानवाधिकार परिषद से सदस्यता के निलंबन के मामले बहुत कम हुए हैं। पिछली बार 2011 में लीबिया को निलंबित किया गया था जब उस पर तत्कालीन शासक मुअम्मर गद्दाफी के विरोधी प्रदर्शनकारियों पर अत्याचार के आरोप लगे थे।
दरअसल,मानवाधिकार परिषद के फैसले कानूनी रूप से किसी देश के लिए बाध्यकारी नहीं होते लेकिन उनका प्रतीकात्मक महत्व होता है। इसके अलावा यह किसी मामले में जांच करा सकती है।पिछले महीने ही परिषद ने यूक्रेन में संभावित युद्ध अपराधों की जांच शुरू की थी।