यूक्रेन संग बीते दो वर्ष से युद्धरत रूस के समक्ष अब हथियारों का संकट पैदा हो चला है। हालात इतने विकट है कि रूस ने अपने सहयोगी देशों बेलारूस, मिस्र, ब्राजील और पाकिस्तान से पूर्व में आपूर्ति किए गए हथियारों और युद्धक विमान के हिस्सों को वापस मांगा है। रूस ने पाकिस्तान से कम से कम चार एमआई-35 एम इंजन वापस मांगें हैं, इससे पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ गई है। हालांकि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का कहना है कि रूस ने इस संबंध में उनसे संपर्क नहीं किया है। इस बीच रूस के सबसे करीबी सहयोगी बेलारूस ने छह एमआई-26 परिवहन हेलीकॉप्टरों के इंजन वापस रूस को बेच दिए हैं। इसके अलावा रूस ने आर्मेनिया और भारत जैसे देशों को बेचे जाने वाले हथियारों की सप्लाई भी रोक दी है
एक तरफ जहां हमास और इजरायल के बीच संघर्ष पूरी दुनिया को बेचैन कर रहा है। उधर, यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध खत्म नहीं हो रहा है। लेकिन अब जो खबर सामने आई है वो बेहद चौंकाने वाली है। इस खबर ने जहां पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है, वहीं रूस की बेचैनी भी साफ नजर आ रही है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस ने अपने सहयोगियों बेलारूस, मिस्र, ब्राजील और पाकिस्तान से पहले आपूर्ति किए गए हथियारों और युद्धक विमान के हिस्सों को वापस मांगा है। रूस ने पाकिस्तान से कम से कम चार एमआई -35 एम इंजन वापस मांगें हैं, इससे पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ गई हैं। हालांकि, पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का कहना है कि रूस ने इस संबंध में उनसे संपर्क नहीं किया है। इस बीच रूस के सबसे करीबी सहयोगी बेलारूस ने छह एमआई-26 परिवहन हेलीकॉप्टरों के इंजन रूस को वापस बेच दिए हैं। इसके अलावा रूस ने आर्मेनिया और भारत जैसे देशों को बेचे जाने वाले हथियारों की सप्लाई भी रोक दी है।
रूस को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी हथियार फैक्ट्री कहा जाता है। रूस ने दशकों की मेहनत के दम पर हथियारों का इतना बड़ा कारोबार खड़ा किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर रूस ऐसी स्थिति में क्यों आ गया कि उसे ये कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा है। अपने बेचे गए हथियार आखिर उसे क्यों दूसरे देशों से मांगने पड़ रहे हैं। जाहिर है इस सवाल का जवाब ये है कि यूक्रेन के साथ युद्ध अब तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है। इस युद्ध में रूस का भारी मात्रा में गोला-बारूद खर्च हुआ है। इस युद्ध ने रूस के लिए हथियारों को लेकर चुनौती खड़ी कर दी है। रूस युद्ध में विशेष रूप से हेलीकॉप्टरों का उपयोग करता रहा है और यूक्रेन संग युद्ध छिड़ने के बाद से 100 हेलीकॉप्टर खो दिए हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए रूस ने हेलीकॉप्टर के इंजन और स्पेयर पार्ट्स का उत्पादन तेज कर दिया, लेकिन आपूर्ति नहीं हो पाई।
यही एक कारण है कि उन्हें अपने सहकर्मियों पर छिपकर नजर रखनी पड़ती है। जिन्हें उन्होंने विमान, हेलीकॉप्टर, रक्षा प्रणाली और मिसाइलें बेचीं, वे अब उन्हें उनसे वापस मांग रहे हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि उनसे संपर्क नहीं किया गया है। मीडिया रिपोर्ट से पता चला है कि ब्राजील से उन हेलीकॉप्टरों के 12 इंजनों की मांग की गई है, जिन्हें पिछले साल सेवामुक्त कर दिया गया था। ब्राजील के विदेश मंत्रालय का कहना है कि ये मांग इसलिए नहीं मानी जा सकती क्योंकि ब्राजील की एक नीति है, वह युद्ध में किसी पक्ष को हथियार नहीं देता।
पिछले साल अप्रैल में रूस ने मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सिसी से भी 100 से ज्यादा रूसी हेलीकॉप्टर की मांग की थी। मिस्र 2014 से रूसी हथियारों का बड़ा ग्राहक रहा है।
हेलीकॉप्टर, वायु रक्षा और लड़ाकू विमानों के लिए अरबों डॉलर का सौदा होना था, लेकिन जब अमेरिकी दबाव बढ़ा तो मिस्र ने कदम पीछे खींच लिए। तब रूस ने मिस्र को बेचे गए एमआई-8 और एमआई-17 हेलीकॉप्टरों के इंजन वापस करने को कहा। उन्होंने कहा कि इनकार करने की स्थिति में वह मिस्र में मौजूद अपने हथियार उद्योग सलाहकार को वापस बुला लेंगे। मिस्र ने तब कहा था कि वह अपने पड़ोस में कई खतरों के कारण अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकता है। अब खबर है कि मिस्र दिसंबर तक हेलीकॉप्टर के इंजन रूस को लौटा सकता है।
अब अगर भारत और आर्मेनिया की बात करें तो रूस का हथियार कारोबार इस हद तक प्रभावित हुआ है कि वह इन दोनों देशों को हथियार सप्लाई नहीं कर पा रहा है। आर्मेनिया को अपेक्षा से बहुत कम मल्टीपल रॉकेट लॉन्च सिस्टम प्राप्त हुए हैं। इसी तरह भारत में कुछ वस्तुओं का निर्यात भी रद्द कर दिया गया है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट बताती है कि 2017 से 2022 के बीच भारतीय रक्षा आयात में हिस्सेदारी 62 फीसदी से गिरकर 45 फीसदी हो गई है।
फरवरी 2022 में मॉस्को टाइम्स द्वारा एक रिपोर्ट भी बनाई गई थी, जिसमें यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से पांच महीने पहले की सैटेलाइट इमेजरी से पता चला था कि लगभग 3,840 सोवियत-युग के टैंक और बख्तरबंद वाहन वाग्झानोवो के बाहर इकट्ठे किए गए थे। लेकिन एक साल से अधिक समय बाद नवंबर 2022 में, केवल 2 हजार 600 सैन्य वाहन ही साइट पर बचे थे। कुल संख्या युद्ध से पहले देखी गई संख्या से 40 फीसदी कम हो गई थी। पूरे मामले में राष्ट्रपति कार्यालय और रूसी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी जेएससी रोसोबोरो नएक्सपोर्ट ने चुप्पी साध रखी है। ये चुप्पी इस बात का तर्क हो सकती है कि हथियारों को लेकर उसकी हालत खराब हो गई है।
रूस के पास कितने हथियार हैं और कितने का अभाव है, इसके बारे में पुख्ता दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उनकी सुरक्षा बेहद गुप्त होती है। पश्चिमी खुफिया एजेंसियां किस आधार पर दावा कर रही हैं कि रूस के पास हथियार खत्म हो गए हैं, इस पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन एक पहलू यह भी है कि यह युद्ध काफी लंबा खिंच रहा है, जिसमें रूस की ओर से मिसाइलों का खूब इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में कुछ न कुछ कमी तो रहेगी ही। अब एक अहम सवाल यह सामने आता है कि क्या यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध की स्थिति अब पलट सकती है? क्या इस खबर के बाद यूक्रेन अपनी रणनीति बदलेगा?
हाल ही में रूसी संसद ने अंतरराष्ट्रीय संधि व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि कॉम्प्रिहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी (सीटीबीटी) से हटने के पक्ष में एक विधेयक पारित किया है, जो किसी भी देश को परमाणु परीक्षण करने से रोकता है। सीटीबीटी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो सभी प्रकार के परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है। इसका उद्देश्य दुनिया में कहीं भी किसी भी तरह के परमाणु हथियार के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाना है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने युद्ध को लेकर चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर इस युद्ध में कोई भी बाहरी व्यक्ति आया तो इसके परिणाम ऐसे होंगे जो इतिहास में भी कभी नहीं देखे गए। इस चेतावनी को परमाणु हमले से जोड़कर देखा गया था। अब एक तरफ हथियारों की कमी, दूसरी तरफ परमाणु बम के परीक्षण संबंधी संधि के खिलाफ बिल क्या यह कमी रूस को परमाणु हथियार इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करेगी? ये बड़ा खतरा अब इस युद्ध में भी मंडराता नजर आ रहा है।