रूस ने यूक्रेन संकट पर भारत के संतुलित और स्वतंत्र रुख की सराहना की है। पूर्वी यूरोप में स्थित देश यूक्रेन को लेकर उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य देशों और रूस के बीच तनाव बढ़ने के मद्देनजर भारत के रुख पर रूस का यह बयान आया है।
जिसमे दिल्ली स्थित रूसी दूतावास ने कहा है कि,‘हम भारत के संतुलित, सैद्धांतिक और स्वतंत्र रुख का स्वागत करते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,एक दिन पहले भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में कहा था कि ‘शांत एवं रचनात्मक कूटनीति‘ वक्त की दरकार है और तनाव बढ़ाने वाला कोई भी कदम उठाने से बचना चाहिए।’’ यूक्रेन संकट पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में, संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के स्थायी प्रतिनधि टी. एस. तिरुमूर्ति ने तत्काल तनाव घटाने की अपील की है।
गौरतलब है कि,रूस ने यूक्रेन की सीमा के पास लगभग एक लाख सैनिकों का जमावड़ा कर रखा है। इसके अलावा वह नौसेना अभ्यास के लिए काला सागर में युद्ध पोत भी भेज रहा है, जिससे नाटो देशों के बीच संदेह बढ़ गया है कि यूक्रेन पर रूस कभी भी हमला कर सकता है।अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी कई बार यूक्रेन पर रूसी हमले आशंका जता चुके हैं। लेकिन रूस ने यूक्रेन पर हमला करने की योजना से इनकार किया है।
रूस-यूक्रेन विवाद की वजह?
यूक्रेन की सीमा रूस और यूरोप से लगती है। वर्ष 1991 तक यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था। रूस और यूक्रेन के बीच विवाद की शुरुआत वर्ष 2013 में हुई। वर्ष 2013 में यूक्रेन की राजधानी कीव में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का विरोध शुरू हो गया था। यानुकोविच को रूस का समर्थन प्राप्त था। अमेरिका-ब्रिटेन तत्कालीन राष्ट्रपति का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रहे थे। इसके अगले साल यानि 2014 में यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा। इससे नाराज रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। साथ ही वहां के अलगाववादियों को समर्थन दिया। रूस के समर्थन के कारण अलगाववादियों ने पूर्वी यूक्रेन के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। तब से यूकेन में रूसी समर्थक अलगाववादियों और यूक्रेन की सेना के बीच लड़ाई चल रही है।
विवाद का दूसरा कारण क्रीमिया है। 1954 में सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को क्रीमिया तोफे में दिया था। 1991 में जब यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ तो क्रीमिया उक्रेन के पास रहा। तभी से क्रीमिया को लेकर भी रूस और उक्रेन के बीच विवाद जारी है। दोनों देश इस पर अपना-अपना दवा करते रहे हैं। दोनों देश में शांति कराने के लिए कई बार पश्चिमी देश आगे आए। मसलन, वर्ष 2015 में फ्रांस और जर्मनी ने बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौता कराया था। उस समझौते में संघर्ष विराम पर सहमति बनी थी। लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव कम नहीं हुआ।
दोनों देशों के बीच विवाद का तीसरा कारण नार्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन को माना जाता है। इस पाइप लाइन से जर्मनी समेत यूरोप के अन्य देशों को रूस सीधे तेल और गैस सप्लाई कर सकेगा। इससे यूक्रेन को जबरदस्त आर्थिक नुकसान होना। वर्तमान में यूक्रेन के रास्ते यूरोप जाने वाली पाइपलाइन से इसे अच्छी कमाई होती है। दूसरी तरफ, अमेरिका भी नहीं चाहता है कि जर्मनी नार्ड स्ट्रीम को मंजूरी दे। क्योंकि अमेरिका का मानना है कि इससे यूरोप की रूस पर निर्भरता और बढ़ जाएगी।