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फिर आमने – सामने होंगे रूस और अमेरिका

 

रूस – यूक्रेन युद्ध ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है। जब बीते 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तब ऐसा कहा जा रहा था कि यह युद्ध जल्द ही ख़त्म हो जाएग,लेकिन ये युद्ध अभी भी जारी है। इस युद्ध के चलते दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है। रूस पर अब तक अमेरिका सहित पश्चिमी देश कई प्रतिबंध लगा चुके हैं। बावजूद इसके यूक्रेन पर रूसी आक्रमण जारी है। इस बीच अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन पूर्वी यूरोप में सैन्य उपस्थिति को बढ़ा रहे हैं। अमेरिका के इस कदम से कहा जा रहा है कि यह युद्ध शीत युद्ध की तरह हो गया है और रूस – अमेरिका एक बार फिर आमने – सामने होंगे।

कुछ दिन पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने जर्मनी से पोलैंड और रोमानिया तक सैनिकों को दोबारा तैनात करने और आने वाले महीनों में नाटो की दक्षिणी सीमा पर नौसेना की उपस्थिति को मजबूत करने के लिए और अधिक डिस्ट्रॉयर भेजने की योजना बनाई । 29 जून 2022 को नाटो के सम्मलेन में इसकी जानकारी दी थी। अमेरिका पोलैंड में यूएस 5th आर्मी कॉर्प्स के स्थायी हेडक्वार्टर बनाएगा, जो फॉरवर्ड कमांड पोस्ट की तरह काम करेंगे। इसके साथ ही नाटो बलों को बढ़ाने के लिए रोमानिया में एक अतिरिक्त बिग्रेड को भी तैनात किया जाएगा। क्षेत्र की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अमेरिका स्पेशल ऑपरेशन फोर्सेस, बख्तरबंद वाहनों, एविएशन और एयर डिफेंस की तैनाती भी बढ़ाएगा। अमेरिका ब्रिटेन में दो अतिरिक्त एफ-35 फाइटर बॉम्बर स्क्वाड्रन और स्पेन में रोटा नौसैनिक अड्डे पर दो अतिरिक्त डिस्ट्रॉयर भी तैनात करेगा। बाइडन का बयान नाटो क्षेत्र के ‘एक-एक इंच’ क्षेत्र की रक्षा के लिए उनकी प्रतिबद्धता को दिखाता है।

गौरतलब है कि फरवरी 2022 में बाइडन ने 20,000 सैनिकों की बढ़ोत्तरी को मंजूरी दे दी थी। हालिया बयान उनकी तैनाती और यूरोप में सैन्य बुनियादी ढांचे में स्थायी बदलाव का संकेत है। पूर्वी यूरोप में बढ़ती अमेरिका की सैन्य उपस्थिति शीत युद्ध के दिनों की याद दिलाती है। यूरोप में वर्तमान में अमेरिका के 100,000 सैनिक मौजूद हैं। यह आंकड़ा 1950 के दशक के आखिर में शीत युद्ध के दौरान यूरोप में मौजूद अमेरिकी सैनिकों की तुलना में बेहद कम है, जब करीब 450,000 अमेरिकी सैनिक यहां मौजूद थे। शीत युद्ध के दौरान ज्यादातर यह आंकड़ा करीब 330,000 रहा था, जबकि पूर्वी जर्मनी में सोवियत यूनियन के 500,000 सैनिक मौजूद रहे थे।

शीत युद्ध के समय वारसॉ पैक्ट (सोवियत संघ और अल्बानिया, बुल्गेरिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड और रोमानिया के बीच एक सुरक्षा समझौता) और नाटो के पास बड़ी संख्या में ‘युद्ध के लिए तैयार’ सैनिक थे। नाटो के पास 900,000 सैनिक और वारसॉ पैक्ट के खेमे में 12 लाख सैनिक किसी भी संभावित बड़ी लड़ाई के लिए तैयार थे। दोनों के पास बड़े पैमाने पर टैंक (वारसॉ पैक्ट के पास 67,000 और नाटो के पास 32,000), गोला-बारूद, बख्तरबंद लड़ाकू गाड़ियां और एयरक्राफ्ट भी थे। उनके पास बड़ी संख्या में म्यूनिशन डिपो भी थे। इसके अलावा अमेरिकी सेना 7000 से अधिक परमाणु हथियारों के साथ तैयार थी जिनकी संख्या वर्तमान में 200 के आसपास है।

यूरोप की सुरक्षा से हट गया अमेरिका का ध्यान
वर्ष 1991 में सोवियत संघ और वारसॉ पैक्ट के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप से सभी सोवियत संघ वापस बुला ली थी।नाटो ने भी यूरोप में अपने सैनिकों की संख्या घटाकर करीब 60,000 कर दी थी । कुछ समय बाद पोलैंड, चेक रिपब्लिक और हंगरी नाटो में शामिल हो गए जिन्हें 12 मार्च 1999 को आधिकारिक रूप से सैन्य गठबंधन की सदस्यता मिली। ‘नाटो-रशिया फाउंडिंग एक्ट 1997’ और रूसी गैर-परमाणु सैन्य क्षमताओं के आभासी पतन के बाद अमेरिका का यूरोप की सुरक्षा से ध्यान हट गया था लेकिन यूरोप में मौजूद अमेरिकी सैनिक सिर्फ अफगानिस्तान और इराक युद्ध में मदद के लिए रुके थे। यूरोप के बजाय ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ अमेरिका की ग्लोबल सिक्योरिटी पॉलिसी की प्राथमिकता बन गया।

यूक्रेन- रूस युद्ध ने बदल दिया सुरक्षा नक्शा

वर्ष 2018 में यूरोप में अमेरिकी सैनिकों की संख्या घटकर सिर्फ 65,000 रह गई। लेकिन जून 2021 में नाटो नेताओं ने तीन चीजों को यूरोप की सुरक्षा के लिए खतरा बताया- रूस, चीन और आतंकवाद। नाटो ने कहा कि ‘रणनीतिक बदलावों’ की जरूरत है। यूरोप में अमेरिकी सैनिकों की बढ़ोत्तरी की घोषणा रूस के लिए एक कड़ा संदेश है। हालांकि यूक्रेन में कड़े प्रतिरोध का सामना कर रहे रूस की तरफ से एक और फ्रंट खुलने की संभावना अब बेहद कम है। नाटो शिखर सम्मेलन में सैन्य गठबंधन ने अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को एक बार फिर दुनिया के सामने स्पष्ट कर दिया है।

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