इन दिनों नेपाल की राजनीति में अमेरिका को लेकर बवाल मचा हुआ है। अमेरिका के एक सहायता प्रोग्राम को लेकर यहां भारी राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। इसका कारण है अमेरिका द्वारा नेपाल को 50 करोड़ डॉलर का अनुदान देना। लेकिन नेपाल सरकार में सहयोगी दल और विपक्षी पार्टियां इससे जुड़े समझौते के मौजूदा स्वरूप के विरोध में हैं। उनका कहना है कि समझौते में संशोधन होना चाहिए क्योंकि इसके कुछ प्रावधानों से नेपाल की संप्रभुता को ख़तरा हो सकता है। उधर, अमेरिका ने भी चेतावनी दी है कि अगर 28 फरवरी तक एमसीसी समझौते को मंजूरी नहीं मिलती है तो वह नेपाल के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करेगा। एमसीसी समझौते के तहत बाइडेन प्रशासन नेपाल को 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान (फंड ) देने की पेशकश कर रही है। लेकिन नेपाल में सत्तारूढ़ गठबंधन की सहयोगी पार्टियां और विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। इसमें सबसे मुखर आवाज चीन के करीबी समझे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की है।
इस फंड को लेकर 20 फरवरी, रविवार को पूरे दिन नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों से लेकर संसद तक हंगामा मचा रहा। सबसे बड़ी बात ये है कि इस डील पर 5 साल पहले से ही नेपाल सरकार ने हामी भरी हुई है। मौजूदा सरकार भी इसे अमलीजामा पहनाने की ठान चुकी है, लेकिन हर स्तर पर इसका विरोध खत्म नहीं हो रहा है। दरअसल, इसको लेकर नेपाली जनता के मन में कुछ आशंकाएं हैं, जो सरकार अंत समय तक दूर नहीं कर पाई है।
क्यों हो रहे विरोध प्रदर्शन
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस समझौते को लेकर कुछ दुष्प्रचार भी देखने को मिल रहा है। कहा जा रहा है कि अमेरिका इस मदद के बहाने नेपाल में अपने सैन्य अड्डे बना सकता है। यह चीन को रोकने की उसकी रणनीति है। इससे नेपाल की संप्रभुता को चोट पहुंचेगी। यही वजह है कि नेपाली जनता इसका विरोध कर रही है। विरोध प्रदर्शन कर रहे कुछ लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है।
नेपाल-अमेरिका समझौता क्या है ?
अमरीका और नेपाल के बीच 50 करोड़ डॉलर का समझौता 2017 में हुआ था। ‘मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन नेपाल ‘ के तहत अमेरिका यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के विकास के लिए 50 करोड़ डॉलर देने वाला है। इसके तहत, भारत-नेपाल को जोड़ने वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट भी शामिल हैं।
इस समझौते में अमेरिका की ओर से नेपाल में बिजली की अल्ट्रा हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन बनाने का ज़िक्र है। इसका इस्तेमाल कर नेपाल, भारत को बिजली बेच सकेगा। इसके साथ ही कुछ सड़क परियोजनाओं का भी विकास होना है। इस समझौते में भारत की मंज़ूरी भी ज़रूरी है।
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इस बीच बढ़ते विरोध को देखते हुए अमेरिका के एमसीसी मुख्यालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर अब देरी हुई तो नेपाल के लिए अमेरिकी अनुदान समाप्त हो सकता है। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और सरकार में उनके साथी सीपीएन माओवादी नेता पुष्प कमल दहल को लिखे पत्र में अमेरिका ने नेपाल सरकार को संसद से समझौते का समर्थन करने के लिए 28 फरवरी की समय सीमा दी है।
दरअसल नेपाल के पीएम शेर बहादुर देउबा और गठबंधन के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड ने पिछले साल सितंबर में अमेरिकी अधिकारियों को चिट्ठी लिख कर कहा था कि वे चार-पांच महीने में इस समझौते को संसद का समर्थन दिला देंगे लेकिन अब तक इसे मंज़ूरी न मिलने से अमरीका नाराज़ है। अमेरिका ने कहा है कि नेपाली नेताओं ने जो वादा किया था, उसे पूरा करें वरना हम ये सहायता वापस ले लेंगे।
नेपाल-अमेरिका के बीच भारत
जब ये समझौता हुआ तो अमेरिका ने कहा था कि इसमें भारत को भी भरोसे में लेना होगा। इसकी बड़ी वजह यह है कि बिजली ट्रांसमिशन लाइन नेपाल के गुटवल से भारत के गोरखपुर तक बिछेगी। इसको लेकर भी नेपाल सरकार में शामिल कम्युनिस्ट पार्टियां विरोध कर रही है। कम्युनिस्ट पार्टी का कहना है कि जब समझौता नेपाल और अमेरिका के बीच हुआ है, तो इसमें भारत को क्यों बीच में लाया जा रहा है। कम्युनिस्ट पार्टी भारत के विरोध में यह प्रचार कर रही हैं। उनका तर्क है कि यह नेपाल की स्वतंत्र विदेश नीति के लिए ठीक नहीं है।
नेपाल के समर्थन में आया चीन
इस समझौते को लेकर छिड़े विवाद के बीच चीन ने नेपाल के पक्ष में बयान दिया है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने दैनिक प्रेस वार्ता के दौरान इस समझौते से जुड़े सवाल पर कहा है कि चीन, नेपाल की संप्रुभता और हितों की कीमत पर स्वार्थी एजेंडा को आगे बढ़ाने वाली प्रतिरोधी कूटनीति और कार्यों का विरोध करता है।
अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हाल ही में कहा था कि नेपाल को ये तय करना होगा कि वो 28 फ़रवरी तक दोनों देश के बीच हुए मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन (एमसीसी) के समझौते को मंज़ूर करे या फिर इसका असर दोनों देशों के संबंधों पर पड़ सकता है। मौजूदा समय में नेपाल की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच ही इस समझौते को लेकर मतभेद हैं। नेपाल में इस समझौते के विरुद्ध प्रदर्शन तेज होते जा रहे हैं।
चीन ने इस मामले पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन माना जा रहा है कि वो नेपाल में अमेरिकी असर को बढ़ते नहीं देखना चाहता। अमेरिका के अधिकारियों का कहना है कि नेपाल समझौता रद्द करता है, तो वहां बाहरी असर और भ्रष्टाचार काफ़ी बढ़ जाएगा।