ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका की विदेश नीति में कई बदलाव आए हैं। इन बदलावों में सबसे महत्वपूर्ण रूस के साथ नाभिकीय संधि को खत्म करना है।
अमेरिका ने रूस पर आरोप लगाया है कि वह संधि के समझौते का पालन नहीं कर रहा था। दूसरी तरफ रूस इस आरोप को झूठा बता रहा है। इस घटना के बाद दुनिया में परमाणु हथियारों की होड़ फिर से शुरू होने की आशंका है।
परमाणु युद्ध का खतरा लोगों के जेहन में डर पैदा करता है। हिरोशिमा और नागाशाकी पर हुए परमाणु हमले के 70 साल से ज्यादा का समय हो चुका है, लेकिन उसकी भयावहता आज भी दुनिया के लोगों के दिलो-दिमाग में है। परमाणु हथियारों की होड़ के पीछे नाभिकीय संधि को न मानने के अलावा और भी कई कारण बताए जा रहे हैं। फिर परमाणु और पारंपरिक हथियारों के बीच जो अंतर अब खत्म हो रहा है, वह भी दुनिया के लोगों के लिए डरने की एक बड़ी वजह है। परमाणु और गैर-परमाणु हथियार कभी भी पूरी तरह से एक-दूसरे से अलग नहीं थे। विशेषज्ञ बताते हैं कि बी-29 बमवर्षक विमानों को ही लें तो पारंपरिक बमों के लिए विकसित किया गया था। लेकिन 6 अगस्त 1945 को इनमें से एक विमान ‘एनोला गे’ ने जापान के हिरोशिमा पर दुनिया का पहला परमाणु बम गिराया। 74 साल बाद दुनिया के नौ देशों के पास हजारों परमाणु बम हैं, जो बड़ी मात्रा में गैर-परमाणु बमों से लिपटे हुए हैं।
1986 में दुनिया भर में परमाणु बमों की संख्या करीब 64 हजार थी जिसमें अब कमी आई है, लेकिन आज के परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराए गए बम से लगभग 300 गुना अधिक शक्तिशाली हैं। सभी परमाणु संपन्न देशों के पास दोहरे इस्तेमाल के लायक हथियार हैं। मतलब ये कि इनका पारंपरिक हथियार के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है और परमाणु बम को ले जाने में भी। इनमें लंबी दूरी की मिसाइलें भी शामिल हैं और मार करने की इनकी क्षमता में भी लगातार वृद्धि हो रही है।
रूस ने हाल ही में एक क्रूज मिसाइल 9एम729 को अपने बेड़े में तैनात की है। अमेरिका का मानना है कि इन मिसाइलों का दोहरा उपयोग हो सकता है और 500 किलोमीटर की दूरी पर इनका ‘अच्छी तरह से’ परीक्षण किया गया है। अमेरिका का दावा है कि रूस ने इसके साथ ही मध्यम दूरी की मिसाइलों के इस्तेमाल पर लगी प्रतिबंध वाली संधि की शर्तों का उल्लंघन किया है। हथियारों की इस नई होड़ पर अपनी चिंता जताते हुए अमेरिका ने इस समझौते से हटने की घोषणा भी कर दी। इस बीच, चीन ने भी हाल ही में अपनी नई मिसाइल डीएफ-26 का प्रदर्शन किया है। 2,500 किलोमीटर तक सटीक प्रहार करने में सक्षम दुनिया की यह सबसे लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल है। कई स्थितियां हैं जब ऐसी मिसाइलें परमाणु युद्ध की आशंकाओं को बढ़ा सकती हैं।
वास्तविकता यह है कि युद्ध के दौरान यह जानना मुश्किल है कि शत्रु किस तरह की मिसाइल दाग रहा है। युद्ध में शामिल दूसरे देश, क्या तब तक इंतजार करेंगे कि मिसाइल दागी जाए और जब वो गिरे तब यह आकलन किया जाए कि वो कैसे शस्त्र थे। सबसे बड़ा खतरा तो यह है कि युद्ध की स्थिति में इसका पारंपरिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाए, लेकिन शत्रु उसे परमाणु हथियार समझ कर अपने परमाणु हथियार चला दे। कल्पना कीजिए कि चीन ने अपनी सीमा में परमाणु हथियार संपन्न डीएफ-26 मिसाइलों को तैनात किया है और अमेरिका उन्हें गलती से पारंपरिक हथियार समझते हुए नष्ट करने का फैसला करे। इस तरह से अमेरिका हमला करके अनजाने में चीन को अपने बाकी परमाणु हथियारों को लॉन्च करने के लिए उकसा सकता है। दोहरे उपयोग वाली मिसाइलें एकमात्र हथियार नहीं हैं जिसके जरिए परमाणु और गैर-परमाणु हथियार इस्तेमाल किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, सभी न्यूक्लियर सेना को संचार प्रणाली की आवश्यकता है, इसके लिए सैटेलाइट की आवश्यकता होती है। लेकिन, तेजी से ऐसे परमाणु कमांड- कंट्रोल सिस्टम का उपयोग गैर-परमाणु ऑपरेशन के लिए भी किया जा रहा है।
उदाहरण के लिए, अमेरिका, परमाणु या पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ हमले की चेतावनी के लिए उपग्रहों का इस्तेमाल करता है। नैटो और रूस के बीच संघर्ष में इनका इस्तेमाल रूस की लॉन्च की गई पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। उन्हें मार गिराने की दिशा में उठाए गए पहले कदम के रूप में। अगर यह रणनीति कामयाब रही तो रूस जवाब में अमेरिका के पूर्व-चेतावनी वाले उपग्रहों पर हमले कर सकता है। वास्तव में, अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने चेताया भी है कि रूस इस उद्देश्य के लिए जमीनी लेजर हथियार विकसित कर रहा है। लेकिन अमेरिका की पूर्व-चेतावनी वाले उपग्रहों को खत्म करने मात्र से पारंपरिक हथियारों वाले मिसाइलों को दागने की उसकी क्षमता कम नहीं होगी, बल्कि इससे अमेरिका को यह आशंका जरूर होगी कि कहीं रूस अमेरिका पर परमाणु हमले की योजना तो नहीं बना रहा। अपनी परमाणु नीति में अमेरिका स्पष्ट रूप से किसी भी उस देश के खिलाफ अपने परमाणु हथियारों के उपयोग पर विचार करने की चेतावनी देता है जो उसके परमाणु कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम पर हमला करता है। चेतावनी इस बात पर निर्भर है कि अमुक देश ने सबसे पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया है।
परमाणु संपन्न देशों की सरकारें परमाणु और गैर परमाणु हथियारों के बीच बढ़ती उलझन से अवगत हैं। भले ही वो इससे जुड़े कुछ खतरों से परिचित हैं। लेकिन, इसके खतरों को कम करना उनकी प्राथमिकता नहीं दिखती। उनका पूरा ध्यान दूसरे देश को रोकने के लिए अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने पर रहता है। इन देशों के लिए एक विकल्प ये हो सकता है कि वो उन हथियारों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश कर सकते हैं जो परमाणु कमांड-एंड- कंट्रोल उपग्रहों के लिए खतरा हैं। लेकिन फिलहाल परमाणु संपन्न देश ऐसी किसी भी सहमति के लिए एक मंच पर बैठने के लिए तैयार नहीं हैं। लिहाजा, ऐसे किसी सहयोग की संभावनाएं अभी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती हैं।