जब भारत-चीन तनाव को लेकर भारत और रूस के विदेश मंत्रियों की वार्ता हुई तो पूरी दुनिया में दोनों की दोस्ती के चर्चे थे, लेकिन अब चर्चा उनकी दोस्ती की नहीं बल्कि भारत और अमेरिका के बीच लगातार बढ़ रही नजदीकियों की हो रही है।
गौरतलब है कि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने एक साथ क्वॉड समूह बनाया और इस समूह को औपचारिक भी कर दिया। हालांकि 2007 से यह समूह अस्तित्व में था लेकिन उस समय इसे अनौपचारिक समूह माना जाता था।
दुनिया द्वारा क्वॉड को चीन के ख़िलाफ़ एक समूह के तौर पर देखा जाता रहा है। लेकिन अब इस समूह में भारत के शामिल होने से रूस थोड़ा असहज महसूस कर रहा है। हालांकि सार्वजनिक तौर पर रूस ने कभी भी खुलकर इसपर कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को रूस ने कड़े शब्दों में आपत्ति दर्ज करा दी है।
20 सालो में पहली बार टली बैठक
भारत और रूस के बीच वार्षिक बैठक तब से जारी है जब से पुतिन मई 2000 में रूस के राष्ट्रपति बने थे। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि जब इस वार्षिक बैठक को टाल दिया गया है। इस मीटिंग को टालने पर कई लोगों द्वारा कोविड महामारी का तर्क दिया जा रहा है। लेकिन इस तर्क पर कहा जा रहा है कि बैठक को वर्चुअल भी किया जा सकता है।ऐसे लोग दोनों देशों के तर्कों से सहमत नहीं हैं। हालिया दिनों में ही प्रधानमंत्री मोदी कई वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय समिट में शामिल हुए हैं।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने वार्षिक बैठक टलने पर बयान जारी कर स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने कहा, ‘’वार्षिक बैठक को रद्द करने का फैसला पारस्परिक सहमति से लिया गया है। इसे लेकर किसी भी तरह की अटकलबाजी में भ्रमित करने वाले हैं और उनमें कोई सच्चाई नहीं है। दोनों देशों के रिश्ते बेहद अहम हैं और इसे लेकर किसी भी तरह की फर्जी न्यूज स्टोरी फैलाना एक गैर-जिम्मेदाराना रवैया है।’’
पिछले 20 सालों से रूस और भारत के बीच वार्षिक सम्मेलन लगातार जारी है। लेकिन इस बार यह नहीं हो सका। भारत और रूस ने इस सम्मेलन के ना होने के पीछे कोरोना महामारी को वजह बताया है। लेकिन विपक्ष के नेता राहुल गांधी को इसके पीछे क्वॉड समूह को कारण बता रहे हैं। बुधवार को उन्होंने ऐसा ही एक आर्टिकल ट्विटर पर शेयर किया।
उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘’रूस भारत का अहम दोस्त हैं। पारंपरिक संबंधों को नुकसान पहुंचाना हमारी अदूरदर्शिता है और यह भविष्य के लिए खतरनाक है।’’ राहुल गांधी की इस टिप्पणी के बाद दोनों देशों की तरफ से आधिकारिक बयान आया और बताया गया कि कोविड 19 महामारी के कारण इसे टाला गया है। भारत में रूस के राजदूत निकोलय कुदाशेव ने कहा कि भारत और रूस के संबंध गतिशील हैं।
Russia is a very important friend of India.
Damaging our traditional relationships is short-sighted and dangerous for our future. pic.twitter.com/U5VyFWeS6L
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 23, 2020
रूस को क्वॉड से दिक़्क़त क्या है?
विदेश मंत्रालय और राहुल गांधी के बयान रूस और भारत के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन ना होने के कारणों को लेकर हो, लेकिन ये बात सच है कि क्वॉड समूह को लेकर रूस थोड़ा असहज नजर आ रहा है। रूसी विदेश मंत्री ने सरकारी थिंक टैंक रशियन इंटरनेशनल अफ़ेयर्स काउंसिल को वीडियो कॉन्फ़्रेसिंग से संबोधित करते हुए कहा था कि पश्चिमी देश भारत के साथ उसके क़रीबी रिश्तों को कमज़ोर करने का प्रयास कर रहे हैं। उनका संकेत क्वॉड समूह की ओर था। हाल ही में उसके बाद भारत में रूस के राजदूत निकोल कुदशेव ने हिंद महासागर में यूरेशियन साझेदारी की पेशकश की थी। इसलिए ये समझना ज़रूरी हो जाता है कि भला रूस को इस समूह से क्या परेशानी हो सकती है?
Noted the article “India-Russia annual summit postponed for 1st time in two decades amid Moscow’s unease with Quad” in the Print.
Find it to be far from reality. Special and privileged strategic partnership between Russia and India is progressing well despite the #COVID19.
— Denis Alipov 🇷🇺 (@AmbRus_India) December 23, 2020
मॉस्को में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार विनय शुक्ला का कहना है कि इस बात से किनारा नहीं किया जा सकता है कि कोरोना की वजह से इस साल वार्षिक शिखर सम्मेलन नहीं हो रहा है। लेकिन यह भी झूठला नहीं सकते हैं कि रूस इस समूह को लेकर थोड़ा असहज जरूर है।
विनय शुक्ला रूस क्वाड के साथ असहज क्यों है इसके दो मुख्य कारण बताते हैं, “पहला यह है कि रूस के अनुसार यह भारत के लिए इस समूह में शामिल होने के लिए थोड़ा अनैतिक है। दूसरे, रूस को लगता है कि क्वाड इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भी रूस के लिए खतरा साबित हो सकता है।”
रूस-अमेरिका दूसरे के विरोधी हैं। अमेरिका क्वाड में शामिल है। भले ही क्वाड को चीन के खिलाफ माना जाता है, लेकिन रूस को लगता है कि इस समूह का नियंत्रण अमेरिका के हाथों में होगा। इस तरह भारत-एंटी-रसिया ’शिविर का हिस्सा बन जाएगा। इंडो-पैसिफिक में रूसी बेड़े पर खतरा मंडरा सकता है।
हालांकि जेएनयू के सेंटर फॉर रशिन स्टडी में प्रोफेसर संजय पांडे कहते हैं कि रूस अपने रूसी बेड़े की सुरक्षा को लेकर आशंकित हो सकता है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि भारत कभी भी रूस विरोधी गतिविधि में शामिल होने के लिए तैयार होगा। चीन से निपटने के लिए बनाया गया। भारत क्वाड को इस रूप में देखता है लेकिन यह कभी भी खुलकर नहीं कहता है।
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मध्यस्थ की भूमिका निभाई रूस ने
इस साल मई के महीने के बाद से, लद्दाख सीमा में भारत और चीन के बीच तनाव की स्थिति है। अगर बात ज्यादा बिगड़ी तो भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रूस के रक्षा मंत्री से चीन में ही मुलाकात की।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के इशारे पर, रूस दोनों देशों में तनाव के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है। यहां तक कि डोकलाम विवाद के समय भी रूस ने ऐसी भूमिका निभाई है।
ऐसी स्थिति में, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-चीन सीमा के साथ तनाव चल रहा है और अगर रूस की मध्यस्थता की भूमिका जारी है तो भारत के लिए ‘चीन विरोधी’ समूह का हिस्सा होना अनैतिक है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दुनिया की नज़र में, क्वाड चार समान विचारधारा वाले देशों का समूह हो सकता है। लेकिन इसे ‘चीन विरोधी’ समूह के रूप में देखा जा रहा है।
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भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर है। भारत रूस के साथ अपना 90 प्रतिशत सौदा करता है और रूस को इससे अरबों डॉलर का व्यापार मिलता है। लेकिन हाल के वर्षों में भारत ने रक्षा सौदे में इजरायल को बहुत महत्व दिया है और अमेरिका, फ्रांस जैसे देशों में भी प्रवेश किया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह भी रूस की नाराजगी है।
रूस और भारत के बीच मित्रता शीत युद्ध के समय की है, जब रूस सोवियत संघ हुआ करता था। शीत युद्ध के बाद सोवियत संघ का विघटन हुआ और दुनिया एकध्रुवीय हो गई। तब से रूस और भारत के संबंधों में कई बदलाव आए हैं।
लेकिन रूस के मन में आज तक अमेरिका के मजबूत होने और सोवियत संघ के टूटने की कसक जिन्दा है। रूस नहीं चाहता कि भारत अमेरिका के नेतृत्व को स्वीकार करे, लेकिन बदलती वैश्विक स्थिति में भारत के लिए किसी एक पक्ष में जाना आसान नहीं है। भारत न तो रूस को नाराज कर सकता है और न ही अमेरिका की अनदेखी कर सकता है।