[gtranslate]
world

कई देशों में मंडरा रहा है चावल का संकट

चावल उन खाद्य पदार्थों में से एक है जिसका उपयोग सबसे अधिक होता है। लेकिन कई देश ऐसे भी हैं जहाँ लगातार चावल की कमी होती जा रही है। हाल ही में जारी की गई ‘फिच सॉल्यूशंस’ की रिपोर्ट के अनुसार विश्व का सबसे बड़े चावल उत्पादक चीन, भारत ,अमेरिका,पाकिस्तान , यूरोपीय संघ में चावल का उत्पादन तेजी से घटा है।

 

जिसके कारण बाजारों में चावल 1.86 करोड़ टन की कमी पाई गई है। आशंका जताई जा रही है कि ‘वैश्विक स्तर पर, चावल की कमी स्पष्ट रूप से देखी गई है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि चावल की कीमत 2023 से अब तक औसतन 1 हजार 421 रुपए प्रति कुंतल थी, जो 2024 तक 1 हजार 191.59 रुपये प्रति कुंतल तक कम हो जाएगी।

 

चावल संकट का कारण

 

दुनिया भर में चावल की कमी का एक सबसे बड़ा कारन रूस यूक्रेन युद्ध को माना जा रहा है। इस युद्ध के कारण चावल की आपूर्ति कम हो गई है। इसके अलावा, चीन और पाकिस्तान जैसे अधिक चावल उत्पादक देशों में मौसम की खराबी भी इस संकट का महत्वपूर्ण कारण है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन के चावल उत्पादन के प्रमुख केंद्र- गुआंग्शी और ग्वांगडोंग प्रांतों में बीते 20 वर्षों में दूसरी सबसे अधिक वर्षा हुई। इसी तरह, वैश्विक चावल व्यापार के 7.6 फीसदी हिस्सेदार पाकिस्तान में पिछले साल विनाशकारी बाढ़ के कारण वार्षिक उत्पादन में 31 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है।

 

क्या है भारत की स्थिति

 

भारत दुनिया भर में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। चावल संकट को कम करने के लिए भारत सरकार हमेशा कदम उठती रहती है। रिपोर्ट में यह अनुमान भी लगाया है कि इस वर्ष भारत में चावल की खेती पिछले साल की तुलना में 13.65 लाख टन अधिक हो सकती है। लेकिन भारत में चावल का उत्पादन मौसम पर निर्भर करता है। इस बीच, मौसम विभाग को उम्मीद है कि देश में सामान्य मानसून वर्षा होगी। चावल उद्योग से जुड़े जानकारों का कहना है कि उन्हें देश में कोई समस्या नहीं दिख रही और लागत नियंत्रण में है।

 

पिछले साल भारत चावल निर्यात पर लगाई रोक

 

चावल की फसल की घटती पैदावार को देखते हुए पिछले साल भारत सरकार ने चावल निर्यात पर रोक लगा दिया था। क्योंकि चावल फसल ऐसे समय में कम हो रहा था जब बड़े पैमाने पर खाद्य मुद्रास्फीति दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचा । सरकार के मुताबिक धान की फसल का उत्पादन बीते वर्षों की तुलना में बहुत कम हुआ है। इसी वर्ष समय से पहले पड़ी भीषण गर्मी के कारण कम उत्पादन की वजह से भारत सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी गई थी। और इसी वर्ष बारिश की कमी के कारण चावल निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।सरकार के पास चावल का पर्याप्त बफर स्टॉक है, लेकिन फसल उत्पादन न होने की वजह से सरकार इस बार चावल की खरीद उचित मात्रा में नहीं कर सकेगी। जिससे सरकार के पास रखे चावल के स्टॉक पर बोझ पड़ेगा। भारत ने 2021-22 में 2.12 करोड़ टन चावल निर्यात किया था। कम उत्पादन के चलते सरकार चावल की खरीद सही मात्रा में नहीं कर पायेगी। चावल उत्पादन वाले एक राज्य बंगाल में 28 फीसदी बारिश की कमी हुई है। सरकार के पास चावल का स्टॉक है लेकिन कम उत्पादन की वजह से सरकार पर चावल की पूर्ति करवाने का बोझ बढ़ सकता था । जिसे देखते हुए सरकार ने टूटे हुए चावल पर भी प्रतिबंध लगा दिया।

 

साल 2050 तक गायब हो सकता है थाली से चावल

 

इलिनोइस विश्वविद्यालय के अमेरिकी शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह अध्ययन किया है कि साल 2050 तक चावल के उत्पादन की मात्रा में भारी कमी देखने को मिल सकती है। शोधकर्ताओं की एक टीम ने बताया कि अगर मृदा संरक्षण के लिए आधुनिक तकनीकी का प्रयोग नहीं किया गया और फसल के समय अपशिष्ट को सीमित करने पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में चावल का उत्पादन काफी कम हो सकता है। इस टीम द्वारा बिहार में स्थित ‘नॉर्मन बोरलॉग संस्थान’ के चावल उत्पादन केंद्र पर अपने शोध को अंजाम दिया गया है। जिसका मकसद था साल 2050 तक चावल की पैदावार और पानी की मांग का अनुमान लगाना।

प्रशांत कलिता जो की इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और इलिनोइस विश्वविद्यालय में कृषि और जैविक इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर है। उन्होंने बताया कि बदलता हुआ मौसम तापमान, वर्षा और कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता को भी प्रभावित करता है। विशेष रूप से ये चावल जैसी फसल की वृद्धि के लिए बेहद आवश्यक सामग्री हैं। यदि इन पर बुरा असर पड़ता है तो उत्पादन का प्रभावित होना पूरी तरह तय है।

प्रोफेसर कलिता के अध्ययन के आधार पर यह अनुमान जताया गया है कि अगर चावल उत्पादक किसान वर्तमान प्रथाओं के साथ अपनी खेती को जारी रखते हैं, तो उनके पौधों की उपज 2050 तक घट सकती है। हमारे मॉडलिंग के परिणाम यह बताते हैं कि फसल की वृद्धि अवस्था काफी कम होती दिख रही है। फसलों की बुआई से लेकर कटाई तक का समय अब काफी तेजी से कम होता दिख रहा है। इससे फसलें भी तेजी से परिपक्व होती दिख रही हैं। इस कारण किसानों को भी अपनी पूरी उपज का फायदा नहीं मिल पा रहा है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD