आर्थिक मोर्चे पर दुनिया की चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं जिससे वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा कम होने के बजाए बढ़ गया है। इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की महाशक्ति अमेरिका, यूरोप और चीन में मंदी का दौर इस साल भी जारी रहेगा जो दुनिया भर के नीति- नियंताओं के लिए चिंता बढ़ाने वाली है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होने वाला है जिसकी वजह से दुनिया भर में करोड़ों लोग गरीबी और भुखमरी के कगार पर आ सकते हैं
कोरोना महामारी ने पिछले ढाई से अधिक सालों में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर ऐसा कहर ढाया है कि अमीर देशों में गरीबी बढ़ गई है और गरीब देशों के लिए जीना दुश्वार हो गया है। महामारी थमी तो अर्थव्यवस्थाओं ने फिर से पटरी पर दौड़ना शुरू किया ही था कि फिर से कोरोना ने लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। वहीं यूक्रेन-रूस युद्ध अभी भी जारी है। जिसका असर दुनिया भर के मुल्कों में देखने को मिल रहा है। जो मौजूदा समय में विश्व की सबसे बड़ी समस्या हो गई है। ऐसी स्थिति में गरीब देश जहां पहले से कोरोना की मार झेल रहे हैं। वहीं अब उन्हें बढ़ती महंगाई की दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा द्वारा संकेत दिए गए हैं कि इस साल दुनिया की महाशक्ति अमेरिका, यूरोप और चीन में मंदी आने वाली है। चीन में पहले की तरह कोरोना से लाशों के फिर ढेर लग गए हैं। अमेरिका, यूरोप में आर्थिक गतिविधियां ढीली पड़ती नजर आ रही हैं। ऐसे में आईएमएफ द्वारा दिए संकेत दुनिया को चिंता में डाल सकते हैं।
आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा की ओर से कहा गया है कि ‘नया साल उस साल की तुलना में कठिन होने जा रहा है, जिसे हम पीछे छोड़ आए हैं। क्योंकि तीन-तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन सभी एक साथ स्लो डाउन की तरफ बढ़ रही हैं।
आईएमएफ से पहले सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (सीईबीआर) ने भी एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक दुनिया को 2023 में मंदी का सामना करना पड़ेगा। जो दुनिया के कई देशों को आर्थिक कंगाली की ओर ले जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, लगातार रिकॉर्ड तोड़ महंगाई पर नियंत्रण पाने के लिए दुनियाभर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर सकते हैं। इससे बाजार मांग में कमी आएगी। यह पूरी दुनिया को मंदी की चपेट में धकेलने का काम करेगा।
वहीं इस रिपोर्ट में भारत के लिए राहत भरी बात की गई है। सीईबीआर ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने से कोई नहीं रोक सकता है। उसकी ग्रोथ की रफ्तार पर लगाम लगाना मुश्किल है। साल 2035 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 10 लाख करोड़ डॉलर का बनने का अनुमान है। कहा जा रहा है कि साल 2037 तक भारत विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
गौरतलब है कि 11 अप्रैल 2022 को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि यूक्रेन में युद्ध के कारण तेजी से खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतें विकासशील देशों को आर्थिक संकट के गर्त में ले जा रही हैं। साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी एक और रिपोर्ट जारी कर कहा था कि इस युद्ध से गरीब देशों में भोजन, ईंधन तथा आर्थिक संकट और ज्यादा गहरा रहा है। ये देश पहले से ही महामारी, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक सुधार के लिए धन की कमी से निपटने में संघर्ष कर रहे हैं।
दरअसल करीब आठ महीने से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध ने विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को खतरा पैदा कर दिया है। ये देश पहले ही खाद्यान्न और ईंधन की बढ़ती कीमतों का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र कार्य बल ने चेतावनी देते हुए कहा था कि ‘हम अब एक तूफान का सामना कर रहे हैं जो कई विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को तबाह करने की चेतावनी दे रहा है। दुनियाभर में लगभग 1 .7 अरब लोग अब भोजन, ऊर्जा और आर्थिक बदहाली की जद में आने के करीब हैं। इनमें से एक तिहाई लोग पहले ही गरीबी में जी रहे हैं।’
व्यापार और विकास को बढ़ावा देने वाली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन देशों में लोग स्वस्थ आहार नहीं ले पा रहे हैं। भोजन और ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात आवश्यक है, लेकिन कर्ज का बोझ और सीमित संसाधन अनेक वैश्विक वित्तीय स्थितियों से निपटने में सरकार की क्षमता को सीमित करते हैं।
क्राइसिस नहीं पॉली क्राइसिस जैसा खतरा
मंदी की आहट से पहले ही दुनिया के देशों के हालात ऐसे हैं कि अब इसे संकट नहीं पॉलि क्राइसिस का नाम दिया जा रहा है। पॉलिक्राइसिस को सरल शब्दों में कहें तो ऐसे हालात जब दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह के खतरे या समस्याएं एक साथ पैदा होने लगे और एक साथ मिलकर दुनिया को अपनी चपेट में ले लें, उसे ही पॉलिक्राइसिस नाम दिया जा रहा है। आईएम एफ की रिपोर्ट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह खतरा कुछ देशों में कम तो कई देशों में ज्यादा संकट पैदा करेगा।
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार सब तरफ तरक्की की गति धीमी तो होगी, लेकिन अर्थतंत्र का चक्का पूरी तरह रुकने या फिर मंदी के गर्त में जाने का भय सबसे पहले ब्रिटेन में नजर आ रहा है और उसके बाद इसके यूरोप और अमेरिका तक पहुंचने का खतरा मंडरा रहा है। दुनिया की तरक्की की रफ्तार पर ब्रेक लग सकता है इसका डर विश्व बैंक और मुद्रा कोष जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन, दुनिया भर में अच्छा पैसा लगाने वाले निवेश बैंकर, ब्रोकर और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के अर्थशास्त्री को भी सता रहा है।
मंदी को सरल शब्दों में कहें तो आम आदमी के जेब में पैसों की कमी। जब जेब में पैसे नहीं होंगे, तो खरीदारी कम होगी। यानी मार्केट से डिमांड का लोड घट जाएगा, डिमांड में कमी मतलब प्रोडक्शन रेट में कटौती। जब कंपनियां प्रोडक्शन कम करेंगी तो जाहिर है मैन पावर भी कम लगेगा। ऐसे में लोगों की नौकरियां लाल घेरे में आ जाएंगी और बेरोजगारी बढ़ना भी तय है। फिलहाल जाते-जाते वर्ष 2022 अनेक मुश्किलें खड़ी कर गया है। साथ ही सरकारों के लिए भी और केंद्रीय बैंकों के लिए भी। साथ में आम नागरिकों के लिए मुसीबत खड़ी हुई है वह तो जगजाहिर हैं।