आर्थिक और जनीतिक संकट के बीच श्रीलंकाई संसद ने रनिल विक्रमसिंघे को देश के नए राष्ट्रपति के रूप में चुने गए है।उन्होंने ने मतदान में कुल 134 वोट हासिल की है। जबकि उनके प्रतिद्वंदी दलस अलापेरुमा को कुल 82 वोट मिले है।इस चुनाव में कुल 223 सांसदों ने वोट दिया जिनमें से सिर्फ 219 वोटों को वैध माना गया और चार वोट अमान्य करार दिए गए है।
कुछ दिन पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के देश छोड़कर सिंगापुर चले जाने और वहीं से इस्तीफ़ा भेज देने के बाद रनिल विक्रमसिंघे राष्ट्रपति का कार्यभार संभाल रहे थे। लेकिन अब विक्रमसिंघे वर्ष 2024 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति बने रहेंगे। इससे पहले मई में रनिल विक्रमसिंघे छठी बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने थे।
हालाँकि, राजपक्षे भाइयों के दौर में हुए पिछले संसदीय चुनाव में उनकी यूनाइटेड नेशनल पार्टी की अप्रत्याशित हार हुई थी।इतना ही नहीं उन्हें एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी। मगर श्रीलंकाई संसदीय सदस्यता की राष्ट्रीय सूची के आधार पर उनकी पार्टी को एक सीट आवंटित हुई थी। इसी एक सीट के सहारे, 226 सीटों वाली संसद में विक्रमसिंघे संसदीय राजनीति में सक्रियता दिखाते रहे और उन्हें श्रीलंका में एक अभूतपूर्व संकट के दौर में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया था।इससे पहले महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर मौजूद थे जिनके इस्तीफ़ा देने के बाद विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन अब इस नए जिम्मेदारी के साथ उनके सामने नई चुनौतियां भी है। श्रीलंका के सामने सबसे बड़ी समस्या वहां के भ्रष्ट व्यवस्था और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे वहां के राजनेता रहे हैं। यही वजह है कि अब तक कोई भी देश श्रीलंका को उबारने के लिए खासा प्रयास नहीं कर रहा था। भारत ने भी श्रीलंका की मदद में महत्वपूर्ण उपयोगी सामान ही पहुंचाया है, बहुत अधिक कैश से मदद नहीं की है। भारत, अमेरिका सहित कई विकसित देश अभी तक श्रीलंका को कैश देने से बचते रहे हैं।