तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के एक फरमान के बाद महिलाएं सड़क से सीधे कोर्ट पहुंच गई है। हाल ही तुर्की सरकार के फरमान में कहा गया था कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर इस्तांबुल समझौते को अब स्वीकृति नहीं रहेगी। राष्ट्रपति के इस ऐलान के बाद तुर्की में महिलाएं राष्ट्रपति के खिलाफ सड़कों पर उतर आई थी। लेकिन अब यह मामला कोर्ट तक जा पहुचा। यह समझौता कानूनी (काउंसिल ऑफ यूरोप संधि) रुप से बाध्यकारी है। इसमे घरेलू हिंसा को शामिल किया गया है और अपराधियों को मिल रही कानूनी माफी को खत्म किया गया हैं। इस कानून को 2014 में प्रभावी किया गया था, इसमें यूरोप के 34 देश शामिल हैं।
प्रदर्शन कर रही महिलाएं इस्तांबुल समझौता जीवन बचाता है, हम एक इंसान के फैसले को नहीं मानते के नारे लगाकर अपना विरोध-प्रदर्शन कर रही है। महिला के हकों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं औऱ वकील समेत पूरा विपक्ष अर्दोआन के इस फैसले की जमकर निंदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि तुर्की की संसद को अंतर्राष्ट्रीय समझौते से बाहर आना अवैध है। तुर्की में महिलाओं पर अत्याचार की खबरें हर दिन आती रहती है और आलोचकों का मानना है कि इससे महिलाएं और ज्यादा खतरें में आ गई है। वी विल स्टॉप फेमिसाइड नामक संस्था ने अपने ताजा आकड़ों में बताया कि 2020 में 300 से ज्यादा महिलाओं की हत्या गई हैं। ज्यादातर हत्याओं के पीछे उनके सहयोगियों का हाथ होता है। इतना ही नहीं इन महिलाओं के अलावा 171 महिलाएं सदिग्ध हालात में मृत पाई गई थी।
2012 में जब इस समझौते को संसद ने सर्वसम्मति से पास किया था, तब तुर्की ऐसा करने वाला पहला देश था। अर्दोआन की बेटी वूमेन एंड डेमोक्रेसी एसोसिएशन की उपाध्यक्ष भी है। उन्होंने ने भी इस मुहिम को समर्थन दिया था। खुद राष्ट्रपति तैय्यप ने कहा था कि लैंगिक समानता में तुर्की सबसे आगे है। कहा जा रहा है कि अर्दोआन राजनीतिक तौर पर काफी कमजोर हो रहे है। अपनी राजनीति को दोबारा हराभरा करने के लिए उन्होंने एके और फेलिसिटी पार्टी के कट्टरपंथियों की मांगो के आगे झुक गए है। इस समझौते के विरोधियों की शिकायत है कि यह तलाक को प्रोत्याहन देने के अलावा पारंपरिक परिवारिक मूल्यों को भी कमजोर करता है। कट्टरपंथी की मानना है कि इस समझौते के बाद समलैंगिक विवाह को बढ़ावा मिल सकता है।
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आलोचकों को शांत करने के लिए एकेपी के सदस्यों ने कहा कि वह न्यायिका सुधारों और अंकारा समझौते के माध्यम से घरेलू हिंसा से निपटेंगे। जो हमारी परंपराओं और रीति-रिवाजों से मेल खाते है। सरकार समर्थक और रीति रिवाजों की बात करने वाले कार्यकर्तओं को जवाब देने के लिए महिलाओं ने सोशल मीडिया का सहारा लिया है। वह हर दिन इस मुद्दे से संबधिंत पोस्टें कर रही है, और अपने आंदोलन को और तेज कर रही है।