भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका अबतक के इतिहास में सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है। श्रीलंका के ऊपर इतना विदेशी कर्ज हो गया है कि वो ‘दिवालिया’ होने की कगार पर आ गया है।आर्थिक संकट की वजह से श्रीलंका में महंगाई आसमान छू रही है। अब इस बदहाली को ख़त्म करने के लिए श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत पैकेज की मांग करेगा। इसकी घोषणा राष्ट्रपति राजपक्षने 16 मार्च को की है। इस घोसना से पहले श्रीलंका जनता ने रोज की जरूरत की चीजों में बढ़ रहे महंगाई को लेकर राष्ट्रपति कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया है।

आर्थिक संकट और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद पर राजपक्षे ने कहा है कि, उनकी सरकार आईएमएफ, अन्य एजेंसियों और देशों के साथ ऋण चुकौती को स्थगित करने पर चर्चा कर रही है। उन्होंने सबसे खराब आर्थिक संकट के कारण देश के लोगों से बिजली और ईंधन की खपत को सीमित करने की अपील की है। । वर्ष 1948 में मिली आजादी के बाद श्रीलंका अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। आर्थिक मुसीबतों से नाराज लोग अब सड़कों पर उतर कर सरकार का विरोध कर रहे हैं।

हाल ही में ईंधन की बढ़ती कीमतों ने श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को और बिगाड़ दिया है। राजपक्षे ने राष्ट्र के नाम एक संबोधन में कहा है कि, ‘अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ मेरी चर्चा के बाद, मैंने उनके साथ काम करने का फैसला किया है। राजपक्षे ने यह भी कहा है कि ‘जितना संभव हो सके ईंधन और बिजली के इस्तेमाल को सीमित करके आपने देश श्रीलंका को आप अपना समर्थन दे सकते है। देश को इस समय आपकी जरूरत है।
विरोध प्रदर्शन
वही श्रीलंका के राजनीतिक दलों और नागरिक समाज समूहों ने आर्थिक संकट के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है और देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया है। प्रभावशाली राजपक्षे परिवार के आलोचकों ने राष्ट्रपति के बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे, वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे पर भाई-भतीजावाद और देश के लिए आर्थिक मोर्चे पर अच्छा न करने का आरोप लगाया है। इस बीच 16 मार्च को श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है। मुलाकात के दौरान वित्त मंत्री ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के लिए भारत द्वारा किए समर्थन के लिए मोदी को धन्यवाद दिया है। क्योंकि भारत सरकार ने आपने पड़ोसी देश को आर्थिक मदद करने का फैसला किया है। इसके साथ ही भारत ने एक अधिकारिक बयान में भारत ने कहा है कि भारत श्रीलंका की सहयोग के लिए हमेशा खड़ा रहेगा।
श्रीलंका में भोजन दवा और अन्य जरूरी चीजों की बढ़ती कीमतों पर उनके इस्तीफे की मांग को लेकर मुख्य विपक्षी दल ने 15 मार्च को राष्ट्रपति कार्यालय के पास एक बड़ा प्रदर्शन किया है। बढ़ती महंगाई 2.2 करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका के लिए नई मुसीबत बन चुकी है। श्रीलंका को अपने आयात के लिए भुगतान करना बहुत मुश्किल हो रहा है, इसलिए देश मुद्रास्फीति के रिकॉर्ड स्तर के साथ-साथ अभूतपूर्व भोजन और ईंधन की कमी से जूझ रहा है।
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गौरतलब है कि,श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर काफी हद तक निर्भर है। कोरोना महामारी की वजह से पर्यटन बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। श्रीलंका की जीडीपी में टूरिज्म और उससे जुड़े सेक्टरों की हिस्सेदारी 10 फीसदी के आसपास है। कोरोना के चलते पर्यटकों के न आने से श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ है। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म काउंसिल की रिपोर्ट बताती है कि महामारी के चलते श्रीलंका में 2 लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए हैं।
श्रीलंका की आर्थिक समस्या पर विशेषज्ञों का मानना है कि इस आर्थिक हालात के लिए विदेशी कर्ज खासकर चीन से लिया गया कर्ज भी जिम्मेदार है। चीन का श्रीलंका पर 5 अरब डॉलर से अधिक कर्ज है। पिछले साल उसने देश में वित्तीय संकट से उबरने के लिए चीन से और 1 अरब डॉलर का कर्ज लिया था। अगले 12 महीनों में देश को घरेलू और विदेशी लोन के भुगतान के लिए करीब 7.3 अरब डॉलर की जरूरत है। नवंबर तक देश में विदेशी मुद्रा का भंडार महज 1.6 अरब डॉलर था।