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राष्ट्रपति विक्रमसिंघे का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों की हुई गिरफ्तारी

आर्थिक और राजनीतिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका में पिछले कई महीनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है,जिसकी वजह से पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर सिंगापुर भागना पड़ा था। जिसके बाद अनुभवी नेता रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति के रूप में शपत ली है। इनके पदभार संभालने के ठीक एक दिन बाद श्रीलंकाई पुलिस और सेना ने सयुक्त रूप से राजधानी में छापेमारी कर सरकार का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया है।

इनको गिरफ्तार करते ही कोलोंबो में राष्ट्रपति सचिवालय की कमान अब पूरी तरह से श्रीलंका सुरक्षा बालो के हाथ में आ गई है। श्रीलंकाई सैनिकों ने राष्ट्रपति भवन से सटे प्रदर्शन स्थल पर लगाए गए तंबुओं को भी हटा कर दिया है।लगभग 105 दिनों से प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। देश के नए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे के सहयोगी हैं। इतना ही नहीं वें 6 वार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। इसलिए प्रदर्शनकारियों का एक वर्ग उन्हें उसी राजनीतिक प्रतिष्ठान के हिस्से के रूप में देखता है जो श्रीलंकाई आर्थिक संकट केलिए जिम्मेदार है।

कैंप में क्या हुआ


श्रीलंकाई सरकार विरोधी कैंपों पर सैनिकों की कार्रवाई के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या में सेना को प्रदर्शनकारियों के तंबू की ओर मार्च करते देखा जा सकता है। राष्ट्रपति सचिवालय में डेरा डाले हुए प्रदर्शनकारियों पर डंडों और राइफलों से लैस सेना और पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स ने अचानक हमला बोल कर उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया है। इसके बाद कई प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि प्रशसन उन्हें हटने के लिए पहले से कोई चेतावनी नहीं दी गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक,मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के दक्षिण एशिया कार्यालय ने अपने एक ट्वीट में कहा है कि ‘श्रीलंकाई प्रदर्शनकारी की जगह घेरने के बाद, पुलिस और सेना ने आज उन पर धावा बोल दिया और उनमें से कई को गिरफ्तार कर लिया है।’

राष्ट्रपति भवन के प्रवेश द्वार को अवरुद्ध करने के लिए लगाए गए बैरिकेड्स को भी श्रीलंकाई सैनिकों ने हटा दिया है। जिसे प्रदर्शनकारियों ने इस महीने की शुरुआत में
भवन पर आंशिक रूप से कब्जा करने के बाद लगाया था। विरोध प्रदर्शन के आयोजकों ने कहा कि ‘हमले में कम से कम 50 प्रदर्शनकारी घायल हो गए, जिनमें कुछ पत्रकार भी शामिल हैं जिन्हें सुरक्षा बलों ने मारा था। श्रीलंकाई सुरक्षा बलों का धावा ऐसे समय में हुआ जब प्रदर्शनकारियों ने पहले ही इलाके को खाली करने की घोषणा कर दी थी, लेकिन यह कार्यवाई कुछ ही घंटे बाद हुई। प्रदर्शनकारियों ने नई कैबिनेट के शपथ ग्रहण के बाद ही इमारत को अधिकारियों को सौंपने की अपनी योजना की घोषणा की थी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक,श्रीलंकाई पुलिस के प्रवक्ता का कहना है कि इस घटना के सिलसिले में 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और उनके पास स्थल पर कब्जा करने का कोई कानूनी औचित्य नहीं है। विक्रमसिंघे को नए राष्ट्रपति के रूप में चुना गया है, लेकिन यह बड़ी संख्या में श्रीलंकाई प्रदर्शनकारियों के बीच एक अलोकप्रिय नेता के रूप में है। नए राष्ट्रपति ने 21 जुलाई को पदभार संभालने के तुरंत बाद एक अधिसूचना जारी कर देश के सशस्त्र बलों के सदस्यों को कई जिलों में कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी संभालने का आदेश दिया था।

लेकिन देश के सभी पक्ष और विपक्षी सांसदों ने इस उम्मीद में विक्रमसिंघे का समर्थन किया था कि उनके पास शासन का एक लंबा अनुभव है जो श्रीलंका को मौजूदा आर्थिक और राजनीतिक संकट से बाहर निकालने में मदद कर सकता है। पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफा देने के बाद नए राष्ट्रपति के लिए चुनाव जरूरी हो गए थे। हालांकि कई लोगों का मानना है कि राजपक्षे के साथ विक्रमसिंघे की निकटता और देश की राजनीति में लंबे समय से उनकी प्रमुखता उन समस्याओं का हिस्सा हैं, जिन्हें तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है। इस बीच आज यानी 22 जुलाई को देश दिनेश गुणवर्धने के रूप नया प्रधानमंत्री भी मिल गया है।

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