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श्रीलंका में फिर बनी चीन समर्थक सरकार 

कोरोना महामारी  के बीच श्रीलंका में हाल में संपन्न  हुए सोलहवें आम चुनावों में महिंदा राजपक्षे  की श्रीलंका पीपुल्स पार्टी को  एकतरफा बड़ी जीत मिली है।उनकी इस जीत को लेकर कहा जा रहा है कि श्रीलंका में एक बार फिर चीन के प्रति झुकाव रखने वाली सरकार की वापसी हुई है।

देश में सम्पन हुए आम चुनावों में करीब 71 प्रतिशत वोट पड़े थे, जिसमें से चुनाव आयोग की ओर से जारी परिणामों के अनुसार 225 सदस्यीय संसद में एसएलपीपी ने अकेले 145 सीटें जीती और सहयोगी दलों के साथ उसने कुल 150 सीटों पर जीत दर्ज  कर की है। इस तरह पार्टी को दो-तिहाई बहुमत मिला । पार्टी को 68 लाख यानी 59.9 प्रतिशत वोट हासिल हुए हैं। इस जोरदार जीत को महिंदा राजपक्षे की देश की राजनीति में वापसी के तौर पर भी देखा जा रहा है।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ऐसे विदेशी नेता हैं, जिन्होंने  अपने श्रीलंकाई समकक्ष महिंदा राजपक्षे को उनकी शानदार जीत के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने तथा विशेष संबंधों को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए काम करेंगे। राजपक्षे ने इसकी जानकारी देते हुए ट्वीट किया, ‘फोन पर बधाई देने का आपका शुक्रिया।

श्रीलंका के लोगों के समर्थन के साथ, दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सहयोग को और आगे बढ़ाने के लिए आपके साथ मिलकर काम करने को उत्साहित हूं। श्रीलंका और भारत अच्छे मित्र और सहयोगी हैं।’

राजपक्षे की इस जीत पर अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों  का मानना है कि श्रीलंका भारत और चीन का अपने हित के लिए फायदा उठाता रहा है। चीन दस साल में एक बार फिर से श्रीलंका में मजबूत हो गया है। चीन की भारत को घेरने की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्‍स की नीति एकबार फिर से मजबूत हो गई है। साथ ही वह अब मलक्‍का से ज‍िबूती के बीच में न्‍यू मेरिटाइम रूट नीति को मजबूत करेगा। यह एक तरह से चीन की भारत के खिलाफ दोहरी दीवार बन गई है।’ यह स्तिथि भारत के लिए नहीं है।

हालांकि श्रीलंका अपने कुछ प्रोजेक्ट  को चीन को देता है और कुछ भारत को देता है। महिंदा राजपक्षे चाहेंगे कि भारत के साथ भी  अच्छे  संबंध बनाकर रखे जाएं ताकि चीन का ज्यादा असर न पड़े। राजपक्षे की नीति यह है कि चीन के साथ भी अच्छे  संबंध रखते हुए भारत के साथ रिश्ते  न बिगाड़ो। भारत बड़ा पड़ोसी देश है और आने वाले समय में भारत से दुश्मनी  उसको महंगी पड़ सकती है। यही नहीं श्रीलंका के सिंह और तमिल समुदाय के लोग नहीं चाहते हैं कि भारत के साथ उनके रिश्‍ते खराब हों। भारत राजपक्षे से चाहेगा कि वह चीन को श्रीलंका में सैन्य  गतिविधियां चलाने की अनुमति न दें।’

उधर, विदेशी मामलों के जानकार मानते हैं कि राजपक्षे अपने पिछले कार्यकाल में चीन समर्थक रहे हैं। उन्होंने  श्रीलंका को चीन के उपन‍िवेश के रूप में बदल दिया था। राजपक्षे के विचार और नीतियों में कोई बदलाव नहीं आया है। वह आगे भी इसे जारी रखना चाहेंगे। ऐसे में भारत को अपनी ठोस रणनीति रखनी होगी।

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