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नेपाल में प्रधानमंत्री ओली के खिलाफ फिर सक्रिय हुए प्रचंड 

नेपाल में पिछले कई दिनों से जारी राजनीतिक संकट निरंतर गहराता  ही जा रहा है। हालत यह है कि  सत्तारूढ़  कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) की स्टैंडिंग कमेटी की मीटिंग को 9वीं बार स्थगित करना पड़ा है । प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की गैरमौजूदगी में पार्टी सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने कमेटी के मेंबर्स के साथ पीएम आवास पर ही मीटिंग की। इसके साथ ही नेपाल का सियासी संकट और गहरा हो गया है।

ओली और प्रचंड के बीच मतभेदों को दूर करने के लिए स्टैंडिंग कमेटी के 45 मेंबर्स की मीटिंग  पीएम आवास पर होनी थी,लेकिन ओली के वहां मौजूद न होने की वजह से मीटिंग को फिर टालना पड़ा। पार्टी के एक नेता  के मुताबिक  प्रधानमंत्री ने प्रचंड की सलाह के बिना ही मीटिंग टाल दी।

हालांकि पार्टी के एक नेता ने बताया कि ओली के करीबी मेंबर इस मीटिंग में शामिल नहीं हुए। लेकिन, प्रचंड ने  मीटिंग  कर डाली । जिसमें 25 मेंबर्स ने हिस्सा लिया। मीटिंग करीब 1 घंटे तक चली।

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स्टैंडिंग कमेटी के मेंबर गणेश शाह ने बताया कि मीटिंग को अनिश्चितकाल काल के लिए टाल दिया गया है। दोनों नेताओं को अभी और समय की जरूरत है। वहीं प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार सूर्य थापा ने बताया कि दोनों नेता आपस में चर्चा करने के बाद मीटिंग की अगली तारीख तय करेंगे।

कुछ दिनों पहले ओली और प्रचंड के बीच समझौते की खबरें भी आईं थीं। दावा किया गया था कि दोनों नेता इस साल के अंत में पार्टी का सम्मेलन बुलाने की शर्त पर राजी हुए थे। समझौते का मतलब साफ था कि प्रचंड अब प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे की अपनी मांग को छोड़ देंगे। प्रचंड की मांग की वजह से ही एनसीपी में आंतरिक गतिरोध के चलते टूट का खतरा मंडरा रहा था।

इससे पहले नेपाल  के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कुर्सी पर आया संकट टल चुका था।  पूर्व प्रधानमंत्री और ओली विरोधी नेपा पुष्प कमल दहल उर्फ़ प्रचंड  के तेवर तब  नरम पड़ गए थे।   प्रचंड के तेवरों में आई यह नरमी चीन के प्रयासों का ही नतीजा था।  ओली चीन  के समर्थक हैं और उसकी विस्तारवादी आदतों को आंखमूंद कर स्वीकार कर रहे हैं, लिहाजा उनकी कुर्सी बचाने के लिए चीन ने दिन -रात  एक कर दी थी।

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तब माना जा रहा था कि  था  कि नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी में विभाजन का संकट अब टल गया है, यानी ओली की कुर्सी अब काफी हद तक सुरक्षित है। क्योंकि  ओली के खिलाफ विरोध शुरू होते ही चीन सक्रिय हो गया था। नेपाल में चीन की राजदूत होउ यानकी (Hou Yanqi) ने कई बार ओली और प्रचंड से मुकालात की। उन्होंने यह विवाद सुलझाने के लिए कूटनीतिक आचार संहिता को भी ताक पर रख दिया।

नेपाल में चीन के बढ़ते दखल को लेकर लोगों में गुस्सा है। इसके विरोध में लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन भी किया है। नेपाली अखबारों ने चीनी राजदूत की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं, लेकिन इसके बावजूद होउ यानकी ओली को बचाने के अपने मिशन में कामयाब हो गई।

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चीनी राजदूत का नेपाल की राजनीतिक बैठकों में शामिल होने पर मीडिया ने भी सवाल उठाए थे।  उसकी तरफ से चीनी दूतावास के प्रवक्ता से पूछा गया था कि होउ यानकी का इस तरह से बैठकों में शामिल होने का क्या उद्देश्य है। इसके जवाब में प्रवक्ता ने कहा था कि ‘हम कम्युनिस्ट पार्टी को संकट में नहीं देखना चाहते हैं और चाहते हैं कि पार्टी के नेताओं के बीच चल रहा विवाद खत्म हो जाए। यह पहली बार नहीं है जब यानकी ने नेपाल की घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप किया है। मई में उन्होंने कई बैठकें की थीं जिनका उद्देश्य सत्तारूढ़ पार्टी को विभाजन से बचाना था। चीन के बार फिर से ओली को बचाने के अपने अभियान में सफल हो गया है, लेकिन यह सफलता कब तक कायम रहेगी यह देखने वाली बात होगी। क्योंकि एक रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रचंड कुछ मुद्दों को लेकर अभी भी नाराज हैं, लिहाजा संभव है कि आने वाले दिनों में यह विवाद फिर से गहरा जाए ।

ऐसी रिपोर्ट्स के सामने आने के बाद दहल को काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी जिसमें कहा गया था कि उन्होंने PM ओली के साथ गुप्त डील कर ली है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि पार्टी के  नेता इससे नाराज हैं और वह ओली का इस्तीफ़ा चाहते हैं।

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