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बढ़ती कीमतों से खतरे में गरीब देश

पिछले दो सालों में कोरोना महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर ऐसा कहर ढाया कि अमीर देशों में गरीबी बढ़ गई और गरीब देशों के लिए जीना दुश्वार हो गया है। महामारी थमी और अर्थव्यवस्थाओं ने फिर से पटरी पर दौड़ना शुरू किया तो यूक्रेन -रूस के युद्ध ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि इसका असर भारत ही नहीं दुनियाभर के मुल्कों में देखने को मिल रहा है। जो मौजूदा समय में विश्व की सबसे बड़ी समस्या हो गई है। दरअसल रूस-यूक्रेन युद्ध से सप्लाई चेन पर असर पड़ा है, तेल की कीमतों में इजाफे के चलते हर चीज की कीमत बढ़ गई है। बढ़ती महंगाई को लेकर लगभग सभी देशों की सरकारों को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति में गरीब देश जहां पहले से कोरोना की मार झेल रहे हैं वहीं अब उन्हें रूस – यूक्रेन युद्ध के चलते दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

गौरतलब है कि 11 अप्रैल, को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन में युद्ध के कारण तेजी से खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतें विकासशील देशों को आर्थिक कंगाली की ओर ले जा रही हैं। साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी एक रिपोर्ट जारी कर कहा कि इस युद्ध से गरीब देशों में भोजन, ईंधन तथा आर्थिक संकट और ज्यादा गहरा कर रहा है। ये देश पहले से ही महामारी, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक सुधार के लिए धन की कमी से निपटने में संघर्ष कर रहे हैं।

दरअसल करीब डेढ़ महीने से जारी रूस – यूक्रेन युद्ध ने विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था के खतरा पैदा कर दिया है। ये देश पहले ही खाद्यान्न और ईंधन की बढ़ती कीमतों का सामना कर रहे हैं ।

संयुक्त राष्ट्र कार्य बल ने चेतावनी देते हुए कहा है कि ‘हम अब एक तूफान का सामना कर रहे हैं जो कई विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को तबाह करने की चेतावनी देता है। दुनियाभर में लगभग 1.7 अरब लोग अब भोजन, ऊर्जा और वित्त प्रणालियों में संकट की जद में आने के करीब हैं। इनमें से एक तिहाई लोग पहले ही गरीबी में जी रहे हैं। ’

व्यापार और विकास को बढ़ावा देने वाली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की महासचिव रेबेका ग्रिनस्पैन ने कहा कि ये लोग 107 देशों में रहते हैं, जिनके किसी न किसी संकट की जद में आने का काफी जोखिम है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, इन देशों में लोग स्वस्थ आहार नहीं ले पा रहे हैं, भोजन और ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात आवश्यक है, लेकिन कर्ज का बोझ और सीमित संसाधन अनेक वैश्विक वित्तीय स्थितियों से निपटने की सरकार की क्षमता को सीमित करते हैं।

विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते यूक्रेन की अर्थव्यवस्था में इस साल 45.1 प्रतिशत की कमी होने की उम्मीद है और रूस की अर्थव्यवस्था के 11.2 प्रतिशत तक कम होने का अनुमान है।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने इस क्षेत्र के लिए नए जारी विश्व बैंक के आर्थिक अपडेट का हवाला देते हुए बताया कि रूस पर प्रतिबंध दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे यूरोप और मध्य एशिया क्षेत्र के उभरते बाजारों और विकासशील देशों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

भुखमरी के कगार पर हैती

दुनिया में हैती सबसे गरीब देश है। इस देश में गरीबी से लोगों की ऐसी स्थिति हो गई है कि वहां कीचड़ में नमक मिलाकर रोटियां बनाई जाती हैं| यहाँ लोग मिट्टी में नमक और पानी मिलाकर रोटी की लोई तैयार करते हैं, जिसके बाद वह धूप में रोटी का आकार देकर सूखने के लिए रख देते हैं, जिसके बाद यहां के लोग और बच्चे नमक में मिली रोटी खाते हैं| हैती की कुल आबादी लगभग एक करोड़ है, जिसमें 30 लाख लोगों तक खाना नहीं पहुंच पाता है| इस देश की बड़ी समस्या भुखमरी है, यहां लोग कुपोषित के शिकार हैं, भुखमरी के कारण ही यहां के लोग कीचड़ में नमक मिलाकर रोटियां खाते हैं |

पाकिस्तान में बेलगाम हुई महंगाई

आइये आपको विश्व भर में महंगाई के हालात से रूबरू कराने के क्रम में सबसे पहले पड़ोसी देश पाकिस्तान की बात करें तो वहां इमरान खान की सरकार पर संकट ही इसलिए आया क्योंकि पाकिस्तान में महंगाई बेलगाम हो गयी है। पाकिस्तान में महंगाई ने अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं जिसके चलते इमरान खान को प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी है ।

यही हाल श्रीलंका के भी हैं। अभूतपूर्व आर्थिक संकट के दौरान श्रीलंका में महंगाई बेलगाम हो गई है। हालात ये हैं कि लोग सड़को पर प्रदर्शन कर रहे हैं। बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल, मालदीव में भी महंगाई चरम पर है।

दक्षिण एशिया और पश्चिमी देशों की बात करें तो अमेरिका में महंगाई ने 40 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। अमेरिकियों को वर्ष 1982 के बाद से सबसे अधिक महंगाई का सामना करना पड़ रहा है।इसके चलते देश में मंदी का खतरा मंडरा रहा है जो सरकार की चिंता बढ़ा रहा है । वहीं ब्रिटेन भी बेतहाशा महंगाई देखने को मिल रही है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने अनुमान जताया है कि सालाना महंगाई की दर इस साल 8.0 फीसदी को पार कर सकती है और अप्रैल में यह 7.25 फीसदी पर रह सकती है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने एक बयान में माना है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने महंगाई के मोर्चे पर दिक्कत और बढ़ा दी है।

जर्मनी में भी तीन दशकों में महंगाई सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है जिससे खाने-पीने की वस्तुओं समेत बुनियादी चीजों और ईंधन के दामों में बड़ा उछाल आने की वजह से लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है। जर्मनी में बैंक ब्याज दरें घटने से बचत पर जोर देने वाले लोग भी निराश दिख रहे हैं।

ऑस्ट्रेलिया में महंगाई से इतना बुरा हाल है कि वहां की सरकार के खिलाफ लोगों की नाराजगी बढ़ती जा रही है। आस्ट्रेलिया में मई में होने वाले चुनावों को देखते हुए वहां की सरकार ने महंगाई को नियंत्रित करने के लिए कुछ उपाय किये हैं जिसके तहत कुछ करों को कम किया गया है।

तुर्की में मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 20 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। तुर्की में ऊर्जा की कीमतें लगातार चढ़ रही हैं। तुर्की सांख्यिकी संस्थान के अनुसार, उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें पिछले महीने 4.81% बढ़ी हैं। महंगाई को काबू में करने के लिए तुर्की के राष्ट्रपति ने करों में कटौती का ऐलान किया है।

स्पेन में महंगाई लगभग चार दशकों में सबसे तेज दर से बढ़ी है और उम्मीदों से आगे निकल गई है जिससे जनता बेहाल है। चीन में भी महंगाई बढ़ रही है और कोरोना के चलते कुछ शहरों में लगे लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है।

ग्लोबल महंगाई के जिम्मेदार देश रूस का खुद भी महंगाई से बुरा हाल हो गया है। रूस में वार्षिक मुद्रास्फीति 25 मार्च तक बढ़कर 15.66% हो गई, जो सितंबर 2015 के बाद से उच्चतम है। रूस में मुद्रास्फीति पिछले कुछ हफ्तों में तेजी से बढ़ी है क्योंकि रूबल की गिरावट अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। रूस में खाद्य उत्पादों से लेकर कारों तक की मांग में तेज वृद्धि है क्योंकि लोगों को लगता है कि आने वाले समय में इनकी कीमत और बढ़ जायेगी।

जापान की बात करें तो वहां महंगाई मार्च महीने में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई है। यूक्रेन संकट के चलते जापान में ऊर्जा और खाद्य उत्पादों की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं।

कनाडा में भी बढ़ती महंगाई के बीच माना जा रहा है कि आने वाले केंद्रीय बजट में सरकार शायद कुछ राहत उपायों की घोषणा कर सकती है। वहीं ईरान में महंगाई ने लगभग 60 सालों का, न्यूजीलैंड में 30 सालों और सिंगापुर में लगभग दस सालों का रिकॉर्ड तोड़ा है तो इजराइल, इटली, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, आयरलैंड, स्पेन, चेक गणराज्य, एस्टोनिया, लिथुआनिया, बेल्जियम, आस्ट्रिया आदि देशों की जनता भी महंगाई से त्राहिमाम कर रही है। यही नहीं खाड़ी देशों में भी महंगाई का असर साफ देखने को मिल रहा है।

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