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नेपाल में राजनीतिक संकट

नेपाल से दोस्ती का नाटक करते हुए चीन ने न सिर्फ उसके क्षेत्र हड़प लिये, बल्कि सियासी संकट को और गहरा दिया । अपनी विस्तारवादी नीति से पड़ोसी मुल्कों पर खंजर घोंपने के लिए कुख्यात चीन ने हाल ही में बने अपने ‘दोस्त’ नेपाल को भी नहीं छोड़ा। दोस्ती का नाटक करते हुए पहले तो चीन नेपाल के करीब आया और अब उसकी घरेलू राजनीति में खुलेआम हस्तक्षेप कर रहा है। यही वजह है कि सुलह की कोशिशों के बावजूद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के बीच लगातार हुई बैठकें बेनतीजा ही रही हैं।

इससे पड़ोसी देश नेपाल एक बार फिर बड़े राजनीतिक संकट से जूझ रहा है। सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में बंटवारा तय माना जा रहा है। पुष्प कमल दहल की ओर से पार्टी बैठक  को लेकर दबाव डाले जाने पर प्रधानमंत्री ओली ने साफ कह दिया है कि इन बैठकों की आवश्यकता नहीं है और यदि उनके खिलाफ फैसला लिया जाता है तो वह ‘बड़ा फैसला’ ले सकते हैं।

दरअसल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद से ही इसमें तीन खेमे बने हुए हैं। इनमें से दो मिलकर तीसरे को अल्पमत में डाल सकते हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और कम्युनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड के बीच चल रही  सुलह की कोशिशें नाकाम होते देख ऐसा माना जा रहा है कि सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में बंटवारा  तय है। कहा जा रहा है कि इस समय दहल और पार्टी के वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल साथ हैं। हालांकि, ओली ने झुकने से इनकार कर दिया है और पार्टी में बंटवारे को तैयार हैं।
ओली की ओर से ‘बड़े ऐक्शन’ की धमकी को लेकर नेपाल में अटकलों का दौर चल पड़ा है। राजनीतिक गलियारों से लेकर से लेकर आम लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि ओली आखिर किस ‘बड़े फैसले’ की बात कर रहे हैं। संकट से निपटने के लिए उनका यह बड़ा दांव क्या होगा?

दहल के करीबी और स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य पंफा भूसल के मुताबिक ओली के साथ बैठक के दौरान दहल ने इस बात पर भी चिंता जाहिर की थी कि क्या मौजूदा राजनीतिक सिस्टम ध्वस्त हो जाएगा। उन्होंने आगे कहा, दहल इस बात को लेकर चिंतित थे कि चीजें सही दिशा में नहीं बढ़ रही हैं। इस सबके बीच अब एक बार फिर नेपाल की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी उस मोड़ पर पहुंच गई है, जहां कुछ महीने पहले खड़ी थी। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी टूट की कगार पर पहुंच गई है। दहल के मुताबिक ओली ने रास्ते अलग करने का फैसला कर लिया है। माना जा रहा है कि पार्टी के बंटवारे की सूरत में ओली की कुर्सी चली जाएगी।

नेपाल के बड़े अखबार काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुष्प कमल दहल खेमे के नेताओं का दावा है कि केपी शर्मा ओली ने रास्ते अलग करने का ऐलान लगभग कर दिया है। 11 दिनों बाद बीते 31 अक्टूबर को ओली के साथ बैठक के बाद दहल ने एक नवंबर  को अपने आवास खुमाल्टर में सेक्रिटेरीअट के 9 में से 5 सदस्यों के साथ बैठक की। पार्टी के प्रवक्ता और सेक्रिटेरीअट सदस्य काजी श्रेष्ठ ने कहा, श्श्दहल ने सदस्यों को बताया कि ओली ने उनसे कहा है कि वह सेक्रिटेरीअट की बैठक नहीं बुलाएंगे और पार्टी कमिटी के फैसलों में नहीं बंधेंगे। दहल के मुताबिक ओली ने कहा है कि यदि समस्याएं हैं तो बेहतर है कि रास्ते अलग कर लिए जाएं।

श्रेष्ठ के अलावा गृह मंत्री राम बहादुर थापा, पार्टी वाइस चेयर बामदेव गौतम और वरिष्ठ नेता झाला नाथ खनल और माधव कुमार नेपाल खुमाल्टर बैठक में मौजूद थे। सचिवालय के दूसरे सदस्य ओली, ईश्वर पोखरियाल और विष्णु पौडेल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, सत्ताधारी पार्टी के कई नेता कहते हैं कि आज पार्टी जिस मोड़ पर खड़ी है वह एक दिन होना ही था, क्योंकि दो पार्टियों के मिलन के बाद से ही समस्याएं पैदा होने लगी थीं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म ओली के सीपीएन-यूएमएल और दहल की पार्टी सीपीएन (माओवादी) के विलय से हुआ था। चूंकि, दोनों पार्टियों की विचारधारा अलग थी, इसलिए शुरुआत से ही यह आशंका थी कि यह अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकेगा।

विलय के करीब डेढ़ साल बाद पार्टी के मतभेद खुलकर सामने आ गए। बीते 11 सितंबर को युद्ध विराम पर पहुंचने से पहले दहल और उनके समर्थक नेपाल, खनल और गौतम ने ओली को लगभग इस्तीफे के लिए घेर लिया था। स्टैंडिंग कमिटी के 31 सदस्यों ने प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष के पद से उनका इस्तीफा मांग लिया था। इसके बाद चीन के दखल से दोनों नेता बातचीत की मेज पर आ गए थे। चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी के संकट को दूर करने के लिए अपनी राजदूत को यहां की घरेलू राजनीति में खुलेआम हस्तक्षेप करने को कहा था।
हालांकि, हाल ही में चीजें फिर तेजी से बदली और दोनों नेताओं के बीच एक बार फिर मतभेद उभर गए। ओली की ओर से कुछ राजदूतों और मंत्रियों की नियुक्ति के बाद विवाद बढ़ गया। दहल खेमा यह भी मानता है कि कर्नाली प्रांत के मुख्यमंत्री महेंद्र बहादुर शाही के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के पीछे भी ओली का हाथ है।

सेक्रिटेरीअट के एक सदस्य ने कहा, ओली ने कहा कि वह गंभीर ऐक्शन लेंगे यदि दहल बैठक करते हैं और कोई फैसला लेते हैं। बेहतर होगा सर्वसम्मति से रास्ते अलग कर लिए जाएं। स्टैंडिंग कमेटी के एक सदस्य के मुताबिक, दहल ने नेताओं से कहा है कि ओली को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना चाहिए। चूंकि, अभी संसद का सत्र नहीं चल रहा है, विशेष सत्र बुलाने के लिए एक चैथाई सदस्यों को राष्ट्रपति से इसकी मांग करनी होगी।

पार्टी के एक नेता के मुताबिक दहल ने अपने करीबी स्टैंडिंग कमिटी के सदस्यों को जल्द काठमांडू पहुंचने को कहा है। 44 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमिटी में ओली अल्पमत में हैं। उनके साथ करीब 14 सदस्य हैं, जबकि दहल के पास 17 और नेपाल के साथ 13 सदस्य हैं।

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