हाल ही में संपन्न हुई जी-7 समूह की बैठक में चीन, रूस और उत्तर कोरिया की बढ़ती आक्रामकता और तेल, गैस के दाम, ग्लोबल वार्मिंग जैसे कई मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई तो वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह तीन देशों का दौरा कूटनीतिक दृष्टि से कई मायनों में अहम माना जा रहा है
दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्रों में से सात देशों के नेताओं ने इस सप्ताह के अंत में द्वितीय विश्व युद्ध में परमाणु हमले का शिकार हुए हिरोशिमा में बैठक की। इस बैठक को जी-7 समिट के नाम से जाना जाता है। यूक्रेन युद्ध के दौरान बढ़ते परमाणु हमले के खतरे के बीच हिरोशिमा में हुई बैठक दुनिया के लिए होने वाली तबाही का एक प्रतीकात्मक संकेत रही। इस बैठक में चीन, रूस और उत्तर कोरिया की बढ़ती आक्रामकता, तेल और गैस के दाम, ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह विदेश दौरा कई मायनों में अहम माना जा सकता है। हिरोशिमा में उन्होंने जी-7 की बैठक में हिस्सा लिया। उनसे गले मिलते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की तस्वीर चर्चा में रही तो पापुआ न्यू गिनी में उनका स्वागत करते हुए वहां के प्रधानमंत्री ने भारतीय संस्कृति का पालन किया और पीएम मोदी के पांव छुएं। दो देशों ने उन्हें अपना सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया। इस दौरान ऑस्ट्रेलिया में उन्होंने प्रवासी भारतीयों को संबोधित किया। जी-7 के लिए हिरोशिमा को क्यों चुना पूरी दुनिया इस समय कई गंभीर सुरक्षा संकटों का सामना कर रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध और उत्तर कोरिया की हठधर्मिता के कारण परमाणु हमले का खतरा बना हुआ है। ऐसे में जी-7 की बैठक एक ऐसे शहर में हुई, जो परमाणु हमले का शिकार हो चुका है। बैठक वाली जगह से हिरोशिमा का शांति स्मारक संग्रहालय ज्यादा दूर नहीं है। यहां उस समय की दर्जनभर घड़ियां आज भी प्रदशि्र्ात हैं, जिनमें से कई अब भी सुबह 8 .16 बजे पर रुकी हुई हैं।
गौरतलब है कि अमेरिका ने 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर सुबर 8 .16 मिनट पर परमाणु हमला किया था। शुरुआती विस्फोट में 70 हजार लोग काल के गाल में समां गए और दसियों हजार अन्य लोगों को धीरे-धीरे जल कर मरने के लिए छोड़ दिया गया था।
क्या है जी-7 शिखर सम्मेलन
जी-7 सात प्रमुख औद्योगिक राष्ट्रों का एक अनौपचारिक समूह है। इसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल है। इसकी अध्यक्षता सात सदस्य देशों के बीच बारी-बारी से होती है। इस साल जी-7 की अध्यक्षता जापान के पास थी। इसमें यूरोपीय संघ के दो प्रतिनिधि भी शामिल हैं। पहले से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार, जी-7 की बैठक में कुछ गैर सदस्य राष्ट्रों के प्रमुख और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नेता भी भाग लेते हैं। इस दौरान इन देशों के नेता आर्थिक नीति, सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा और लैंगिक समानता सहित कई मुद्दों पर चर्चा करते हैं।
बैठक में कौन से बाहरी देश रहे मौजूद
इस वर्ष जी-7 की बैठक में ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कोमोरोस, कुक आइलैंड्स, भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम के नेताओं को आमंत्रित किया गया था। यह निमंत्रण जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के ग्लोबल साउथ और अमेरिका के विकासशील देशों तक पहुंचने की रणनीति के तहत थे। इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व व्यापार संगठन के नेताओं को भी आमंत्रित किया गया था।
पापुआ न्यू गिनी का पीएम मोदी के पैर छूना यह दृश्य अपने आप में किसी देश के लिए गर्व की बात है। एक-दूसरे देश के राष्ट्राध्यक्ष ने भारतीय प्रधानमंत्री का पैर छूकर आशीर्वाद लिया। यही नहीं, देश के सर्वोच्च सम्मान से भी सम्मानित किया। इस चंद सेकेंड के वीडियो फुटेज को पूरी दुनिया ने देखा। इससे दुनिया में भारतीय संस्कृति का अंदाजा लगाया जा सकता है। यही नहीं, पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारेप ने फोरम फॉर इंडिया पैसिफिक आईलैंड को-ऑपरेशन की बैठक में हिंद प्रशांत क्षेत्र में पड़ने वाले कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सामने साफ कहा कि भारत ही हमारा लीडर है। मारेप ने कहा ‘भारत ग्लोबल साउथ यानी विकासशील और गरीब देशों का लीडर है। हम सभी विकसित देशों के पावर प्ले के शिकार हैं’। मतलब साफ है कि भारत अब विकासशील और गरीब देशों का प्रतिनिधत्व करने लगा है। यह 75 सालों में बड़ी और सबसे ताकतवर उपलब्धि है, जब दुनिया के कई देश उसे अपना लीडर बता रहे हैं।
प्रशांत क्षेत्र में कम होगा चीन का दबाव
पश्चिमी देशों से एशिया को प्रशांत क्षेत्र जोड़ता है। यहां 50 से ज्यादा छोटे देश और आईलैंड हैं। यहां चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ने लगा है। चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के तहत पापुआ न्यू गिनी के करीब सोलोमन द्वीप समूह के साथ एक सुरक्षा समझौता किया था, जिसके बाद चीन ने राजधानी होनियारा में बंदरगाह बनाने का एक अनुबंध हासिल किया। चीन के इस कदम को देखते हुए पापुआ न्यू गिनी बीजिंग की ओर झुकाव दिख रहा है, जो क्वाड समूह के देश भारत,
अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के लिए एक बहुत बड़ी चिंता है। पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे ने साल 2022 में बैंकॉक में चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग से मुलाकात की थी, जिसके बाद बीजिंग ने कहा था कि चीन और पापुआ न्यू गिनी दोनों एक अच्छे दोस्त हैं। इस दौरान चीन ने मारापे को चीन की यात्रा के लिए निमंत्रण दिया था। भारतीय प्रधानमंत्री पहली बार फोरम फॉर इंडिया पैसिफिक आईलैंड को-ऑपरेशन में शामिल हुए। इसके जरिए उन्होंने हिंद क्षेत्र में चीन के बढ़ते कदम को रोकने की दिशा में पहला बड़ा कदम बढ़ाया। जिस तरह से प्रशांत क्षेत्र में बसे देश और आईलैंड्स ने पीएम मोदी का स्वागत किया वह भी बड़ा सियासी संदेश दे रहा है। रिपब्लिक ऑफ पलाऊ और फिजी ने भी पीएम नरेंद्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च अवॉर्ड दिया है। पलाऊ ने पीएम को इबाकल अवॉर्ड तो फिजी ने ‘कम्पेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ द फिजी’ का सम्मान दिया है। ये दोनों देश भी प्रशांत क्षेत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ऐसे में भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि है।
विकासशील और गरीब देशों को साथ लाने की कोशिश
फोरम फॉर इंडिया पैसिफिक आईलैंड को-ऑपरेशन में पीएम मोदी ने नाम लिए बिना विकसित देशों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘कोरोना का सबसे ज्यादा असर ग्लोबल साउथ यानी दुनिया के विकासशील और गरीब देशों पर पड़ा है’। क्लाइमेट चेंज, प्राकृतिक आपदाएं, भुखमरी और गरीबी कई चुनौतियां पहले से ही थीं अब नई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘इस दौरान जिन पर भरोसा किया वो मुसीबत के समय हमारे साथ नहीं खड़े थे, जबकि भारत मुश्किल वक्त में प्रशांत द्वीप के देशों के साथ खड़ा रहा। कोरोना वैक्सीन के जरिए भारत ने सभी साथी दोस्तों की मदद की। भारत के लिए पैसिफिक के द्वीप कोई छोटे आईलैंड देश नहीं, बल्कि बड़े समुद्री देश हैं।
पीएम मोदी का यह भाषण उन तमाम विकासशील और गरीब देशों के पक्ष में था, जो किसी न किसी तरह से विकसित देशों की उपेक्षा का केंद्र हैं। ऐसे देशों को पीएम मोदी ने भरोसा दिया कि उनकी हर मुसीबत में भारत उनके साथ खड़ा रहेगा, जैसा कोरोना के समय खड़ा था। इससे भारत ने समुद्र के किनारे बसे तमाम विकासशील और गरीब देशों को खुद से जोड़ने का काम किया है।
ऑस्ट्रेलिया दौरे से भारत को क्या मिला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया पहुंचे। ऑस्ट्रेलिया की संसद ने हाल ही में भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए को मंजूरी प्रदान की है। इस बड़े बदलाव के बाद प्रधानमंत्री का यह पहला ऑस्ट्रेलिया दौरा है। अपने दौरे के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑस्ट्रेलिया की प्रमुख कंपनियों के उद्योगपतियों से मुलाकात की। इसके पहले मार्च में ही ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री भारत आए थे। तब भी दोनों देशों के बीच कई बड़े मसलों पर बात हुई थी। अब पीएम मोदी ने ऑस्ट्रेलिया के इस दौरे से देश में निवेश को बढ़ावा देने की तरफ कदम बढ़ाया है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने में ऑस्ट्रेलिया अहम भूमिका निभा सकता है। इस लिहाज से भी पीएम मोदी का यह दौरा काफी अहम रहा है।
जी-7 समूह की प्रासंगिकता पर उठ रहे सवाल वैश्विक आथि्र्ाक गतिविधियों में जी-7 देशों की हिस्सेदारी चार दशक पहले के लगभग 50 प्रतिशत से घटकर अब लगभग 30 प्रतिशत रह गई है। इससे चीन, भारत और ब्राजील जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं ने भारी लाभ उठाया है। यही कारण है कि अब जी -7 समूह की प्रासंगिकता और विश्व अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने में इसकी भूमिका के बारे में सवाल उठ रहे हैं।
जी-7 शिखर सम्मेलन के जरिए रूस पर लगाम
हाल ही में संपन्न हुए जी-7 शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने रूस पर और कड़े प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए जी-7 देशों ने रूसी जहाजों, विमानों और रूसी हीरों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। इस नए प्रतिबंध से भारत के हीरा उद्योग में काम करने वाले 10 लाख कर्मचारियों के रोजगार पर तलवार लटकनी शुरू हो गई है। दुनिया के करीब 90 फीसदी हीरे भारत में तराशे और पॉलिश किए जाते हैं। इन हीरों में रूसी हीरे भी शामिल हैं।
भारत रूस में स्थित अलरोसा से हीरों का आयात करता है। दुनिया के कुल हीरे का लगभग 30 प्रतिशत अलरोसा में उत्पादित होता है। भारतीय हीरा कंपनियां जी-7 देशों को आयातित हीरों को काटकर और पॉलिश करके निर्यात करती हैं।
जेम एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन विपुल शाह ने कहा है कि अगर रूस पर प्रतिबंध इसी तरह जारी रहा तो जी-7 देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा के बाद भारत में दस लाख लोगों का रोजगार अधर में लटक जाएगा। जापान के हिरोशिमा में जी-7 शिखर सम्मेलन की समाप्ति के बाद एक संयुक्त बयान में कहा गया, ‘हम रूसी राजस्व को कम करने के लिए रूस में खनन या उत्पादित हीरों के व्यापार और उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।’ अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड और बहामास ने अप्रैल 2022 में ही रूसी डायमंड माइनर कंपनी अलरोसा के साथ व्यापार पर रोक लगा दी थी।